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कौन थे DNA-फिंगरप्रिंटिंग के जनक वैज्ञानिक लालजी सिंह? 2004 में मिला था पद्मश्री अवार्ड

Father Of DNA Finger Printing Profile: भारत को DNA और फिंगर प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित वैज्ञानिक लालजी सिंह की देन हैं, जिनका जनम आज के दिन ही 5 जुलाई 1947 को हुआ और 70 साल की उम्र में 10 दिसंबर 2017 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कर दिया था, लेकिन उन्होंने भारत को […]

Author Written By: News24 हिंदी Author Edited By : Khushbu Goyal Updated: Jul 5, 2025 11:03
Scientist Lalji Fingh | DNA Technology | Finger Printing
Scientist Lalji Fingh

Father Of DNA Finger Printing Profile: भारत को DNA और फिंगर प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित वैज्ञानिक लालजी सिंह की देन हैं, जिनका जनम आज के दिन ही 5 जुलाई 1947 को हुआ और 70 साल की उम्र में 10 दिसंबर 2017 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कर दिया था, लेकिन उन्होंने भारत को DNA, ब्रीडिंग टेक्नोलॉजी और कृत्रिम गर्भाधान की तकनीक देकर मेडिकल की दुनिया में इतिहास रच दिया। लालजी सिंह को भारतीय DNA और फिंगरप्रिंटिंग का जनक कहा जाता है। उन्होंने लिंग निर्धारित करने वाले अणुओं, वन्यजीव संरक्षण, फोरेंसिक साइंस के क्षेत्र में भी काम किया। साल 2004 में इंडियन साइंस और टेक्नोलॉजी सेक्टर में उनके योगादान के लिए पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया था।

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लालजी सिंह की उपलब्धियां

्डॉर. लालजी सिंह उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के कलवारी गांव में जन्मे थे। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से BSC, MSC और PHD की थी। उन्होंने भारत में DNA और फिंगरप्रिंटिंग टेक्नोलॉजी को विकसित किया, जिसने फोरेंसिक साइंस और क्राइम इन्वेस्टिगेशन को नए आयाम पर पहुंचाया। राजीव गांधी हत्याकांड, नैना साहनी तंदूर हत्याकांड, बेअंत सिंह हत्याकांड जैसे हाई प्रोफाइल केस इसी टेक्नोलॉजी की मदद से सुलझाए गए और आज फिंगर प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल आधार कार्ड बनाने के लिए पूरे देश में हो रहा है। सरकार फिंगर प्रिंटिंग के जरिए ही भारतीयों का रिकॉर्ड मेंटेन किए हुए है।

मेडिकल साइंस की दुनिया में योगदान देते हुए लालजी सिंह ने 1995 में हैदराबाद में सेंटर फॉर DNA फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स (CDFD) की खोला। साल 1998 में वन्य जीव संरक्षण संबंधी टेस्टिंग के लिए लेबोरेटरी फॉर द कॉन्सर्वेशन ऑफ एंडेंजर्ड स्पीशीज (LaCONES) की स्थापना की। साल 2004 में अपने पैतृक गांव में जीनोम फाउंडेशन खोला, जिसका उद्देश्य गांवों में रहने वाले लोगों को जेनेटिक डिसिज का इलाज उपलब्ध कराना है। उन्होंने ही जीनोम बेस्ड पर्सनलाइज्ड मेडिसिन का सिद्धांत दिया, जो भविष्य में होने वाली बीमारियों की पहचान करने और उनका इलाज करने के लिए जरूरी है।

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लालजी सिंह के 50 से ज्यादा रिसर्च पेपर प्रकाशित हुए। साल 2011 से 2014 तक वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। बतौर कुलपति उन्होंने केवल एक रुपये सैलरी ली थी। उन्होंने 1987 में हैदराबाद के सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (CCMB) के साथ अपने वैज्ञानिक जीवन की शुरुआत की थी। उनके द्वारा स्थापित जीनोम फाउंडेशन और DNA फिंगरप्रिंटिंग टेक्नोलॉजी ने भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है।

कैसे किया टेक्नोलॉजी का आविष्कार?

1968 में जब वे MSc कर रहे थे तो उनकी रुचि भारत में पाए जाने वाले सांपों के साइटोजेनेटिक्स की स्टडी करने में थी। उन्होंने एक सांप की प्रजाति बैंडेड क्रेट में सेक्स क्रोमोसोम पर स्टडी भी की। इस स्टडी के दौरान उन्हें DNA सिक्वेंस मिले, जिसे उन्होंने बैंडेड क्रेट माइनर (BKM) सिक्वेंस नाम दिया। DNA पर ओर रिसर्च की तो जानवरों कई प्रजातियों में यह मिले और इंसानों में कई रूपों में इनकी मौजूदगी पता चली। 1987 से 1988 तक हैदराबाद के सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (CCMB) में रिसर्च करते हुए उन्हें पता चला कि फोरेंसिक टेस्ट के लिए DNA मैचिंग के लिए सैंपल और फिंगर प्रिंट लिए जा सकते हैं। 1988 में माता-पिता से जुड़े विवाद को सुलझाने के लिए पहली बार टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया था।

First published on: Jul 05, 2025 10:21 AM

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