डॉ आशीष कुमार। सावन (Sawan) लोगों की आशाओं-इच्छाओं की पूर्ति का महीना है। गर्मी की तपिश से झुलसती पृथ्वी जिस प्रकार सावन (Sawan) की शीतल बौछारों से अपनी प्यास बुझाती है, उसी प्रकार सावन (Sawan) के महीने में शिव की भक्ति भक्तों के मन के सूनेपन को दूर करके असीम तृप्ति देती है।
धर्मशास्त्रों में सावन माह के महत्व (Importance of Sawan) के बारे में विस्तार से लिखा हुआ है। शास्त्रों में लिखा हुआ है कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी यानी देवशयनी एकादशी को जगत के पालक श्रीहरि विष्णु योगनिद्रा के लिए क्षीरसागर के लिए प्रस्थान कर जाते हैं। इस अवधि में भगवान महादेव अपनी पत्नी सहित जीव जगत के कल्याण और पालन के लिए मृत्युलोक का दायित्व निर्वहन करते हैं।
मनोकामना पूर्ति का अद्भूत संयोग
शास्त्र मान्यता है कि जगत का परम कल्याण करने वाले देवाधिदेव महादेव जाग्रत अवस्था में रहकर सृष्टि संचालन करते हैं। इस दौरान पड़ने वाले सावन माह में शिव आरधना विशेष फलित होती है। भक्ति और मनोकामना पूर्ति का अद्भूत संयोग बनता है। बाबा भोलेनाथ को अपने भक्तों का कल्याण अति प्रिय है। प्रकृति शक्ति पार्वती को भी अपने भक्तों पर असीम कृपा करना मनभावन है।
भगवान शिव को क्यों पसंद है जलाभिषेक?
मान्यता है कि श्रावण मास की उत्पत्ति श्रवण नक्षत्र से हुई है। श्रवण नक्षत्र का स्वामी ग्रह चंद्रमा को माना जाता है जो महादेव के मस्तक पर विराजित रहता है। श्रवण नक्षत्र का कारक तत्व जल का माना जाता है, इसलिए भगवान शिव को जलाभिषेक अतिप्रिय है। कहा जाता है कि सागर मंथन से निकले हलाहल का पान करके बाद भगवान शिव को शांत करने लिए देवताओं ने देवाधिदेव महादेव का जलाभिषेक किया था।
सावन में सोमवार व्रत की महिमा
श्रावण माहात्य में बताया गया है कि सती ने योगाग्नि से स्वयं के शरीर को भस्म करने से पूर्व प्रत्येक जन्म में शिव को पति रूप में प्राप्त करने का संकल्प लिया था। अगले जन्म में सती ने हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लेकर युवावस्था से ही निराहार रहकर कठोर तपस्या कर भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया। वह माह सावन ही था, जिसमें उन्होंने भगवान शिव को तपस्या के द्वारा प्रसन्न कर पति के रूप में प्राप्त किया। कन्याएं पूरे सावन माह हर सोमवार शिव के समान स्त्री का सम्मान करने वाले पति प्राप्ति की कामना से रुद्राभिषेक और पूजन करती हैं। भक्त लोग मोक्ष और कल्याण के लिए परम दयालु भगवान की आराधना उपासना करते हैं।
सावन, प्रकृति और सोलह श्रृंगार
यकीनन, गर्मी की तपिश के बाद बरसते बादलों से घिरा आकाश और धरती पर उमड़ती बरखा बहार जीव जगत के लिए प्रकृति का अनुपम उपहार है। सावन मास में धरा श्रृंगार करके जीवों को हर्षित करने के लिए तैयार हो जाती है। कोयल की कूक, नदी-नालों, झरनों का कल-कल निनाद, फल-फूल से लदी पेड़-पौधों की डालियां, जंगल-बागानों की हरियाली धरती के सोलह श्रृंगार का आभास कराती है। सावन माह प्रकृति का सोलह श्रृंगार करता है।