30 अप्रैल, अक्षय तृतीया के मौके पर उत्तराखंड में चारधाम यात्रा की शुरुआत हो गई है। इस यात्रा के दौरान चारों धामों में दर्शन किए जाते हैं। गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट अक्षय तृतीया पर ही खुल गए थे, जबकि, केदारनाथ के कपाट 2 मई 2025 को खोले गए। अब इस यात्रा का चौथा पड़ाव यानी बद्रीनाथ धाम है, जिसके कपाट आज 4 मई को खोल दिए गए हैं। ऐसे में अगर आप भी केदारनाथ धाम की यात्रा करने जा रहे हैं तो वहां के कुछ खास जगहों पर जरूर घूमें।
सोनप्रयाग में स्नान क्यों जरूरी?
सोनप्रयाग पवित्र नदियों वासुकी और मंदाकिनी का संगम स्थल है। इन नदियों में स्नान जरूर करें करें क्योंकि माना जाता है कि ये पवित्रता प्रदान करती हैं। सोनप्रयाग उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में पड़ता है और 1829 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। बर्फ से ढके पहाड़ और शांत बहती नदियां नेचर की खूबसूरती को दर्शाती है।
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चंद्रशिला के दर्शन क्यों जरूरी?
चंद्रशिला शिखर केदारनाथ में घूमने के लिए सबसे लोकप्रिय जगहों में से एक है, यह समुद्र तल से 4000 मीटर ऊपर स्थित है। माना जाता है कि यह वह स्थान है जहां भगवान राम ने रावण को मारने के बाद भगवान शिव की पूजा की थी। राम ने इस पवित्र भूमि पर ध्यान करके अपने पापों को धोया था। यहां चंद्रमा भगवान या चंद्रदेव द्वारा वर्षों तक अपने पापों के लिए तपस्या करने की भी किंवदंती फेमस है। चंद्रशिला की चढ़ाई बहुत कठिन है, जिसमें ट्रेकर्स को चोपता से 4.5 मीटर की दूरी तय करनी पड़ती है, इस चोटी पर सबसे ऊंचा शिव मंदिर है। चंद्रशिला से हिमालय पर्वतमाला और नंदा देवी, त्रिशूल, केदार पीक और चौखंबा चोटियों जैसे क्षेत्र की लोकप्रिय चोटियों का शानदार 360 डिग्री दृश्य दिखाई देता है।
गौरीकुंड का क्या है महत्व?
किंवदंतियों के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव से विवाह करने के लिए कई वर्षों तक कठोर तप या ध्यान किया था। गढ़वाल हिमालय में स्थित गौरीकुंड वह स्थान है जहां उन्होंने तप किया था। यहां एक और घटना भी घटी थी। भगवान शिव द्वारा गणेश का मानव सिर काटकर उसकी जगह हाथी का सिर लगाने की घटना। इस दिव्य स्थान पर जाएं और देवताओं की ऊर्जा को महसूस करें। साथ ही पास के गर्म पानी के झरने में डुबकी जरूर लगाएं।
त्रियुगीनारायण मंदिर देवी पार्वती के लिए क्यों खास?
देवी पार्वती के तप पूरा करने के बाद भगवान शिव ने उनसे अपने प्रेम को स्वीकार किया और उन्होंने विवाह कर लिया। जिस स्थान पर उनका विवाह हुआ वह भी केदारनाथ में ही है। गौरीकुंड से 13 मीटर की दूरी पर त्रियुगीनारायण मंदिर है जहां भगवान और देवी ने विवाह की शपथ ली थी। इसे ब्रह्म शिला कहा जाता है जो मंदिर के सामने है। आप मंदिर के सामने एक अग्नि जलती हुई देखेंगे।
माना जाता है कि यह अग्नि विवाह के समय से ही जल रही है। इस अग्नि ने मंदिर को अखंड धूनी मंदिर का दूसरा नाम दिया है। मंदिर में एक सरस्वती कुंड भी है जिसका पानी भगवान विष्णु की नाभि से आया माना जाता है। त्रियुगीनारायण मंदिर सोनप्रयाग से पहुंचा जा सकता है जो यहां से सिर्फ 10 किमी दूर है। आप सीतापुर गाँव से भी मंदिर तक पैदल जा सकते हैं, जो 7 किमी दूर है।
गुप्तकाशी में क्यों छिपे थे पांडव?
केदारनाथ जाने पर आपको रुद्रप्रयाग जिले के इस छोटे से शहर में जाने की योजना जरूर बनानी चाहिए। यह केदारनाथ के रास्ते में मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है। गुप्तकाशी या छिपी हुई काशी वह जगह है जहां भगवान शिव महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों से छिपे थे जब वे उनका आशीर्वाद लेने आए थे। गुप्तकाशी में होने का मतलब है कि आपको विश्वनाथ और अर्धनारीश्वर मंदिर जैसे अन्य लोकप्रिय पूजा स्थल देखने को मिलेंगे।
भगवान शिव के विभिन्न रूपों को समर्पित दोनों मंदिर केदारनाथ और उसके आस-पास के दर्शनीय स्थलों में से एक हैं। अगर कुछ और नहीं तो इस शहर में खरीदारी करने जरूर जाएं। यहां मूर्तियां, पेंटिंग, कलाकृतियाँ और बहुत कुछ बेचने वाली कुछ बेहतरीन दुकानें हैं।
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