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RSS-BJP कितने दूर-कितने पास? मोदी सरकार ने हटाया 58 साल पुराना प्रतिबंध, क्या ऑल इज वेल है?

Government Employees Removed Ban of RSS Activities: मोदी सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की गतिविधियों में भाग लेने पर लगे प्रतिबंध को हटा लिया। इसको लेकर कांग्रेस ने मोदी सरकार पर निशाना साधा है। ऐसे में आइये जानते हैं इस फैसले के मायने।

Edited By : Rakesh Choudhary | Updated: Jul 22, 2024 14:41
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RSS-BJP Relation
मोदी सरकार ने हटाया 58 साल पुराना प्रतिबंध

Modi Government Removed Ban: केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के आरएएस की गतिविधियों में शामिल होने को लेकर लगे बैन को हटा लिया। 1966 में तत्कालीन कांग्रेस की सरकार ने यह बैन लगाया था। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाले कार्मिक विभाग मंत्रालय ने 58 साल बाद यह बैन एक बार फिर हटा लिया है।

बता दें कि सरकारी कर्मचारियों के संघ से जुड़ने पर पहले रोक का आदेश 1966 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने जारी किया था। इसके पीछे यह कहां गया कि संघ राजनीतिक रूप से प्रभावित है। तत्कालीन इंदिरा सरकार ने आगे कहा था कि संघ की वजह से कर्मचारियों की तटस्थता प्रभावित हो सकती है। सरकार ने इसके पीछे धर्मनिरपेक्ष समाज की संज्ञा भी दी। इसके बाद 1977 में जनता पार्टी की सरकार ने यह प्रतिबंध हटा दिया लेकिन 1980 में इंदिरा सरकार सत्ता में लौटीं तो इस कानून को फिर से प्रभावी बना दिया गया।

जयराम रमेश का शेयर किया गया 1966 का केंद्र सरकार का आदेश।

कांग्रेस ने साधा निशाना

ऐसे में संघ की शाखाओं में सरकारी कर्मचारियों के जाने और नहीं जाने को लेकर विवाद चलता आया है। लेकिन मोदी सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल में ही इस प्रतिबंध को क्यों हटाया? इसको लेकर कई तरह के सवाल है? विपक्ष ने कहा कि मोदी और संघ के रिश्तों में कड़वाहट थी ऐसे में मोदी सरकार ने 58 साल पुराना प्रतिबंध हटा लिया है। कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने कहा कि नौकरशाही अब निक्कर में आ सकती है। ऐसे में क्या वास्तव में बीजेपी और संघ के रिश्तों में कड़वाहट है या सिर्फ मीडिया की बनाई हवा? आइये जानते हैं।

जयराम रमेश का शेयर किया 9 जुलाई 2024 का केंद्र सरकार का आदेश

अटल-आडवाणी के युग में कैसे थे रिश्ते?

साल 2020 और 2024 में दो मौके ऐसे आए जब पीएम मोदी और संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मंच साझा किया। मौका था राम मंदिर के शिलान्यास और उद्घाटन का। आरएसएस को बीजेपी का अभिभावक संगठन कहा जाता है। ऐसे में उसका बीजेपी पर प्रभाव किसी से छुपा नहीं है। लेकिन राजनीतिक स्तर पर किए जाने वाले निर्णयों को लेकर दोनों के बीच तकरार की खबरें कई बार सामने आ चुकी हैं। अटल बिहारी जब पीएम थे तो उस समय संघ प्रमुख केएस सुदर्शन थे। तब भी दोनों के बीच खटपट की खबरें सामने आती रही हैं। जब 2014 में मोदी पीएम बने तो लंबे अरसे यह चर्चा चलती रही कि पार्टी और सरकार की डोर नागपुर के हाथ में है। ये बात भी किसी से छिपी नहीं थी मोदी सरकार के कई मंत्री झंडेवालान स्थित संघ के उदासीन आश्रम स्थित कार्यालय में हाजिरी लगाने जाते थे। मंत्रालयों के कामों का लेखा-जोखा भी देते थे।

Atal Bihari Vajpayee's complex relationship with Rashtriya Swayamsevak Sangh | Latest News India - Hindustan Times

शासन के तरीके को लेकर मतभेद

हालांकि भागवत अब पीएम नरेंद्र मोदी को निर्देश नहीं दे सकते हैं। ये भी एक बात है कि संघ के किसी भी सिद्धांत का उल्लंघन पीएम मोदी ने नहीं किया। ऐसे में संघ बीजेपी से क्यों नाराज हो सकता है? शासन के तरीके पर संघ और बीजेपी में मतभेद हो सकता है। बीजेपी का अन्य पार्टियों के साथ गठबंधन को लेकर दोनों संगठनों के बीच मतभेद है। इसके अलावा संघ के प्रचारकों को पार्टी टिकट वितरण में कितना अहमियत देती है।

ऑर्गेनाइजर ने की खिंचाई

लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें कम हुई तो संघ का मुखपत्र कहे जाने वाले ऑर्गेनाइजर में लिखा गया कि विपक्षी नेताओं की एजेंसियों की कार्रवाई, पार्टियों में फूट और बेवजह किसी पार्टी को गठबंधन में शामिल करना बीजेपी की हार की बड़ी वजह है। हालांकि इसका बीजेपी के किसी नेता ने अभी तक खंडन नहीं किया है। चुनाव से पहले तक जैसा हमेशा होता आया है कि संघ के कार्यकर्ता घर-घर जाकर बीजेपी और राष्ट्रवाद के समर्थन में मतदान करने को कहते हैं। ऐसा हुआ भी। लेकिन चुनाव के बीच बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा का यह कहना कि बीजेपी को अब संघ की जरूरत नहीं है। संघ के स्वयंसेवकों को यह बात नागवार गुजरी। परिणाम ये रहा कि पार्टी 240 सीटों पर सिमट गई। हालांकि सीटें कम होने के और भी कई कारण है लेकिन ये भी उनमें से एक है।

RSS chief Mohan Bhagwat heaps praise on PM Narendra Modi, says Indian leadership should follow 'dharma' – India TV

इस फैसले पर क्या कहते हैं पूर्व प्रचारक

संघ के पूर्व प्रचारक विकास गौड़ की मानें तो संघमय भारत सभी पंथ एवं वर्गों के लिए आवश्यक विषय है। संघ की मूल भावना में अपने देश भारत के विचार को स्पष्ट करना सन्निहित है। सर्वे भवन्तु सुखिन से लेकर वसुदेव कुटुंबकम के मूल मंत्र को संघ ने अपनी कार्यप्रणाली में सदेव ही संजोया है।

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पूर्व प्रचारक जीएल यादव

भारतीय संस्कृति के आदर्श को बढावा देना संघ का काम

वहीं इस फैसले को लेकर पूर्व प्रचारक और अब बीजेपी नेता जीएल यादव ने कहा कि संघ हिंदुत्व की विचारधारा को फैलाने, भारतीय संस्कृति और उसके सभ्यतागत मूल्यों को बनाए रखने के आदर्श को बढ़ावा देने का कार्य करता है। यह कार्य हर भारतीय को करना चाहिए। जहां तक सरकारी कर्मचारियों की बात है वो स्वतंत्र है और कर्मचारियों को शाखाओं से परहेज़ नहीं करना चाहिए। देश के विभिन्न संघटन इससे जुड़े हुए हैं। यही हमारे प्रजातंत्र का असली गहना है। बीजेपी और संघ एक ही विचारधारा से है तो कैसे कल्पना की जा सकती है कि उनके बीच ऑल इज वेल है या नहीं।

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First published on: Jul 22, 2024 11:17 AM

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