Sunlight Side Effects On Face: जून की भयंकर गर्मी का महीना है और कई इलाकों में तापमान तेजी से बढ़ता ही जा रहा है और इससे शरीर में कई तरह की समस्याएं होती हैं। तेज गर्मी के कारण चेहरे के साथ-साथ कई गंभीर बीमारियां भी होने का रिस्क रहता है। ऐसे में बहुत जरूरी है कि चिलचिलाती गर्मी में स्किन से जुड़ी समस्याएं पर ध्यान दें, ताकि धूप आपका निखार न छीन पाए।
क्योंकि इस मौसम में अगर स्किन की देखभाल न किया जाए, तो चेहरे पर झुर्रियां, पिंपल्स हो जाते हैं। इसके अलावा चेहरे का कलर भी चेंज हो जाता है और आपकी त्वचा बेजान सी हो जाती है। गर्मियों में स्किन ग्लोइंग रखने के लिए त्वचा की अच्छे से केयर करनी पड़ती है। ऐसे में इस झुलसती गर्मी और धूप से स्किन का बचाव कैसे करें, आइए जान लेते हैं।
ये होती हैं समस्याएं
स्किन टैन
यह सबसे कॉमन है। जिन अंगों पर सीधी धूप पड़ती है, वे काले पड़ने लगते हैं। कई बार यह रंग 1 से 2 दिनों में ठीक हो जाता है। तो कई बार कुछ आसानी से नहीं जा पाता है।
टिप्स- सनस्क्रीन लगाएं। विटामिन-C वाली क्रीम लगाना फायदेमंद है। छाते और हैट का इस्तेमाल करें। खासकर, हंटर हैट (काउबॉय हैट) का यूज करें। पूरे शरीर को ढकने वाले कपड़े पहनें। अपनी कैपेसिटी के मुताबिक झेल सके, उतने मोटाई वाले कपड़े पहनें। इसमें खादी, सूती अच्छा ऑप्शन है।
स्किन/सनबर्न
रेडनेस आ जाती है या फिर स्किन पर पपड़ी बनने लगती है। हमारे देश में यह पहाड़ी इलाकों में ज्यादा देखने को मिलता है।
टिप्स- सनस्क्रीन और स्टेरॉइड क्रीम का इस्तेमाल करना पड़ता है। बिना डॉक्टर की सलाह के बिल्कुल यूज ना करें।
झाइयां
सूर्य की किरणों के संपर्क में आने से चेहरे पर गहरे और भूरे धब्बे बढ़ जाते हैं।
किन बीमारियों में बदलता है स्किन का रंग
वैसे तो स्किन का रंग सबसे ज्यादा टैन होने के बाद ही बदलता है। स्किन काली पड़ती है, लेकिन कई बीमारियां भी होती हैं, जिनमे स्किन काली पड़ सकती है। ऐसे में लक्षणों के आधार पर और जांच के बाद ही डॉक्टर बताते हैं कि स्किन के कलर में बदलाव किस वजह से हुआ है।
फैटी लिवर- इसमें माथे, गर्दन, बाजू आदि की स्किन का रंग काला पड़ सकता है।
लक्षण- बहुत ज्यादा थकावट, कुछ लोगों के हाथ-पैरों में सूजन होना, पीलिया होना या पीलिया जैसे लक्षण आंखें पीली होना, शुगर का मरीज होना दिख सकते हैं।
किडनी की परेशानी- इसमें भी घुटनों से नीचे की स्किन का कलर काला पड़ सकता है।
लक्षण- यूरिन की मात्रा बढ़ना या कमी, यूरिन में झाग या बुलबुले बनना आदि। थकावट होना। हमेशा लेटे रहने का मन होना। किडनी की परेशानी ज्यादातर हाई बीपी और शुगर के मरीजों में ज्यादा होता है।
मेलास्मा- यह हार्मोनल बदलाव, प्रेग्नेंसी की वजह से, ओरल कॉन्ट्रासेप्टिव लेने से और सूर्य की किरणों के संपर्क में आने से होता है। इसका इलाज काफी लंबा चलता है।
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