Doctor’s urgent warning for parents: दुनिया में हर मां- बाप का सपना होता है कि उनकी संतान हेल्दी और फिट हो, लेकिन क्या आपको पता है कि मां-बाप के द्वारा बच्चे की डाइट से संबंधी गलती बच्चे की टांगों की साइज को खराब कर सकती है। डॉक्टरों का कहना है कि नवजात शिशु के शरीर का विकास धीरे-धीरे होता है। ऐसे में शिशु के शरीर में क्या नकारात्मक बदलाव होते हैं वो तुरंत पता नहीं चल पाते। लंदन में नवजात शिशुओं को लेकर कुछ आश्चर्यचकित करने वाली बातें सामने आई हैं। जन्म के कुछ महीने बाद माता-पिता ने देखा कि उनके बच्चों के पैर अंदर की ओर झुकने लगे थे। इस पर लोगों ने डॉक्टर्स से संपर्क किया।
नवजात बच्चों के लिए विटामिन डी जरूरी
डॉक्टरों ने बच्चों की जांच के बाद पाया कि मां ने नौ महीने तक के बच्चे को केवल स्तनपान कराया था और इस अवधि के दौरान बच्चे को कोई विटामिन डी अनुपूरक नहीं दिया गया। हफ़िंगटन पोस्ट के माध्यम से डॉ मेज़र ने कहा, ‘विटामिन डी बढ़ते बच्चे की हड्डियों की ताकत का एक अनिवार्य हिस्सा है। नवजात इसे स्तन के दूध से प्राप्त नहीं कर सकते। ऐसे में उनको विटामिन डी अनुपूरक देना आवश्यक है। डॉ मेजर ने कहा कि बच्चे इसे खाद्य स्रोतों – जैसे सैल्मन, अंडे, संतरे का रस और लाल मांस, सूरज की रोशनी से भी प्राप्त कर सकते हैं। डॉक्टर ने कहा कि इसके लिए नवजात शिशु के माता-पिता शिशु विशेषज्ञों से सलाह ले सकते हैं।
यह भी पढ़ें : आठ साल की मासूम का सौतेले पिता ने किया रेप, पकड़ा गया तो बोला- देखना चाहता था कि बेटी को कैसा महसूस होगा
शिशुओं की कितना होनी चाहिए खुराक
डॉ मेजर ने बताया कि सभी विशेष रूप से स्तनपान करने वाले शिशुओं और 500 मिलीलीटर से कम फार्मूला दूध प्राप्त करने वाले शिशुओं को प्रतिदिन विटामिन डी की खुराक मिलनी चाहिए। स्वास्थ्य और सामाजिक देखभाल विभाग की सिफारिश है कि ‘जन्म से लेकर एक वर्ष तक के बच्चे, जिन्हें स्तनपान कराया जा रहा है, उन्हें 8.5 से 10 माइक्रोग्राम विटामिन डी युक्त दैनिक पूरक दिया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उन्हें पर्याप्त विटामिन डी मिले।’ मां का दूध शिशुओं के लिए एक अच्छा भोजन स्रोत माना जाता है, लेकिन इसमें लगभग कोई विटामिन डी नहीं होता है, इसलिए बच्चों में जल्दी ही विटामिन डी की कमी हो सकती है।
डॉक्टर ने पैरेंट्स को आगाह करते हुए बताया कि शिशुओं को पानी नहीं देना चाहिए। डॉकटरों की आम सहमति यह है कि शिशुओं को कम से कम छह महीने का होने तक दूध दिया जाना चाहिए। इसके बाद कभी-कभी पानी का एक घूंट सुरक्षित माना जाता है। हालांकि, जैसा कि मेयो क्लिनिक की आहार विशेषज्ञ केटी ज़ेरात्स्की ने बज़फ़ीड को बताया कि एक वर्ष की आयु तक बच्चे पानी के बिना जीवित रह सकते हैं। वह बताती हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि “उन्हें अपनी सभी तरल ज़रूरतें मानव दूध या शिशु फार्मूला के माध्यम से मिलती हैं। यहां तक कि गर्म दिन में भी वे अपनी सभी जलयोजन आवश्यकताओं को मानव दूध या शिशु फार्मूला के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं।
फ़र्स्ट स्टेप्स न्यूट्रिशन ट्रस्ट ने कहा कि पूरी तरह से स्तनपान करने वाले शिशुओं को तब तक पानी की ज़रूरत नहीं होती जब तक कि वे ठोस आहार खाना शुरू नहीं कर देते। ऐसा इसलिए है क्योंकि शिशु की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए स्तन के दूध की संरचना बदल जाती है, जिसमें पानी भी शामिल है जो स्तन के दूध का एक घटक है।”
यह भी पढ़ें : घर में घुसकर एनकाउंटर; बाथरूम में खुद को शूट करने वाला था शातिर आरोपी, पहुंच गई पुलिस