स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी (SMA) एक दुर्लभ लेकिन गंभीर जेनेटिक बीमारी है, जो मुख्य रूप से बच्चों को प्रभावित करती है। इस बीमारी में मांसपेशियों को नियंत्रित करने वाली नसें धीरे-धीरे काम करना बंद कर देती हैं, जिससे शरीर में कमजोरी आ जाती है। इस बीमारी में जिस दवा का सेवन किया जाता है, उसके दाम बहुत अधिक होते हैं कि आम लोग इन्हें नहीं खरीद पाते हैं। हेल्थ रिपोर्ट्स बताती हैं कि इस बीमारी के उपचार में सालाना 72 लाख रुपये खर्च होते हैं, जो कि भारत के आम लोगों की जेब पर खासा असर डालती है। इस बीमारी से पीड़ित भारतीय बच्चों के माता-पिता ने फार्मा कंपनी नैटको की घोषणा का स्वागत भी किया है, जिसमें उन्होंने दवा के दाम कम करने की बात कही है।
यह दवा रिस्डिप्लाम नाम की है। यह एक ओरल मेडिकेशन दवा है, जिसे स्वास्थ्य विभाग द्वारा भी प्रमाणित किया गया है। इस दवा को रोश एक अन्य कंपनी द्वारा लिया जा रहा है। इसके एक अंश पर दवा उपलब्ध करवाई जाएगी। SMA की दवा के प्रति वर्ष 72 लाख के खर्चे को 5 लाख तक कम किया जा सकता है।
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कंपनी का दावा
नैटको ने भारत में दवा के लॉन्च पर कहा है कि इस दवा की 60 मिलीग्राम बोतल का दाम 15,900 रुपये रखने का फैसला किया है। 20 किलोग्राम से अधिक वजन वाले लोगों को प्रति माह लगभग 2 से 3 बोतलों की आवश्यकता होती है। हालांकि, नैटको का रिस्डिप्लाम प्रोड्यूस करने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट की पीठ के फैसले पर निर्भर करता है। कोर्ट ने नैटको द्वारा दवा बनाने वाली रोश कंपनी की याचिका को खारिज कर दिया था।
पीड़ित के माता-पिता ने क्या कहा?
SMA रोग से पीड़ित बच्चे के माता-पिता ने कहा कि दवा के दाम में कटौती होने से दवा की उपलब्धता और पहुंच बढ़ेगी। दवा अगर प्रभावी और सुरक्षित हो, तो यह गेम चेंजर साबित होगी। इससे मरीजों की सेहत पर भी अच्छा असर देखने को मिलेगा।
लोकल प्रोडक्शन से दाम में गिरावट होगी
इस बीमारी से पीड़ित मरीज सेबा पीए ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए बताया कि भारत की तुलना में चीन और पाकिस्तान में दवा के दाम काफी कम हैं। चीन में एक बोतल दवा की कीमत 44, 700 रुपये है और पाकिस्तान में 41,000 रुपये प्रति बोतल है। याचिका में बताया गया है कि ये दवाएं भारत में मिलने वाली दवा के मुकाबले 80% तक कम हैं। रोश कंपनी द्वारा इस बोतल की कीमत 2 लाख रुपये तक हो सकती है। येल यूनिवर्सिटी द्वारा एक विशेषज्ञ ने दवा के निर्माण के लिए कुछ कैल्कुलेशन लगाई थी, जिसमें उन्होंने पाया कि अगर इस दवा का निर्माण लोकल प्रोडक्शन द्वारा करवाया जाए, तो दवा के दाम 3,000 रुपये से भी कम हो सकते हैं।
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