Who Was Girija Tickoo, नई दिल्ली/श्रीगनगर: लोकसभा में बुधवार को खासा हंगामा हुआ। मोदी सरनेम केस में बहाल हुए सांसद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने मणिपुर में महिलाओं के साथ ज्यादती का जिक्र किया तो भारतीय जनता पार्टी नेत्री (BJP Leader) स्मृति ईरानी (Smriti Irani) ने एक नाम लिया, जिसका आज से करीब 33 साल पहले बेरहमी से कत्ल कर दिया गया था। यह नाम था गिरिजा टिक्कू। अब हर कोई जानना चाहता है कि आखिर कौन थी यह? क्यों उसका नाम लेकर स्मृति ईरानी ने कॉन्ग्रेस नेतृत्व को घेर डाला? इन्हीं सवालों का जवाब है न्यूज 24 का यह आर्टिकल। जानें कौन थी गिरिजा टिक्कू? विवादित फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ से क्या है गिरिजा का संबंध…
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1990 में अलगाववादी आंदोलन के बीच कश्मीर क्षेत्र से भागकर जम्मू में शरणार्थी कैंप में पहुंची थी बांदीपोरा की 20 साल की विवाहित लैब अटेंडेंट गिरिजा टिक्कू
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हालात थोड़े शांत होने पर बकाया वेतन लेकर सहकर्मी के साथ लौट रही थी तो कर ली गई किडनैप, टुकड़ों में मिली थी लाश
दरअसल, कश्मीरी पंडित परिवार से ताल्लुक रखती बांदीपोरा की विवाहित महिला गिरिजा टिक्कू (Girija Tickoo) कश्मीर घाटी के एक सरकारी स्कूल में प्रयोगशाला सहायक (Lab Attandent) थी। वह यासीन मलिक के नेतृत्व में जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के आजादी आंदोलन के बाद अपने पूरे परिवार के साथ कश्मीर क्षेत्र से भागकर जम्मू में शरणार्थी कैंप में पहुंच गई। जून 1990 में एक दिन किसी ने फोन करके घाटी में अलगाववादी आंदोलन शांत हो जाने का हवाला देते हुए उसे वापस लौटकर अपना बकाया वेतन ले लेने की राय दी। सुरक्षित घर वापसी के आश्वासन के बाद स्कूल से अपना बकाया वेतन लेकर अपने स्थानीय मुस्लिम सहयोगी के घर पहुंची।
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बारीकी से ट्रैक कर रहे जिहादी आतंकवादियों ने गिरिजा को उसके सहयोगी के घर से किडनैप कर लिया। आंखों पर पट्टी बांधकर उसे अज्ञात स्थान पर ले जाया गया। हैरानी की बात है कि उस वक्त सहकर्मी के अलावा इलाके के अन्य सभी लोग चुपचाप देखते रहे। हो सकता है वो या तो डर के मारे यह सब देखने को मजबूर थे या फिर उसके एक काफिर होने के चलते किडनैप होते देखने के लिए तैयार भी थे।
कुछ दिनों बाद 20 साल की लैब अटेंडेंट गिरिजा टिक्कू की सड़क किनारे क्षति-विक्षत लाश पाई गई। पोस्टमॉर्टम में बताया गया कि उसके जीवित रहने के दौरान उसे बेरहमी से सामूहिक बलात्कार किया गया, उसके साथ दुष्कर्म किया गया, बुरी तरह से प्रताड़ित किया गया और किसी आरी से उसके टुकड़े कर दिए गए। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि 2012 का दिल्ली का निर्भया कांड भी शायद इतना क्रूर नहीं था।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, अदालतों और सरकारों ने इस खूनी हत्या का कोई जवाब नहीं दिया। मुख्यधारा के मीडिया ने उसकी कहानी को प्रसारित नहीं किया। उसे न्याय दिलाने के लिए तख्तियां भी नहीं लिखी गई। कुल मिलाकर कहीं कोई विरोध नहीं, कोई आक्रोश नहीं। हालांकि इस शर्मनाक अत्याचार का इकलौता जिक्र कश्मीरी नरसंहार की कहानियों को प्रदर्शित करने वाली वेबसाइटों पर और कांग्रेस के पूर्व कैबिनेट मंत्री सलमान खुर्शीद की किताब ‘बियॉन्ड टेररिज्म- ए न्यू होप फॉर कश्मीर’ में जरूर मिल जाता है।
वैसे तो गिरिजा टिक्कू का राजनीति वगैरह से कोई संबंध नहीं, फिर भी उसे इतनी क्रूरता से गुजरना पड़ा। अगर एक पल के लिए सोच भी लें तो उसका गुनाह सिर्फ हिंदू होना था। एक कश्मीरी पंडित होना था। इस बात में भी कोई दो राय नहीं कि 1989-90 के बाद से कश्मीर में ऐसे कई मामले सामने आए हैं कि बड़ी संख्या में विशेष समुदाय के पड़ोसी और सहयोगी हिंदू घरों के बाहर ‘आजादी-आजादी’ के नारे लगाते हुए आते थे, जबरन अंदर घुस जाते थे और फिर हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार करते और पुरुषों को तुरंत गोली मार देते थे। इस पूरे दर्द को फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ में सहेजा गया है। उसका परिवार आज भी न्याय की राह देख रहा है।
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