Material Change Clause: आज के समय में हेल्थ इंश्योरेंस सिर्फ एक पॉलिसी नहीं, बल्कि मुश्किल वक्त में आर्थिक सहारा होता है. बीमा का मकसद यही होता है कि बीमारी या इलाज के खर्च की चिंता आपको न करनी पड़े. लेकिन हाल ही में एक ऐसा नियम चर्चा में है जो कई लोगों के लिए परेशानी का कारण बन सकता है- इसका नाम है मैटेरियल चेंज क्लॉज. यह नियम कई हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसियों में शामिल किया जा रहा है और इसे लेकर विशेषज्ञों ने चिंता जताई है. आइए जानते हैं कि यह क्लॉज क्या है, कैसे असर डाल सकता है और आपको क्या सावधानी बरतनी चाहिए.
क्या होता है मैटेरियल चेंज क्लॉज?
इस क्लॉज के तहत अगर आप हेल्थ इंश्योरेंस लेने के बाद किसी नई बीमारी से पीड़ित हो जाते हैं, बड़ी सर्जरी कराते हैं या आपकी सेहत में बड़ा बदलाव आता है, तो आपको इसकी जानकारी बीमा कंपनी को देनी होती है. ऐसा करने पर बीमा कंपनी को यह अधिकार मिल जाता है कि वह पॉलिसी रिन्यू करते समय प्रीमियम बढ़ा सकती है, कवरेज घटा सकती है या नई शर्तें जोड़ सकती है.
जनरल इंश्योरेंस एजेंट्स फेडरेशन इंटीग्रेटेड के मुताबिक, कुछ कंपनियां जैसे Acko, ICICI Lombard, SBI General और Juno General Insurance ने अपनी कुछ हेल्थ पॉलिसियों में यह क्लॉज जोड़ा है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कंपनी इसका इस्तेमाल ग्राहकों पर अनुचित भार डालने के लिए करती है, तो यह IRDAI (बीमा नियामक संस्था) के नियमों का उल्लंघन हो सकता है.
IRDAI के नियम क्या कहते हैं?
IRDAI ने ग्राहकों के हितों की रक्षा के लिए हेल्थ इंश्योरेंस पर कुछ स्पष्ट दिशानिर्देश बनाए हैं. इन नियमों के अनुसार:
- हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी लाइफटाइम रिन्यूएबल होती है.
- कंपनी केवल धोखाधड़ी या गलत जानकारी छिपाने की स्थिति में ही रिन्यू करने से मना कर सकती है.
- बीमारी हो जाने या क्लेम करने के बाद प्रीमियम बढ़ाना या शर्तें बदलना गलत माना जाता है.
- किसी भी बदलाव को तभी लागू किया जा सकता है, जब वह सभी ग्राहकों पर समान रूप से लागू हो, न कि किसी एक व्यक्ति पर.
इन नियमों से साफ है कि बीमा कंपनियां अपने मनमुताबिक बदलाव नहीं कर सकतीं. अगर वे ऐसा करती हैं, तो यह उपभोक्ता अधिकारों का उल्लंघन है.
अगर नई बीमारी हो जाए तो क्या करें?
अगर इंश्योरेंस पॉलिसी लेने के बाद आपको कोई नई बीमारी हो जाती है, तो घबराने की बजाय सही प्रक्रिया अपनाएं-
- 1. बीमा कंपनी को तुरंत जानकारी दें: किसी भी बीमारी या सर्जरी को छिपाएं नहीं. बीमा कंपनी को इसकी लिखित जानकारी दें. इससे भविष्य में क्लेम रिजेक्शन की संभावना कम हो जाएगी.
- 2. सभी मेडिकल डॉक्युमेंट्स जमा करें: बीमारी से जुड़ी मेडिकल रिपोर्ट, डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन और ट्रीटमेंट का रिकॉर्ड कंपनी के साथ शेयर करें ताकि आपके सभी सबूत मजबूत हों.
- 3. लिखित में पूछताछ करें: अगर आपको बीमारी के बाद यह समझ नहीं आ रहा कि इसका आपकी पॉलिसी पर क्या असर होगा, तो कंपनी से लिखित में सवाल पूछें- क्या प्रीमियम बढ़ेगा? कवरेज बदलेगा? या कोई नई शर्त जोड़ी जाएगी?
- 4. बदलाव गलत लगे तो शिकायत करें: अगर कंपनी अनुचित बदलाव करती है, तो आप IRDAI या बीमा लोकपाल (Insurance Ombudsman) के पास शिकायत दर्ज कर सकते हैं. ये संस्थाएं ग्राहक की सुरक्षा के लिए बनी हैं और आपकी शिकायत पर कार्रवाई कर सकती हैं.
हेल्थ इंश्योरेंस लेते वक्त सिर्फ प्रीमियम या कवरेज नहीं, बल्कि पॉलिसी की शर्तों को ध्यान से पढ़ना जरूरी है. ‘मैटेरियल चेंज क्लॉज’ जैसी शर्तें आगे चलकर मुश्किलें पैदा कर सकती हैं. इसलिए किसी भी बदलाव की जानकारी समय पर दें, सभी कागजात सुरक्षित रखें और अगर लगे कि कंपनी आपके साथ गलत कर रही है तो शिकायत करने से न हिचकिचाएं.
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