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उत्तर प्रदेश / उत्तराखंड

‘साहब, ट्राई साइकिल मिल जाती तो…’ बागपत डीएम ने मजबूरी पहचानी और दिव्यांग आकांक्षा को दिला दी नौकरी

वैसे तो आपने कई अफसरों के दिलदार किस्से सुने होंगे, किसी ने कुछ मांगा और अफसरों ने उसे दे दिया। लेकिन यह कहानी ऐसे आईएएस अधिकारी जिन्होंने बिना मांगे की एक दिव्यांग की जिंदगी सुधार दी। पढ़िए पूरी रिपोर्ट।

Author Written By: Raghav Tiwari Author Published By : Raghav Tiwari Updated: Sep 14, 2025 11:49
बागपत डीएम अस्मिता ने दिव्यांग आकांक्षा को दी नौकरी

एक दिव्यांग लड़की डीएम साहब के पास ट्राई साइकिल मांगने गई। डीएम साहब दूरदर्शी थे, उन्होंने लड़की से बातचीत की, उसका बैकग्राउंड जाना तो उदास हो गए। डीएम साहब लड़की में हुनर तलाशने लगे, और जैसे ही एक हुनर मिला तो उन्होंने लड़की का रिज्यूम मांग लिया। लड़की चौंक गई लेकिन रिज्यूम दे दिया। डीएम साहब ने उस लड़की को एकाउंटेट की नौकरी दे दी। फरियादी लड़की को इसकी तनिक भी उम्मीद न थी। खुद लड़की के साथ उसके परिवार का भी भविष्य उज्जवल हो गया। जो लड़की महज चलने के लिए ट्राई साइकिल की उम्मीद में थी, नौकरी की खबर से उसे दुनिया भर की ख्वाहिशें पूरी होती दिखने लगीं। यह किसी उपन्यास का कोई अंश नहीं है। यह बागपत की सत्य कथा है। कहानी है दिव्यांग आकांक्षा शर्मा और डीएम अस्मिता लाल की।
दिव्यांग आकांक्षा शर्मा बागपत जिले में मुकारी गांव में रहती हैं। कहने को तो आकांक्षा एमकॉम तक पढ़ी हैं और बैंक में नौकरी करती थी, लेकिन कुदरती मार ने उन्हें दिव्यांग बना दिया और उनकी नौकरी चली गई। इसके चलते वह बेरोजगार हो गईं। हाल ही में वह बागपत डीएम अस्मिता लाल से ट्राई साइकिल की गुहार लगाने गई थीं। डीएम से मिलकर ट्राई साइकिल पर बात होने लगी। बातों ही बातों में अचानक डीएम ने आकांक्षा से रिज्यूम मांग लिया। उस समय आकांक्षा के पास रिज्यूम नहीं था। घर जाकर उसने रिज्यूम भेज दिया। डीएम ने रिज्यूम एक निजी कंपनी को भेज दिया। वहां उसे एकाउंटेंट की नौकरी मिल गई।

2023 में टूटा था गमों का पहाड़

साल 2023 में आकांक्षा अपने पिता वीरेश शर्मा के साथ कहीं जा रही थीं। दोनों के साथ एक हादसे की घटना घट गई। इसमें उनके पिता की मृत्यू हो गई। इस असहनीय गम महसूस करती, इससे पहले ही आकांक्षा को वेंटिलेटर पर पहुंच गई थी। क्योंकि हादसे में वह गंभीर रूप से घायल हो गई थी। डॉक्टरों ने उसके बचने की उम्मीद बेहद कम बताई। उनके हौंसले ने उन्हें जिंदा तो बचा लेकिन आकांक्षा के एक पैर ने उनका साथ छोड़ा दिया।

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घर में कोई कमाने वाला नहीं

एक हादसा हुआ उसमें आकांक्षा ने पिता और नौकरी दोनों को खो दिया। पिता की मौत से वह घर में कोई कमाने वाला भी नहीं बचा। अब घर में केवल वह और उनकी मां उर्मिला रहती थीं। आकांक्षा को भविष्य तो दूर अब वर्तमान में केवल बेसिक चीजों की भी चिंता खाए जा रही थी। इस दर्द भरी कहानी को डीएम ने सुना और इंसानियत की मिशाल देकर आकांक्षा को नौकरी दिला दी।

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First published on: Sep 14, 2025 11:32 AM

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