Chhangur Baba: उत्तर प्रदेश के छांगुर बाबा का नाम सुर्खियों में है। खुद को पीर बाबा बताने वाला जमालुद्दीन (छांगुर बाबा) नाम का ये शख्स कई सालों से लोगों का धर्मांतरण करा रहा था। इसका खुलासा एक शिकायत के बाद हुआ। छांगुर बाबा के बारे में पता किया तो सामने आया कि वह एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखता है। उसने शुरू में भीख मांकर अपना घर चलाया। कुछ समय तक मुंबई में रहने के बाद वह पीर बन कर अपने गांव (रेहरा माफी) आया। लोग पीर बाबाओं के बारे में तो जानते हैं, लेकिन ऐसे बहुत कम लोग होते हैं जिनको ये पता होता है कि सही में पीर बाबा कौन होते हैं। क्या छांगुर बाबा के जैसे लोग भी पीर बाबा बन सकते हैं?
छांगुर बाबा मुंबई जाकर बना ‘पीर’
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, छांगुर बाबा के शुरुआती दिन काफी मुश्किल भरे थे। फिर वह अपना गांव छोड़कर मुंबई चला गाया। वहां पर उसने लोगों को बताया कि वह एक पीर है। खुद को पीर बताने वाले बाबा से लोग जुड़ने लगे। नवीन रोहरा (जमालुद्दीन) और उनकी पत्नी नीतू रोहरा (नसरीन) भी इसी दौरान मुंबई में बाबा से मिले और पूरे परिवार के साथ अपना धर्म बदल लिया था।
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गांव में लोगों से मिलने के लिए बनाई जगह
मुंबई से वापस आने के बाद बाबा ने गांव में प्रधान का चुनाव दो बार जीता। इसके बाद वहीं पर उसने अपने मुरीदों से मिलने के लिए एक दरगाह के पास ही जगह बना ली। जहां पर बाबा से मिलने के लिए लोग दूर-दूर से आने लगे।
कौन होते हैं सही मायनों में पीर?
इसके बारे में हमने एक इस्लामिक जानकार MD. हम्माद से बात की। उन्होंने बताया कि ‘पीर या एक मुर्शिदे कामिल होने के लिए चार शर्तें हैं, तभी उसके हाथों पर बैत करना सही होगा। पहली यह कि वो सुन्नी सहीहुल अकीदा हो। दूसरी शर्त यह है कि उसे जरुरी मजहबी इल्म यानी धार्मिक ज्ञान होना चाहिए, क्योंकि बेइल्म खुदा को पहचान नहीं सकता।’
‘तीसरी शर्त यह है कि वह गुनाहे कबीरा यानी बड़े गुनाहों से दूरी बनाए रखे। चौथी शर्त यह है कि उसे सही सिलसिले की इजाजत हासिल हो। जिस शख्स में इनमें से कोई खूबी न हो, उसे न तो उससे मुरीद होना चाहिए और न ही वह पीर बन सकता है।’
वर्तमान में कुछ मजारें हैं जहां पर हर समुदाय के लोग जाते हैं। इन मजारों में मुस्लिम समुदाय के ऐसे लोगों को दफनाया गया होता है जो अपने जमाने में लोगों को शांति के रास्ते पर चलने की सलाह देते थे।
छांगुर बाबा कैसे बना पीर?
आजकल अधिकांश लोगों ने ‘पीरी मुरीदी’ के अहम मनसब (ओहदा) को भी केवल दुनिया के फायदे का जरिया बना लिया है। छांगुर बाबा की तरह ही कई लोग खुद को पीर बताकर लोगों को गुमराह करते हैं। इसलिए मुरीद बनते समय मुर्शिदे कामिल की सही पहचान और मुरीद होने के मकसद को ध्यान में रखना जरूरी है। कई बाबा लोगों की परेशानी और भावनाओं को निशाना बनाकर उनके पीर बन जाते हैं।
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