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शेख हसीना को बांग्लादेश के हवाले करेगा भारत? क्या मोदी सरकार प्रत्यर्पण से कर सकती है इनकार, जानें नियम

साल 2024 में बांग्लादेश में विद्रोह के बाद सरकार और देश छोड़ने पर मजबूर हुईं शेख हसीना फिलहाल भारत में शरणार्थी के तौर पर रह रही हैं. सोमवार का दिन शेख हसीना के लिए एक बुरी खबर लेकर आया, जब बांग्लादेश इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल (ICT) द्वारा पिछले वर्ष हुए देशव्यापी विद्रोह में आंदोलनकारियों पर कथित […]

Author Written By: Akarsh Shukla Author Published By : Akarsh Shukla Updated: Nov 17, 2025 18:42

साल 2024 में बांग्लादेश में विद्रोह के बाद सरकार और देश छोड़ने पर मजबूर हुईं शेख हसीना फिलहाल भारत में शरणार्थी के तौर पर रह रही हैं. सोमवार का दिन शेख हसीना के लिए एक बुरी खबर लेकर आया, जब बांग्लादेश इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल (ICT) द्वारा पिछले वर्ष हुए देशव्यापी विद्रोह में आंदोलनकारियों पर कथित हिंसक कार्रवाई करने के लिए उन्हें मौत की सजा सुनाई गई. शेख हसीना के अलावा बांग्लादेश के पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल को भी बांग्लादेश की कोर्ट द्वारा फांसी की सजा सुनाई गई है. अब बांग्लादेश ने भारत से अपील की है कि शेख हसीना और असदुज्जमां को उन्हें सौंप दिया जाए.

क्या भारत बचा सकता है शेख हसीना की जान?


अपने आग्रह में बांग्लादेश ने पत्यर्पण संधि का हवाला देते हुए कहा, ‘प्रत्यर्पण संधि के तहत नई दिल्ली ऐसा करने के लिए बाध्य है. पिछले साल हिंसक छात्र विरोध प्रदर्शनों के बाद भागी हसीना तब से भारत में हैं’. अभी तक भारत सरकार की तरफ से इस आग्रह पर कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, लेकिन अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या शेख हसीना को बांग्लादेश जाना होगा? भारत और बांग्लादेश के बीच संधि पर नजर डालें तो मोदी सरकार के लिए शेख हसीना के प्रत्यपर्ण से इनकार करना मुश्किल होगा, लेकिन कई ऐसी शर्तें भी हैं, जिनके आधार पर भारत ये काम कर भी सकता है.

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क्या कहती है भारत और बांग्लादेश की संधि?


भारत और बांग्लादेश ने वर्ष 2013 में एक प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर किए थे, जिसका मुख्य उद्देश्य दोनों देशों की सीमाओं पर बढ़ते आतंकवाद और उग्रवाद पर संयुक्त रूप से रोक लगाना था. बाद में 2016 में इसमें संशोधन कर भगोड़ों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया को और आसान बना दिया गया. इस समझौते के तहत कई महत्वपूर्ण अपराधियों और राजनीतिक कैदियों को एक-दूसरे को सौंपा गया, जैसे 1975 में शेख मुजीबुर रहमान की हत्या में शामिल दोषियों और उल्फा के महासचिव अनूप चेतिया का प्रत्यर्पण. इस संधि के अनुसार किसी व्यक्ति का प्रत्यर्पण तभी हो सकता है जब अपराध दोनों देशों में दंडनीय हो और उसके लिए कम से कम एक वर्ष की सजा निर्धारित हो. साथ ही अपराध में सहायता करने या उकसाने वाले व्यक्ति पर भी यह संधि लागू होती है.

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अगर भारत कर दे प्रत्यर्पण से इनकार?


भारत को प्रत्यर्पण से इनकार करने का अधिकार भी इस संधि में दिया गया है, लेकिन इसके लिए कुछ शर्तें हैं. अनुच्छेद 6 के अनुसार यदि कोई अपराध राजनीतिक प्रकृति का माने जाने योग्य हो तो प्रत्यर्पण को रोका जा सकता है, लेकिन हत्या, अपहरण और आतंकवाद जैसे गंभीर अपराध इसमें शामिल नहीं हैं. अनुच्छेद 7 और 8 के तहत भारत अनुरोध को इस आधार पर भी ठुकरा सकता है कि मामला भारत में पहले से विचाराधीन है या आरोप दुर्भावनापूर्ण और अन्यायपूर्ण हैं. ऐसे में भारत यह तर्क दे सकता है कि यदि किसी व्यक्ति को प्रत्यर्पित किया गया तो उसे बांग्लादेश में राजनीतिक प्रतिशोध या अनुचित न्यायिक प्रक्रिया का सामना करना पड़ सकता है.

First published on: Nov 17, 2025 06:37 PM

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