Sabse Bada Sawal, 04 April 2023: नमस्कार… मैं हूं सदीप चौधरी। आज सबसे बड़े सवाल में मैं बात करने वाला हूं दंगों की। पिछले कुछ दिनों से दंगों की गूंज सुनाई दे रही है। हिंसा की तस्वीरें, पथराव और ऊपर से राजनीतिक बयानबाजी। वो चाहे पश्चिम बंगाल हो, बिहार हो या महाराष्ट्र। हर जगह तनाव है। कुछ लोग कहते हैं कि चुनाव भी सिर पर है। लेकिन मैं इन दंगों की बात नहीं करने वाला हूं।
मैं आपको 36 साल पहले ले जाना चाहूंगा। जब दंगे होते हैं न, असल में वह दंगा भी नहीं था, नरसंहार था। नफरत हमें दरिंदा बना देती है। उसकी जीती जागती मिसाल पेश करने वाला हूं। इसमें पूरी व्यवस्था की मिलीभगत भी दिखती है, ताकि इंसाफ न हो। मैं बात कर रहा हूं मलियाना की, ये मेरठ का बाहरी हिस्सा है।
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मलियाना में सिर्फ मुस्लिम मारे गए
23 मई 1987 को यहां 68 लोगों को, जिसमें महिलाएं बच्चे भी शामिल थे, उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया। दंगों में क्या होता है, दो समुदायों में टकराव हुआ, पथराव हुआ। दोनों तरफ का नुकसान होता है। 84 के दंगों में सिखों पर सबसे ज्यादा गाज गिरी थी। गोधरा दंगा में हिंदू भी मारे गए, मुसलमान भी। लेकिन मलियाना में मारे गए लोग खास समुदाय मुसलमान थे।
चश्मदीद मुकर गए
36 साल यानी 420 महीने, 800 सुनवाई। मथुरा की अदालत ने तीन दिन पहले पाया कि सबूत पर्याप्त नहीं है। जो साक्ष्य पेश किए, गवाहों को पेश किया गया, उनके बयानों में विरोधाभास है। चश्मदीद कहते हैं कि जी हमसे पुलिस ने दबाव में बयान दिलवाया। पंचनामे में कहा जाता है कि फलाने की मौत गोली लगने के जख्म से हुई। ब्लंट ऑब्जेक्ट की चोट से मौत हुई। एफआईआर बीच में गुम हो गई।
कोर्ट से 40 आरोपी बरी हुए
93 आरोपियों में 23 की मौत हो गई। 31 के बारें में पुलिस कुछ पता नहीं लगा पाई। 40 बरी हो गए। 27 साल का याकूब उनके पिता नमाज पढ़कर आ रहे थे, गोली लगी घर तक नहीं आ पाए। वह याकूब अब 63 साल का हो चुका है। महताब 4 साल का था। पिता छत की मुंडेर पर खड़े होकर अपील कर रहे थे कि हिंसा मत करो। गर्दन में गोली लगी, दो कदम भी नहीं चल पाए, अंतिम सांस ले ली। वो इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील का मन बना रहे हैं। लेकिन इंतजार के लम्हे खत्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं। मगर ये अभी आधी अधूरी कहानी है।
नरसंहार के वक्त यूपी और देश में कांग्रेस की सरकार थी
उस वक्त यूपी में कांग्रेस की सरकार थी, वीर बहादुर सीएम थे। ये तनाव का माहौल मई की पैदाइश नहीं था। शब-ए-बारात अप्रैल में था। 19 मई को वीर बहादुर और गृह राज्य मंत्री पी चिदंबरम मेरठ में थे। 22 मई को हाशिमपुरा में 42 लोगों का कत्ल कर दिया जाता है। इन्हें उठा लिया गया, पीएसी ने उठाया गंगनहर में ले गए, गोलियां चलाई और नहर में फेंक दिया। इक्का-दुक्का बच गए, वे मुरादनगर, गाजियाबाद की तरफ भागे। उस समय गाजियाबाद में एसपी विभूतिनारायण राय थे। एफआईआर भी दर्ज हुई। कार्रवाई हुई। सजा भी हुई।
मलियाना में लोगों को किसने मारा?
लेकिन मलियाना में 42 लोगों को किसने मारा? एक फिल्म आई थी कि नो वन किल्ड जेसिका? इसी तरह नो वन किल्ड पिपुल इन मलियाना? यह सवाल हम नहीं उठा रहे हैं। तमाम चर्चा हो रही है, किसकी नाकामी, किसकी जिम्मेदारी? वो रंजिश, वो तनाव बढ़ता जा रहा है। अतीत हमें सबक सिखाता है, लेकिन उसके बारें में हम आवाज नहीं उठाते हैं। दंगों को हम क्या न्योता देते हैं? बतौर सभ्य समाज हमें इस पर विमर्श करना ही होगा। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल दंगे…देर…अंधेर? नो वन किल्ड मलियाना? देखिए बड़ी बहस।
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