Sanjay Leela Bhansali: मशहूर फिल्ममेकर संजय लीला भंसाली इन दिनों खूब चर्चा में हैं। अब भई संजय ने अपनी पर्दे वाली ट्रिक ओटीटी पर अपनाई है, तो कुछ ना कुछ तो होना ही था। जी हां, हाल ही में ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर भंसाली की पहली वेब सीरीज ‘हीरामंडी’ रिलीज हुई है। सीरीज को लोगों का मिक्सड रिएक्शन मिल रहे हैं। हालांकि इस सीरीज से बड़ी उम्मीदें थी, जो अब टूटती नजर आ रही हैं।
पर्दे की ट्रिक हुई फेल
संजय लीला भंसाली हमेशा ही तमीज-तहजीब, रुतबा-रॉयलिटी और आलीशान सेट से लोगों को अपनी ओर खींच लेते हैं। संजय की फिल्मों में एक अलग ही भव्यता देखने को मिलती है। फिर चाहे वो देवदास हो, गंगूबाई हो, बाजीराव मस्तानी जैसी फिल्में हों। सभी फिल्मों में संजय ने रॉयलिटी दिखाई है। पर्दे की इस ट्रिक के सहारे भंसाली ने ओटीटी पर भी डेब्यू किया, लेकिन अफसोस संजय की ये ट्रिक ओटीटी पर नहीं चल सकीं।
‘हीरामंडी’ में ऐसी कौन-सी चीज छूट गई?
जी हां, भले ही ‘हीरामंडी’ में तमीज-तहजीब, रुतबा-रॉयलिटी सब दिखाया गया है, लेकिन संजय की फिल्में जो जादू पर्दे पर करती हैं, वो उनकी सीरीज ओटीटी पर करने में नाकाम रही हैं। संजय लीला भंसाली एक ऐसा नाम है, जिसे सुनते ही जहन में हिट, सुपरहिट और तमाम अवॉर्ड्स घूमने लगते हैं। फिर ‘हीरामंडी’ में ऐसी कौन-सी चीज छूट गई, जिसने संजय की सालों पुरानी ट्रिक भी फेल कर दी?
रॉयलिटी और भव्यता
दरअसल, बात अगर ‘हीरामंडी’ की करें तो ये कहना तो सीरीज के साथ बिल्कुल गलत होगा कि ‘हीरामंडी’ में रॉयलिटी और भव्यता नहीं है। जी हां… संजय ने जैसे पर्दे पर कमाल के सेट दिखाए हैं, वैसे ही उन्होंने ओटीटी को भी एक आलीशान सेट दिया है, जिसकी रॉयलिटी और सुंदरता किसी का भी दिल जीत लें, लेकिन बात अगर ‘चूक’ की करें, तो भंसाली साहब कहानी में मार खा गए।
सीरीज की कहानी ने डुबोई भंसाली साहब की नैय्या
जी हां, भले ही सीरीज का सेट कमाल का है और इसको बनाने में भंसाली ने करोड़ों रुपये खर्च किए हैं, लेकिन कहानी तो भंसाली साहब को ले डूबी। फिल्म में एक-एक कलाकार ने अपने किरदार को निभाने के लिए पूरी जान लगाई है। फिर चाहें वो मल्लिकाजान हों या फरीदन, या फिर आलमजेब और ताजदार का ही रोल क्यों ना हों। हर किसी ने बेहद कमाल का काम किया है, लेकिन सीरीज के कुछ सीन ऐसे हैं, जो कम समय में खत्म किए जा सकते थे, लेकिन उन्हें बेहद लंबा खींचा गया है। साथ ही ताज और आलम की लव-स्टोरी को और समय देना चाहिए था। बाकी की कहानी तो भंसाली साहब के लिए बेकार-सी साबित होती नजर आ रही है।
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