भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में उछाल आया है। 18 अप्रैल को समाप्त सप्ताह के दौरान हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 8.31 अरब डॉलर की बढ़ोतरी के साथ 686.14 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। यह 6 महीने का उच्चतम स्तर है। इसी तरह, स्वर्ण भंडार या गोल्ड रिजर्व भी बढ़कर 84.572 अरब डॉलर हो गया है। आइए जानते हैं कि इस बढ़ोतरी के क्या मायने हैं और इस भंडार का भरे रहना देश के लिए क्यों जरूरी है।
कितना हुआ भंडार?
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के अनुसार, 18 अप्रैल को समाप्त सप्ताह में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 686.14 अरब डॉलर पहुंच गया है। पिछले लगातार 7 सप्ताह से इस भंडार में बढ़ोतरी हो रही है। हालांकि यह अभी भी अपने रिकॉर्ड स्तर से नीचे है। 27 सितंबर 2024 को समाप्त सप्ताह के दौरान देश का विदेशी मुद्रा भंडार 704.885 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर था। इसी तरह, भारत की विदेशी मुद्रा आस्तियों (FCAs) में 3.516 अरब डॉलर की वृद्धि हुई है। यह बढ़कर 578.495 अरब डॉलर हो गया है। बता दें कि देश के कुल विदेशी मुद्रा भंडार में विदेशी मुद्रा आस्तियां या फॉरेन करेंसी असेट एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।
क्या होता है ये भंडार?
विदेशी मुद्रा भंडार को देश की आर्थिक सेहत का मीटर कहा जाता है। इस भंडार का भरा रहने हर देश के लिए जरूरी है। विदेशी मुद्रा भंडार में विदेशी करेंसी, गोल्ड रिजर्व, स्पेशल ड्रॉइंग राइट (SDR), अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के पास जमा राशि और ट्रेजरी बिल्स आदि आते हैं और इन्हें केंद्रीय बैंक संभालती है। केंद्रीय बैंक का काम पेमेंट बैलेंस की निगरानी करना, मुद्रा की विदेशी विनिमय दर पर नजर रखना और वित्तीय बाजार में स्थिरता बनाए रखना है। विदेशी मुद्रा भंडार में दूसरे देशों की मुद्राएं शामिल होती हैं, लेकिन ज्यादातर विदेशी मुद्रा भंडार में सबसे बड़ा हिस्सा अमेरिकी डॉलर के रूप में होता है।
भरे रहने के फायदे?
दुनिया के अधिकतर देश अपना विदेशी मुद्रा भंडार डॉलर में रखना पसंद करते हैं, क्योंकि अधिकांश व्यापार USD में ही होता है। हालांकि, इसमें सीमित संख्या में ब्रिटिश पाउंड, यूरो और जापानी येन भी हो सकते हैं। विदेशी मुद्रा भंडार के भरे रहने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि भी निखरती है, क्योंकि उस स्थिति में व्यापारिक साझेदार देश अपने भुगतान के बारे में सुनिश्चित रह सकते हैं। इस भंडार का इस्तेमाल देश की देनदारियों को पूरा करने के साथ ही कई दूसरे महत्वपूर्ण कामों में किया जाता है।
खाली होने के नुकसान?
विदेशी मुद्रा भंडार के लगातार कम होने से कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। जैसे कि इससे देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ता है, देश के लिए आयात बिल का भुगतान करना मुश्किल हो सकता है। जबकि इस भंडार के भरे रहने से सरकार और आरबीआई किसी भी वित्तीय संकट से निपटने में सक्षम हो जाते हैं। RBI विदेशी मुद्रा भंडार के कस्टोडियन या मैनेजर के रूप में काम करता है और उसे सरकार से साथ मिलकर तैयार किए गए पॉलिसी फ्रेमवर्क के अनुसार करना होता है।
क्या है गोल्ड रिजर्व?
सरकार या सरकारी बैंक के पास जमा गया सोना ‘गोल्ड रिजर्व’ कहलाता है। चीन सहित दुनिया के कई केंद्रीय बैंकों की तरह RBI ने भी अपने स्वर्ण भंडार में इजाफा किया है। दरअसल, सोने की खरीद से सेंट्रल बैंक को करेंसी की अस्थिरता को संतुलित करने के साथ-साथ रिजर्व के रीवैल्यूएशन से खुद को बचाने में मदद मिलती है। डॉलर की मजबूती के दौरान रीवैल्यूएशन लॉस का रिस्क बढ़ जाता है। इसलिए केंद्रीय बैंक गोल्ड खरीदते हैं। इसे विदेशी मुद्रा भंडार के असेट्स में विविधता लाने की कोशिश के तौर पर भी देखा जाता है। अक्सर केंद्रीय बैंक भू-राजनीतिक तनावों से उत्पन्न अनिश्चितता के समय में मुद्रास्फीति के खिलाफ बचाव और विदेशी मुद्रा जोखिमों को कम करने के उद्देश्य से अपना स्वर्ण भंडार बढ़ाते हैं। 2018 से 2022 तक भारत का गोल्ड रिजर्व 36.8 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ा है।
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