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16.5 करोड़ साल…डायनासोर, कीड़े-मकौड़े और मछलियां? वैज्ञानिकों ने तलाशा तीनों का चौंकाने वाला कनेक्शन

Scientific Research On Dinosaur: पोलैंड के वैज्ञानिकों ने डायनासोर के जीवन पर एक रिसर्च की है, जिसमें उनके खान-पान को लेकर चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। हालांकि रिसर्च को लेकर वैज्ञानिकों में मतभेद है, लेकिन डायनासोर के जीवन से जुड़ी इस रिसर्च को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

Edited By : Khushbu Goyal | Updated: Dec 1, 2024 09:24
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Dinosaur
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Scientific Research About Dinosaur: आज से 6.5 करोड़ साल पहले धरती पर डायनासोर थे और वे धरती पर करीब 16.5 करोड़ (165 मिलियन) साल रहे। साढ़े 6 करोड़ साल पर धरती से एक एस्ट्रॉयड टकराया और डायनासोर विलुप्त हो गए। अब डायनासोर को लेकर वैज्ञानिकों ने एक और रिसर्च की है। इस रिसर्च को करने के लिए पोलैंड के वैज्ञानिकों ने डायनासोर के जीवाश्म मल और उल्टी के नमूनों का इस्तेमाल किया।

इस रिसर्च में वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि लाखों साल पहले डायनासोर पृथ्वी पर कैसे हावी हुए? हालांकि शोधकर्ता निश्चित नहीं हैं कि 3 करोड़ सालों के दौरान डायनासोर अस्तित्व में आए थे। उप्साला विश्वविद्यालय के रिसर्चर मार्टिन क्वार्नस्ट्रॉम ने गत बुधवार को प्रकाशित नेचर जर्नल में इस रिसर्च पर छपे आर्टिकल में यह जानकारी दी।

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डायनासोर मौसम के अनुकूल खुद को ढाल लेते थे

नेचर जर्नल में बुधवार को प्रकाशित रिसर्च में बताया गया कि वैज्ञानिकों ने डायनासोर के मल और उल्टी का विश्लेषण करके पता लगाया कि 20 करोड़ साल पहले कौन-किसे खा रहा था? पहले डायनासोर खाने वाले थे और वे बहुत जीवट जानवर थे, इसलिए वे कुछ भी खा सकते थे। उनके भोजन में कीड़े, मछली और पौधे शामिल थे। जब जलवायु परिस्थितियां बदलीं तो वे तेजी से अनुकूलन करने लगे।

वे खुद को परिस्थितियों के अनुसार ढाल लेते थे। पौधे खाने वाले डायनासोर उस समय के अन्य शाकाहारियों की तुलना में कई प्रकार की हरी सब्जियां खाते थे, इसलिए जब हवा में नमी पैदा हुई तो पौधों की नई प्रजातियों का जन्म हुआ। चूंकि रिसर्च के निष्कर्ष पोलिश जीवाश्मों तक ही सीमित थे, इसलिए क्वार्नस्ट्रॉम ने कहा कि वह यह देखना चाहेंगे कि क्या उनकी रिसर्च के निष्कर्ष दुनियाभर के जीवाश्म रिकॉर्ड के खिलाफ हैं?

डायनासोर सब्जियों के साथ कीड़े-मछलियां खाते थे

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, एरलैंगेन-नूरेमबर्ग विश्वविद्यालय की जीवाश्म जीवविज्ञानी एम्मा डन ने कहा कि वैज्ञानिकों के लिए धरती पर रहे जानवरों को समझने के लिए प्राचीन मल पदार्थ का अध्ययन करना असामान्य नहीं है, लेकिन जीवाश्म मल, पत्थर के धब्बों या टुकड़ों जैसा दिख सकता है। वे हमेशा उस जानवर के जीवाश्मों के पास नहीं पाए जाते हैं, जिसने उन्हें बनाया था, इसलिए वैज्ञानिकों के लिए यह जानना मुश्किल हो जाता है कि वे कहां से आए हैं? इस अध्ययन में शोधकर्ताओं को मल के भीतर मछली के शल्क, कीटों के टुकड़े और हड्डियों के टुकड़े मिले। इन्हीं का अध्ययन वैज्ञानिकों ने किया।

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Edited By

Khushbu Goyal

First published on: Dec 01, 2024 09:24 AM

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