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‘पत्नी को मोटी, बदसूरत कहना भी तलाक का आधार’ Domestic Violence के केस में हाई कोर्ट का बड़ा फैसला

Kerala High Court: अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा कि पीड़ित के ससुराल में पति के भाई-बहनों द्वारा उसे उसके रंग-रूप के बारे में अपशब्द बोलना, उसे शर्मिंदा करना घरेलू हिंसा के बराबर है।

Author Published By : Amit Kasana Updated: Nov 19, 2024 16:40
Murder Case Verdict
Murder Case Verdict

Domestic Violence के केस में हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला दिया है। दरअसल केरल कोर्ट ने पति, उसके भाई, भाई की पत्नी को पीड़ित की शक्ल, सूरत और शरीर पर भद्दे कमेंट करने को body shaming माना और इसे तलाक का आधार माना है।  केरल हाई कोर्ट के जस्टिस ए बदरुद्दीन ने एक महिला के पति के बड़े भाई की पत्नी द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उसने खुद को घरेलू हिंसा का आरोपी बनाने जाने पर विरोध जताया था और उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने की मांग की थी।

अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा कि पीड़ित के ससुराल में पति के भाई-बहनों द्वारा उसे उसके रंग-रूप के बारे में अपशब्द बोलना, उसे शर्मिंदा करना घरेलू हिंसा के बराबर है।

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ये था पूरा मामला 

पेश मामले में कन्नूर में कुथुपरम्बा पुलिस ने एक महिला की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की थी। एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि महिला को उसके ससुराल में घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ रहा है। महिला ने पुलिस से शिकायत की थी कि उसका पति, ससुर और बड़े भाई की पत्नी उसे पर उसके रंग-रूप को लेकर भद्दे कमेंट करते हैं।

याची ने दिया था ये तर्क

महिला की शिकायत के बाद पुलिस ने आईपीसी की धारा 498 ए (पति या रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता) के तहत केस दर्ज किया। इस एफआईआर को ही भाई की पत्नी ने केरल हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। कोई में याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता के पति के बड़े भाई की पत्नी के रूप में वह धारा 498 ए के तहत ‘रिश्तेदार’ शब्द के दायरे में नहीं आती।

कोर्ट रूम लाइव

सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि भाई की पत्नी ने महिला के शरीर पर आपत्तिजनक बातें कहीं और उसकी पढ़ाई पर भी सवाल उठाते हुए उसे अपने देवर के लिए सही नहीं बताया था। जबकि याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इस तरह के आरोपों को घरेलू हिंसा नहीं माना जाए। हालांकि, हाई कोर्ट ने माना कि अपने वैवाहिक घर में रहने वाली विवाहित महिला, जहां पति के भाई-बहन और उनके जीवनसाथी भी रहते हैं, ऐसे जीवनसाथी को आईपीसी की धारा 498 ए के तहत ‘रिश्तेदार’ मान सकती है। पीठ ने आगे स्पष्ट किया कि शरीर को शर्मसार करना और शिकायतकर्ता की योग्यता पर सवाल उठाना, जैसा कि आरोप लगाया गया है, प्रथम दृष्टया धारा 498 ए के स्पष्टीकरण (ए) के तहत उसके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने की संभावना वाला जानबूझकर किया गया आचरण है।

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First published on: Nov 19, 2024 04:27 PM

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