Jolly LLB 3 Big Mistakes: डायरेक्टर सुभाष कपूर की निर्देशित फिल्म ‘जॉली एलएलबी 3’ (Jolly LLB 3) को सिनेमाघरों में रिलीज कर दिया गया है. फिल्म में अक्षय कुमार, अरशद वारसी, अमृता राव, हुमा कुरैशी और सीमा बिस्वास जैसे कलाकारों ने अहम रोल प्ले किया है. फिल्म की कहानी समाज के एक गंभीर मुद्दे पर चोट करती है. इसमें किसानों की आत्महत्या और जबरन उनकी जमीन को हथियाने के मामले को दिखाया गया है. फिल्म में कॉमेडी का भी शानदार तड़का लगाया गया है. मेकर्स इसी कॉमेडी के चक्कर में कोर्ट की मर्यादाएं भी लांघ गए. ऐसे में आपको इस कोर्टरूम ड्रामा फिल्म में बड़ी गलतियों के बारे में बता रहे हैं, जो ये बताती हैं कि इसमें कोर्ट की गरिमा का ध्यान नहीं रखा गया है.
सुनवाई के दौरान अक्षय कुमार की कोर्ट में खिड़की से एंट्री
फिल्म ‘जॉली एलएलबी 3’ की शुरुआत में ही देखने के लिए मिलता है कि अक्षय कुमार की जब एंट्री होती है तो वह एकदम ही कमाल की होती है. फिल्म में उनकी एंट्री पसंद तो आएगी लेकिन कोर्ट की मर्यादा को तार-तार कर दिया गया है. एक केस की सुनवाई के समय उनकी एंट्री होती है और वह अदालत में खिलड़ी से एंट्री लेते हैं, जिसकी परमिशन जज बनी अभिनेत्री देती नजर आती हैं. जबकि असल कोर्ट में इसे कोर्ट की गरिमा के खिलाफ माना जाएगा.
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वकील बने अक्षय कुमार स्पोर्ट्स शूज में आते हैं नजर
‘जॉली एलएलबी 3’ में देखने के लिए मिला कि जगदेश्वर मिश्रा उर्फ जॉली नंबर 2 यानी कि अक्षय कुमार पूरी फिल्म में कोर्ट में स्पोर्ट्स जूता पहने हुए दिखते हैं. जबकि चाहे जिला अदालत हो या फिर कोई अन्य कोर्ट में वकीलों को ब्लैक शूज पहनकर ही आने की अनुमति होती है. लेकिन, अक्षय केस की सुनवाई के दौरान भी स्पोर्ट्स जूते में दिखाई देते हैं.
जज बने सौरभ शुक्ला केस के मुख्य आयुक्त से नमस्ते करते हैं
वहीं, ‘जॉली एलएलबी 3’ की कहानी में एक बिजनेसमैन होता है, जो राजस्थान के बीकानेर के छोटे गांव परसौल में अपनी इंडस्ट्री लगाना चाहता है और वह बड़ा आदमी होता है. इस रोल को गजराज राव ने प्ले किया है, जिसका नाम हरिभाई खैतान होता है. जब वो अपने केस के सिलसिले में सौरभ शुक्ला की अदालत में आते हैं तो वह उन्हें देखने का अनुरोध करते हैं साथ ही उन्हें हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं, जो कि कोर्ट की गरिमा के खिलाफ है. एक जज कभी भी केस के मुख्य आयुक्त को नमस्ते नहीं करता है. इससे कोर्ट पर सवाल खड़े हो सकते हैं कि केस की सुनवाई एक तरफा हुई या हो रही है.
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वकील बने राम कपूर केस की सुनवाई पर टाई लगाकर आते हैं
इतना ही नहीं, फिल्म में दिखाया गया है कि राम कपूर के बड़े वकील की भूमिका प्ले कर रहे हैं, जिनके कैरेक्टर का नाम विक्रम होता है. वह नामी वकील होने के नाते पूरे रौब में नजर आते हैं. एक जगह तो वह जज को भी रोक देते हैं एक मिनट कहकर. उन्हें केस की सुनवाई के दौरान व्हाइट बैंड की जगह टाई पहने हुए देखा जाता है, जबकि किसी भी केस की सुनवाई में वकील का बैंड पहनना जरूरी होता है.
केस सुनवाई के दौरान वकीलों का लड़ना
वहीं, कोर्ट में वकील जब किसी भी केस की सुनवाई कर रहा होता है तो वह अपनी दलीलें देता है. फैक्ट्स और कानून पर बहस की जाती है. लेकिन, इस फिल्म में दिखाया गया है कि अक्षय कुमार और अरशद वारसी कोर्ट में मर्यादाओं की परवाह किए बिना ही आपस में कु्त्ते-बिल्ली के जैसे लड़ते हैं. यहां तक कि एक सीन में अक्षय जज को अरशद वारसी का मामा कह देते हैं.
यहां देखिए ‘जॉली एलएलबी 3’ का ट्रेलर
चलती कोर्ट में हुमा कुरैशी एंट्री और इंट्रोडक्शन
किसी भी केस सुनवाई के समय उससे जुड़े लोगों की कोर्ट में एंट्री होती है और जज से उसे इंट्रोड्यूस कराया जाता है लेकिन, फिल्म में क्या दिखाया गया है कि जब अक्षय और राम कपूर गंभीर मुद्दे पर अपनी दलीलें दे रहे होते हैं तो तभी उनकी पत्नी एक्ट्रेस हुमा कुरैशी की कोर्ट में एंट्री होती है, जिसका केस से कोई ताल्लुक नहीं होता है. उन्हें अक्षय जज बने सौरभ शुक्ला से इंट्रोड्यूस कराते हैं कि ये मेरी पत्नी हैं और मेरे लिए लकी हैं. जबकि असल कोर्ट में ऐसा नहीं है. केस से जुड़ा शख्स ही चलती कोर्ट में इस तरह से एंट्री ले सकता है.
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जज बने सौरभ शुक्ला के लिए कोर्ट में अभद्र भाषा का इस्तेमाल
कोर्ट में किसी जज या फिर अदालत का अपमान करने पर न्यायालय की अवमानना का केस दर्ज किया जाता है. ऐसे में फिल्म ‘जॉली एलएलबी 3’ में तो कोर्ट में जज का भी सम्मान नहीं किया गया है. फिल्म के एक सीन में गजराज राव यानी कि हरिभाई खैतान के हक में जब चीजें नहीं हो रही होती हैं तो वो गुस्से से आगबबूला हो जाते हैं. अक्षय के कोर्ट से समय मांगते ही हरिभाई जज पर बरस पड़ते हैं. वह उनके लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हैं. हरिभाई जज बने सौरभ शुक्ला को जोकर और निकम्मा तक कह देते हैं. वह कोर्ट को टॉयलेट तक बता देते हैं. इतना ही नहीं, जज की तुलना अपने नौकर से कर देते हैं. जबकि कानूनी भाषा में इसे न्यायालय की अवमानना माना जाएगा और इस पर सजा भी हो सकती है.
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