हाल ही में बॉक्स ऑफिस पर कमाल की परफॉर्मेंस देने वाली विक्की कौशल की फिल्म ‘छावा’ अब ओटीटी पर कुछ खास असर नहीं छोड़ पा रही है। जहां थिएटर में इस फिल्म ने 800 करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार किया, वहीं नेटफ्लिक्स पर इसे दर्शकों का वैसा प्यार नहीं मिल रहा, जिसकी उम्मीद थी।
OTT पर कमजोर पड़ी छत्रपति संभाजी की गूंज
फिल्म ‘छावा’ 11 अप्रैल को नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम की गई थी। शुरुआती एक हफ्ते में फिल्म ने 2.2 मिलियन व्यूज के साथ नॉन-इंग्लिश कैटेगरी में चौथा स्थान जरूर हासिल कर लिया था, लेकिन इसके बाद फिल्म की रफ्तार बुरी तरह से धीमी पड़ गई है। वहीं, इस हफ्ते की टॉप फिल्म ‘द डैड क्वेस्ट’ बन गई है, जिसने दर्शकों का ध्यान पूरी तरह से अपनी ओर खींच लिया है।
2025 में रिलीज फिल्मों की रेस में पिछड़ी ‘छावा’
इस साल रिलीज हुई ओटीटी फिल्मों में अगर व्यूअरशिप की बात की जाए, तो यामी गौतम और प्रतीक गांधी की फिल्म ‘धूमधाम’ ने 4.1 मिलियन व्यूज के साथ पहला स्थान हासिल किया है। वहीं ‘नादानियां’ 3.9 मिलियन के साथ दूसरे और ‘देवा’ 2.8 मिलियन के साथ तीसरे नंबर पर है। ‘छावा’ भले ही चौथे पायदान पर है, लेकिन ओपनिंग के बाद इसकी गिरती लोकप्रियता चिंता का विषय बन गई है।
इतिहास के पन्नों से आई थी ये गाथा
‘छावा’ में विक्की कौशल ने मराठा योद्धा छत्रपति संभाजी महाराज का किरदार निभाया है, जबकि उनके विरोधी औरंगजेब के रूप में अक्षय खन्ना नजर आए हैं। रश्मिका मंदाना ने फिल्म में येसूबाई की भूमिका निभाई थी। ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित इस फिल्म को थिएटर में खूब सराहा गया, लेकिन नेटफ्लिक्स पर आते ही यह फिल्म अपना असर छोड़ने में नाकाम रही।
क्या है गिरावट की वजह?
ट्रेड एनालिस्ट्स का मानना है कि फिल्म की धीमी गति का एक बड़ा कारण इसकी पहले से देखी जा चुकी थिएटर रन हो सकता है। जो दर्शक पहले ही सिनेमा में इसे देख चुके हैं, वे दोबारा ओटीटी पर समय देना जरूरी नहीं समझते। साथ ही ओटीटी पर कई नई और अलग-अलग शैली की फिल्में आने के चलते ‘छावा’ को पर्याप्त एक्सपोजर नहीं मिल पा रहा है।
क्या ओटीटी पर वापसी कर पाएगी छावा?
अब ये देखना दिलचस्प होगा कि नेटफ्लिक्स इस फिल्म को प्रमोट करने के लिए कोई नई रणनीति अपनाता है या नहीं। फिलहाल तो ‘छावा’ को ओटीटी पर एक बड़ी फिल्म के तौर पर पेश करने की कोशिशों के बावजूद यह उम्मीदों पर खरी नहीं उतर रही है।
कहानी दमदार होने के बावजूद, ओटीटी पर दर्शकों का टेस्ट बदल चुका है। जहां एक ओर बड़े बजट की फिल्मों को थिएटर में शानदार रिस्पॉन्स मिल रहा है, वहीं ओटीटी पर अब कंटेंट की विविधता और नवीनता ज्यादा मायने रखती है। ऐसे में ‘छावा’ जैसी पीरियड ड्रामा फिल्मों के लिए ओटीटी पर टिके रहना अब एक चुनौती बन चुका है।
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