Non-Performing Assets: बैंकों का NPA यानी नॉन परफॉर्मिंग एसेट हमेशा से चिंता का विषय रहा है। हालांकि, बीते कुछ सालों में इसमें कमी जरूर आई है, लेकिन अभी भी इस दिशा में काफी कुछ किया जाना है। इस बीच, ग्लोबल रेटिंग एजेंसी फिच ने बैंकों के NPA को लेकर कुछ अच्छा कहा है। फिच का अनुमान है कि भारतीय बैंकों का ग्रॉस NPA मार्च 2025 तक 40 बेसिस पॉइंट्स घटकर 2.4 प्रतिशत हो सकता है। इसी तरह, अगले वित्तीय वर्ष में इसमें और 20 बेसिस पॉइंट्स की कमी संभव है।
इस तरह भरपाई संभव
फिच की रिपोर्ट में कहा गया है कि असुरक्षित क्रेडिट सहित दूसरों कारणों से रिटेल क्रेडिट में तनाव बढ़ रहा है, लेकिन मजबूत आर्थिक वृद्धि, वसूली और राइट-ऑफ से खराब ऋणों में वृद्धि की भरपाई होने की उम्मीद है। रेटिंग एजेंसी के अनुसार, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2025 में बिगड़ा हुआ ऋण अनुपात कम हो जाएगा। हालांकि, यह वित्त वर्ष 2026 में बढ़कर लगभग 3 प्रतिशत हो सकता है।
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बढ़ रहा है तनाव
असुरक्षित व्यक्तिगत ऋण और क्रेडिट कार्ड उधारी FY24 तक तीन वर्षों में क्रमशः 22% और 25% की वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ी है। हालांकि, FY25 की पहली छमाही (1HFY25) में इनकी वृद्धि क्रमशः 11 प्रतिशत और 18 प्रतिशत तक धीमी हो गई। एशिया प्रशांत क्षेत्र के कई उभरते बाजारों की तुलना में भारत का घरेलू ऋण कम बना हुआ है – जून 2024 तक यह सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 42.9 प्रतिशत था, लेकिन असुरक्षित खुदरा ऋणों से तनाव बढ़ रहा है, जो 1HFY25 में नए Bad Retail Loan का लगभग 52 प्रतिशत है।
बना रहेगा जोखिम
रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में ऋण तनाव छोटे असुरक्षित व्यक्तिगत लोन में केंद्रित है, जिनका औसत आकार लगभग 51,000 रुपये से कम है। फिच ने कहा कि बड़े भारतीय बैंकों का ऐसे जोखिम भरे ऋणों के प्रति जोखिम आनुपातिक रूप से कम हो सकता है, लेकिन वे पूरी तरह से अछूते नहीं हैं। बैंकों का अप्रत्यक्ष जोखिम नॉन-बैंकिंग और फिनटेक कंपनियों को फंडिंग के जरिए बना रहेगा है।