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ट्रंप के टैरिफ पर RSS चीफ मोहन भागवत का बड़ा बयान, ‘अंतरराष्ट्रीय व्यापार स्वेच्छा से होना चाहिए, दबाव में नहीं’

Mohan Bhagwat Big Statement on trump Teriff: अमेरिका की ओर से भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लागू होने के बाद भारत और अमेरिका के व्यापार संबंधों में लगातार तनाव बना हुआ है। इसी बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने बड़ा बयान देते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार केवल स्वेच्छा से होना चाहिए, किसी दबाव में नहीं।

Author Written By: News24 हिंदी Author Published By : Vijay Jain Updated: Aug 27, 2025 22:07
mohan bhagwat and trump

Mohan Bhagwat Big Statement on trump Teriff: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि समाज और जीवन में संतुलन ही धर्म है, जो किसी भी अतिवाद से बचाता है। भारत की परंपरा इसे मध्यम मार्ग कहती है और यही आज की दुनिया की सबसे बड़ी आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार केवल स्वेच्छा से होना चाहिए, किसी दबाव में नहीं।

विज्ञान भवन में संघ शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित तीन दिवसीय व्याख्यानमाला ‘100 वर्ष की संघ यात्रा – नए क्षितिज’ के दूसरे दिन भागवत ने कहा कि समाज परिवर्तन की शुरुआत घर से करनी होगी। इसके लिए संघ ने पंच परिवर्तन बताए हैं – कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी (स्व-बोध) और नागरिक कर्तव्यों का पालन।

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संघ का कार्य और मूल मूल्य

भागवत ने स्पष्ट किया कि संघ का कार्य शुद्ध सात्त्विक प्रेम और समाजनिष्ठा पर आधारित है। “संघ का स्वयंसेवक किसी व्यक्तिगत लाभ की अपेक्षा नहीं करता। यहाँ इंसेंटिव नहीं हैं, बल्कि डिसइंसेंटिव अधिक हैं। स्वयंसेवक समाज-कार्य में आनंद का अनुभव करते हुए सेवा करते हैं।” उन्होंने कहा कि जीवन की सार्थकता और मुक्ति की अनुभूति इसी सेवा से होती है।

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हिन्दुत्व की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा, “हिन्दुत्व सत्य, प्रेम और अपनापन है। हमारे ऋषि-मुनियों ने सिखाया कि जीवन अपने लिए नहीं है। इसी कारण भारत को दुनिया में बड़े भाई की तरह मार्ग दिखाने की भूमिका निभानी है।”

विश्व की चुनौतियां और धर्म का मार्ग

सरसंघचालक ने चिंता जताई कि दुनिया कट्टरता, कलह और अशांति की ओर बढ़ रही है। उपभोगवादी और जड़वादी दृष्टि के कारण समाज में असंतुलन गहराया है। उन्होंने गांधी जी के सात सामाजिक पापों का उल्लेख करते हुए कहा कि धर्म का मार्ग अपनाना ही समाधान है। “धर्म पूजा-पाठ और कर्मकांड से परे है। यह हमें संतुलन सिखाता है – हमें भी जीना है, समाज को भी जीना है और प्रकृति को भी जीना है।”

भारत का उदाहरण और भविष्य की दिशा

भागवत ने कहा कि भारत ने नुकसान में भी संयम रखा और शत्रुता के बावजूद मदद की। “व्यक्ति और राष्ट्रों के अहंकार से शत्रुता पैदा होती है, लेकिन अहंकार से परे हिंदुस्तान है।” उन्होंने कहा कि समाज को अपने आचरण से दुनिया के सामने उदाहरण रखना होगा।

भविष्य की दिशा पर उन्होंने कहा कि संघ का उद्देश्य है कि समाज के हर कोने में संघ कार्य पहुँचे और सज्जन शक्तियाँ आपस में जुड़ें। “संघ चाहता है कि समाज स्वयं चरित्र निर्माण और देशभक्ति के कार्य को अपनाए।”

स्वदेशी और आत्मनिर्भरता पर बल

भागवत ने कहा कि आर्थिक दृष्टि से अब राष्ट्रीय स्तर पर नया विकास मॉडल गढ़ना होगा। यह मॉडल आत्मनिर्भरता, स्वदेशी और पर्यावरण संतुलन पर आधारित होना चाहिए। उन्होंने पड़ोसी देशों से रिश्तों पर कहा कि “नदियाँ, पहाड़ और लोग वही हैं, केवल नक्शे पर लकीरें खींची गई हैं। संस्कारों में कोई मतभेद नहीं है।”

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पंच परिवर्तन और अनुशासन का आह्वान

भागवत ने समाज को अपने घर से बदलाव शुरू करने का आह्वान किया। पर्व-त्योहार पर पारंपरिक वेशभूषा अपनाने, स्वभाषा में हस्ताक्षर करने और स्थानीय उत्पादों को सम्मान देने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि “किसी भी उकसावे की स्थिति में हमें अवैध आचरण नहीं करना चाहिए। न टायर जलाना है, न पत्थर फेंकना है।”

अंत में सरसंघचालक ने कहा कि “संघ क्रेडिट बुक में आना नहीं चाहता। संघ चाहता है कि भारत ऐसी छलांग लगाए कि उसका कायापलट हो और पूरे विश्व में सुख और शांति कायम हो जाए।”

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First published on: Aug 27, 2025 10:07 PM

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