Delhi NCR Pollution: इस समय दिल्ली एनसीआर में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण के कारण लोगों को सांस लेने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। सरकार के लगातार प्रयासों के बाद भी एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) गंभीर स्थिति में है। उत्तर भारत के कई राज्यों में प्रदूषण ने लोगों की दिनचर्या पर असर डाला है। क्या ऊंची इमारतों में रहने वाले लोगों के लिए प्रदूषण और भी खतरनाक है? कुछ हेल्थ एक्सपर्ट ऊंचाई पर रहने वाले लोगों के लिए प्रदूषण को गंभीर मानते हैं, कुछ नहीं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक हेल्थ कोच डॉ. मिकी मेहता बताते हैं कि ऊंची इमारतों में अधिक ऊंचाई पर ऑक्सीजन का स्तर जमीन के मुकाबले कम होता है। शहरी इलाकों में हवा और भी जहरीली होती है।
पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से दूर होने के कारण यह स्थिर हो जाती है। जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। जिसकी वजह से तेजी से शरीर के अंगों पर प्रभाव पड़ता है। इंसान जल्दी बूढ़ा होने लगता है। डॉ. मेहता ने इंस्टाग्राम पर भी एक पोस्ट अपलोड की है। जिसमें बताया है कि इससे हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट और सांसों संबंधी दिक्कतें होने लगती हैं। रिपोर्ट के अनुसार वॉकहार्ट हॉस्पिटल्स की कंसलटेंट चेस्ट फिजिशियन डॉ. संगीता चेकर भी डॉ. मेहता की बातों का समर्थन करती हैं।
चेकर कहती हैं कि ऊंची मंजिलों पर रहने से शानदार दृश्य तो दिखते हैं, लेकिन इनडोर एयर की खराब गुणवत्ता के कारण सुनने और सांस लेने संबंधी दिक्कतें हो सकती हैं। इंसान को समय से पहले ही अस्थमा, राइनाटिस जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। ऊंची बिल्डिंगों में वायु दाब (air pressure) कम होता है। फरीदाबाद के फोर्टिस हॉस्पिटल के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. रवि शेखर झा भी इस बात पर जोर देते हैं। वे कहते हैं कि ऊंची इमारतों में रहने वाले यूथ को ज्यादा खतरा नहीं होता। लेकिन बुजुर्गों और गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों को स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों का खतरा अधिक होता है।
इनडोर एयर क्वालिटी में सुधार जरूरी
बिरला अस्पताल दिल्ली के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. विकास मित्तल के अनुसार जो लोग ऊंची इमारतों में रहते हैं, उनको सीधे तौर पर फेफड़ों की बीमारी का जोखिम नहीं होता। ऊंचाई पर रहने वाले लोग वाहनों के धुएं, उत्सर्जन और औद्योगिक इकाइयों के धुएं जैसे आम जमीनी स्तर के प्रदूषकों के संपर्क में जल्दी नहीं आते। ऊंची इमारतों का अच्छा वेंटिलेशन सिस्टम ताजी हवा को प्रसारित कर पार्टिकुलेट मैटर को अगर फिल्टर कर रहा है तो इनडोर एयर क्वालिटी में सुधार होगा। जो यहां रहने वाले लोगों के लिए सही है।
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उदाहरण के लिए 50 मंजिला बिल्डिंग के भूतल, मध्य भाग और शीर्ष मंजिलों में अलग-अलग वायु दाब हो सकता है। जो इतना अधिक खतरनाक नहीं होता। ऊंचाई पर हर 100 मीटर (328 फीट) में वायु दाब 12hpa (hectopascals) यानी समुद्र तल के दबाव का लगभग 1.2 फीसदी तक कम होता जाता है। यह स्वस्थ व्यक्तियों पर कुछ खास असर नहीं डालता। लेकिन बुजुर्गों और गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए हानिकारक हो सकता है। अधिक ऊंचाई पर रहने वाले लोगों में प्रदूषण का जोखिम ज्यादा है, इस दावे में कोई सच्चाई नहीं है। ऊंची बिल्डिंगों में हवा पतली होती है और PM 2.5 भी कम होता है। ऐसे में प्रदूषण का स्तर कम होता है।
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जोखिम किसके लिए अधिक?
डॉ. कुमार बताते हैं कि जो फ्लैट सड़क से 500 मीटर के दायरे में होते हैं, वहां प्रदूषण की आशंका अधिक होती है। स्विट्जरलैंड में 15 लाख लोगों पर एक सर्वे किया गया था। जिसमें पाया गया था कि जो लोग अधिक ऊंचाई पर रहते हैं, वे ध्वनि प्रदूषण की चपेट में कम आते हैं। अध्ययन में विभिन्न मंजिलों पर रहने वाले लोगों के लिए अलग-अलग बातें सामने आई थीं। जो लोग 8वीं या इससे ऊपरी मंजिल पर रहते हैं, उनकी तुलना में फेफड़ों की बीमारी से मरने की आशंका ग्राउंड फ्लोर पर रहने वाले लोगों में 40 फीसदी ज्यादा मिली थी।
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उनमें ह्रदय रोग से मरने की दर 35 फीसदी अधिक मिली थी। फेफड़ों के कैंसर का जोखिम 22 फीसदी तक अधिक मिला था। कुल मिलाकर रिपोर्ट में सामने आया था कि ग्राउंड फ्लोर पर रहने वाले लोगों में मृत्य दर 8वीं या इससे अधिक ऊंचाई पर रहने वाले लोगों की तुलना में 22 फीसदी अधिक पाई गई थी। निष्कर्ष यही निकलता है कि जो लोग अधिक ऊंचाई पर रहते हैं, वे बेहतर और स्वस्थ जीवन जीते हैं।
Disclaimer: ऊपर दी गई जानकारी पर अमल करने से पहले विशेषज्ञों से राय अवश्य लें। News24 की ओर से जानकारी का दावा नहीं किया जा रहा है।