Make in India Rules in Government Tenders: प्रधानमंत्री मोदी ने मेक इन इंडिया का प्रचार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन सरकारी आंकड़े कहते हैं कि 10 में से 4 सरकारी टेंडर्स मेक इन इंडिया के नियमों का पालन नहीं कर सकते।
विभाग कहते हैं कि नियमों का पालन करने से कभी-कभी ज्यादा कमाई हो सकती है, लेकिन प्रोडक्ट को पब्लिक रिएक्शन और इंपोर्टेंस नहीं मिलती। कई विभागों के टेंडर में वर्णित विदेशी ब्रांड की मैन्युफैक्चरिंग भारत में होती है। ऐसे में सरकारी खरीद में मेक इन इंडिया 2017 के आदेश को लागू करना कहना के लिए जितना आसान है, असल में लागू करना उतना ही मुश्किल है।
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64000 करोड़ के टेंडर्स में नहीं हुआ नियमों का पालन
मेक इन इंडिया को प्राथमिकता बनाने के लिए लागू कानून के तहत बनाए गए नियम उन टेंडर्स पर रोक लगाते हैं, जो विदेशी ब्रांडों को प्राथमिकता देकर या टर्नओवर और उत्पादन क्षमता के आसपास पात्रता शर्तों को निर्धारित करके घरेलू सप्लायर्स को प्रतिबंधित या उनके साथ भेदभाव करते हैं और ऐसा करके वे घरेलू फर्मों को नुकसान में डाल सकते हैं।
पिछले 3 वर्षों में सरकारी विभागों द्वारा जारी 4000 करोड़ रुपये 3500 से अधिक हाई रेट वाले टेंडर्स में से 40% ऐसे टेंडर्स को चिह्नित किया गया है, जिनमें मेक इन इंडिया के नियमों का पालन नहीं हुआ। रिकॉर्ड के अनुसार, आंतरिक व्यापार (DPIIT) को मेक इन इंडिया’ अभियान के लिए नोडल एजेंसी है।
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कुछ विदेश ब्रांड की मैन्युफैक्चरिंग भारत में होती
रिकॉर्ड से पता चलता है कि लिफ्ट से लेकर CCTV कैमरे, मेडिकल सप्लाई से लेकर डेस्कटॉप कंप्यूटर तक, सभी विभाग विदेशी ब्रांडों की ओर रुख कर रहे थे और तर्क दे रहे थे कि यह उनके घरेलू समकक्षों की तुलना में बेहतरीन और गुणवत्तापूर्ण हैं। कई विभागों ने यह भी रेखांकित किया है कि उनके टेंडर्स में निर्दिष्ट कुछ विदेशी ब्रांडों की मैन्युफैकचरिंग भारत में होती है।
फरवरी 2023 में DPIIT ने पाया कि अक्टूबर 2021 से केंद्र सरकार की खरीद संस्थाओं द्वारा जारी किए गए 1750 टेंडर्स, जिनकी कीमत 1 करोड़ रुपये से अधिक है। वस्तुओं के लिए 50 करोड़ रुपये और कार्यों के लिए 100 करोड़ रुपये से अधिक रेट वाले 936 टेंडर्स थे। 53355 करोड़ के टेंडर्स ने मेक इन इंडिया के नियमों का पालन ही नहीं किया था।
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