Lok Sabha Elections 2024 (अमित कसाना): देशभर में लोकसभा चुनाव 2024 की उठापटक चल रही है। हाल ही में महाराष्ट्र में चुनाव आयोग ने अजित पवार गुट को असली NCP बताया है। जिसके बाद महाराष्ट्र की राजनीति के वरिष्ठ नेता शरद पवार ने चुनाव आयोग को चाय का कप, उगता सूरज समेत तीन चुनाव चिन्ह और अपनी अलग पार्टी के लिए तीन नाम (शरद स्वाभिमानी पक्ष, शरद पवार कांग्रेस, मी राष्ट्रवादी,) का ऑप्शन भेजा है।
चुनाव जीतने में इस तरह करते हैं मदद, चिन्ह ही है पार्टी का चेहरा
दरअसल, राजनीतिक पार्टियों के चुनाव चिन्ह उनकी विचारधारा को दर्शाते हैं। चुनावों को जीतने में इन सिंबलों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लोग पार्टी के झंडे, चिन्ह से खुद को इमोशनल तौर पर जोड़कर देखते हैं। कई बार जो लोग पढ़े-लिखे नहीं होते तो वोटिंग के दौरान यही चिन्ह उनको अपनी पसंदीदा पार्टी को चुनने में मदद करते हैं। आइए इस खबर में आपको देश की दो प्रमुख पार्टियों कांग्रेस और बीजेपी के चुनाव चिन्हों का इतिहास बताते हैं।
जनता की यही शक्ति अन्याय को हराएगी।
📍 ओडिशा pic.twitter.com/LU7P4M3dMk
---विज्ञापन---— Congress (@INCIndia) February 7, 2024
कभी दो बैलों की जोड़ी था कांग्रेस का चुनाव चिन्ह
जानकारों के अनुसार पूर्व पीएम जवाहरलाल नेहरू के समय में कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी हुआ करता था। साल 1969 में पार्टी का वरिष्ठ कांग्रेस नेता के कामराज (कामाक्षी कुमारस्वामी नादेर) और पंडित नेहरू के बीच बंटवारा हुआ।
गाय और बछड़े का नया पार्टी सिंबल जारी हुआ
इस बंटवारे में दो बैलों की जोड़ी वाला चुनाव चिन्ह इलेक्शन कमिशन ने सीज कर दिया और कामराज को तिरंगे में चरखा और पंडित नेहरू को गाय और बछड़े का नया पार्टी सिंबल जारी किया गया। एक बार फिर साल इमरजेंसी के समय साल 1977 में कांग्रेस का सिंबल चुनाव आयोग ने जब्त किया।
ओडिशा की जनता अन्याय और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठा रही है 🔥
'न्याय मांग रही है'
हमें साथ मिलकर न्याय के इस महासंग्राम में आगे आना होगा, हर वर्ग को उसके हिस्से का न्याय दिलाना होगा।
सहो मत.. डरो मत ✊🏼
न्याय का हक, मिलने तक 🇮🇳 pic.twitter.com/0kfvfvf2pm— Congress (@INCIndia) February 8, 2024
इंदिरा ने चुनाव हारने के बाद बदला चिन्ह
इमरजेंसी के बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चुनने पर कांग्रेस आई के लिए उन्हें नया चुनाव चिन्ह हाथ का पंजा जारी किया गया। तभी से कांग्रेस पार्टी का यह चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) चिन्ह चला आ रहा है। उस दौरान रायबरेली से पूर्व पीएम चुनाव हार गईं थी।
मोदी की गारंटी यानी… गारंटी पूरी होने की गारंटी।#TabhiToSabModiKoChunteHain pic.twitter.com/mXuPH1udHS
— BJP (@BJP4India) February 7, 2024
दीपक था जनसंघ का चिन्ह
बीजेपी (पूर्व में जनसंघ) पार्टी का चुनाव चिन्ह हमेशा से कमल का फूल नहीं था। साल 1951 में बीजेपी जब भारतीय जनसंघ थी तो उस समय इसका चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) चिन्ह दीपक था। इसके बाद साल 1980 में बीजेपी का गठन हुआ जनसंघ के अलावा कई अन्य पार्टियां भी एक साथ आईं थीं, जिसके चलते सबकी सहमति के बाद इसका चुनाव चिन्ह हलधर किसान को चुना गया था।
Politics vs Progress
Karnataka has witnessed a manifold rise in both grants and tax devolution under Modi Govt compared to the UPA regime. pic.twitter.com/EgOntJutpr
— BJP (@BJP4India) February 7, 2024
कमल बना ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध का प्रतीक
जानकारी के अनुसार साल 1857 में जनसंघ का चुनाव चिन्ह एक बार फिर बदला। इस समय तक देश में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बज चुका था। जानकारों के अनुसार लोग उस समय रोटी और कमल के बीज का यूज एक जगह से दूसरी जगह इंफॉर्मेशन पहुंचाने के लिए करते थे। ऐसे में कमल को राष्ट्रवाद और देशप्रेम की विचारधारा से जोड़कर देखा जाने लगा। तभी से जनसंघ के वरिष्ठ नेताओं ने इसे पार्टी का सिंबल तय करने का निर्णय लिया था।