दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए लॉ के विद्यार्थियों के लिए बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि न्यूनतम उपस्थिति की कमी के आधार पर किसी भी लॉ स्टूडेंट्स को परीक्षा से नहीं रोका जाएगा। लॉ विद्यार्थियों के लिए आदेश काफी अहम माना जा रहा है। इसको लागू करने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया को अनिवार्य उपस्थिति नियमों में संशोधन करने का निर्देश दिया है।
बता दें कि लॉ छात्र सुषांत रोहिल्ला की आत्महत्या से जुड़े मामले में कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है। जस्टिस प्रतिभा एम सिंह की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि सख्त अटेंडेंस नियम छात्रों में मानसिक तनाव और आत्महत्या जैसी घटनाओं का कारण नहीं बनने चाहिए। कोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी युवा जीवन की हानि अनिवार्य उपस्थिति नियमों की कीमत पर नहीं हो सकती है। कोर्ट की यह टिप्पणी विधि संस्थानों के लिए काफी अहम हैं।
यह भी पढ़ें: ‘फिजिकल रिलेशन बनाने का लाइसेंस नहीं दोस्ती’, दिल्ली हाईकोर्ट ने ठुकराई आरोपी की जमानत याचिका
दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला के साथ ही नियमों को भी ध्यान में रखा है। कॉलेजों में सिस्टम की अधिकता पर नाराजगी जताते हुए कोर्ट ने कहा कि छात्रों को रोकने की बजाय कम कठोर नियमों की तलाश जरूरी है। कहा कि अनिवार्य फिजिकल उपस्थिति की आवश्यकता पर पुनर्विचार और संशोधन जरूरी है।
हालांकि कोर्ट ने सभी संस्थानों को UGC नियमों के अनुसार शिकायत निवारण समिति बनाना अनिवार्य करने के लिए कहा है। कोर्ट ने कहा देश के किसी भी मान्यता प्राप्त लॉ कॉलेज और विश्वविद्यालय में उपस्थिति की कमी के आधार पर किसी छात्र को परीक्षा या करियर प्रगति से नहीं रोका जाएगा। साथ ही कोई संस्थान BCI द्वारा तय न्यूनतम सीमा से अधिक कठोर एटेंडेंस नियम नहीं बना सकेगा।
यह भी पढ़ें: राजस्थान हाईकोर्ट को बम से उड़ाने की धमकी, खाली कराया परिसर










