---विज्ञापन---

Explainer

‘ध्वनि मत’ तो सुना होगा, लेकिन क्या जानते हैं संसद की इस प्रक्रिया का मतलब?

किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में फैसले बहुमत से तय होते हैं और भारत की संसद भी इससे अलग नहीं है. जब किसी बिल या प्रस्ताव पर राय बनती है, तो सांसदों की सहमति या असहमति 'वोटिंग' के जरिए तय होती है.

Author Written By: Akarsh Shukla Updated: Dec 18, 2025 20:57

What is Dhvani Mat: केंद्र सरकार ‘मनरेगा’ का नाम बदलकर विकसित भारत जी राम जी (VB-G RAM G) करने जा रही है. इस दिशा में गुरुवार को लोकसभा में भारी हंगामे के बीच VB-G RAM G बिल को ध्वनि मत से पारित कर दिया गया. अब इस विधेयक को लेकर राज्यसभा में चर्चा शुरू हो गई है, जहां से इसे पारित कराने के लिए सरकार को फिर से विपक्ष संग बहस करनी पड़ेगी. आपने अक्सर संसद सत्र के दौरान कई बार ‘ध्वनि मत’ का जिक्र सुना होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि किसी विधेयक को पास कराने के लिए ‘ध्वनि मत’ प्रक्रिया क्या है?

लोकसभा में क्यों हुआ हंगामा?


‘मनरेगा’ का नाम बदलकर जी-राम-जी करने का विपक्ष ने कड़ा विरोध किया. एक तरफ जहां लोकसभा में मौजूद ‘इंडिया सांसदों’ ने इसे सरकार की नाकामी छिपाने का एक जरिया बताया, वहीं दूसरी ओर केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बिल पेश करते हुए विपक्ष पर करारा पलटवार किया. सरकार का कहना है कि यह विधेयक विकसित भारत के लक्ष्य की दिशा में एक बड़ा कदम है, जिसमें विकसित गांव को आधार बनाकर आत्मनिर्भर और समृद्ध भारत के निर्माण की परिकल्पना की गई है.

---विज्ञापन---

यह भी पढ़ें: दिल्ली में लगातार बढ़ रहा एयर पॉल्यूशन, लोकसभा में हंगामे के बीच नहीं हो पाई चर्चा

संसद में क्या होता है ‘डिविजन’?

किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में फैसले बहुमत से तय होते हैं और भारत की संसद भी इससे अलग नहीं है. जब किसी बिल या प्रस्ताव पर राय बनती है, तो सांसदों की सहमति या असहमति ‘वोटिंग’ के जरिए तय होती है. संसद की शब्दावली में इसे ‘डिविजन’ या मत विभाजन कहा जाता है. इसका मकसद यह जानना होता है कि सदन में कितने सदस्य किसी विशेष प्रस्ताव के पक्ष या विपक्ष में हैं. राज्यसभा की कार्यप्रणाली से जुड़े नियम 252 से 254 तक ‘डिविजन’ की चार अलग-अलग प्रक्रियाओं का जिक्र करते हैं.

---विज्ञापन---

क्या होता है ध्वनि मत?

पहला तरीका है ध्वनि मत (Voice Vote) जिसमें सभापति प्रस्ताव रखकर यह सांसदों से पूछते हैं, ‘जो सदस्य विधेयक के पक्ष में हैं वो ‘हां’ कहें और जो विरोध में हैं वो ‘ना’ कहें.’ दोनों ओर से आने वाली आवाजों को सुनकर सभापति फैसला लेते हैं. अगर आवाजों में अंतर साफ नहीं होता, तो आगे की प्रक्रिया यानी काउंटिंग या इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग का सहारा लिया जा सकता है. वहीं, दूसरा तरीका काउंटिंग, तीसरा ऑटोमैटिक वोट रिकॉर्डर और चौथा तरीका लॉबी में जाकर वोट देना है.

यह भी पढ़ें: दो साल की सजा के बाद महाराष्ट्र के मंत्री माणिकराव कोकाटे ने दिया इस्तीफा, अजित पवार बोले- कानून से ऊपर कोई नहीं

क्या सभापति के फैसले को दी जा सकती है चुनौती?


बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, हिमाचल प्रदेश नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर चंचल कुमार सिंह बताते हैं कि सभापति सांसदों की मांग मानने के लिए बाध्य नहीं हैं, क्योंकि संसद के संचालन से जुड़े नियम उनके विशेषाधिकार के दायरे में आते हैं. हालांकि वह यह भी कहते हैं कि अगर सभापति अपने अधिकारों का ‘मनमाने’ ढंग से इस्तेमाल करते हैं, तो उनके फैसले को अदालत में चुनौती दी जा सकती है और सुप्रीम कोर्ट को इस मसले पर सुनवाई करने का अधिकार है.

आमतौर पर संसद में देखा गया है कि कई महत्वपूर्ण विधेयक ध्वनि मत से पारित हो जाते हैं. विपक्षी दल अक्सर मत विभाजन की मांग करते हैं ताकि उनके विरोध का रिकॉर्ड बने, लेकिन अंतिम निर्णय इस पर निर्भर करता है कि सभापति किस प्रक्रिया को अपनाते हैं.

First published on: Dec 18, 2025 08:13 PM

संबंधित खबरें

Leave a Reply

You must be logged in to post a comment.