अभिषेक दुबे, वाराणसी
उत्तर प्रदेश के बनारस में नवरात्रि के छठे दिन 350 साल पुरानी परपंरा जीवंत हो उठी। जब मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच नगर वधुओं ने जमकर डांस किया। इसके जरिए उन्होंने अपने अगले जन्म को सुधारने की कामना की। नगर वधुओं के डांस को देखने के लिए लोगों की भारी भीड़ उमड़ी। इस दौरान पूरी रात जागरण चलता रहा। बता दें कि महाश्मशान वह अंतिम स्थान है, जहां पर इंसान राख में तब्दील हो जाता है। यह राख व्यक्ति को मुक्ति की राह पर ले जाती है। दुनिया से जाने वाले अपने पीछे रोते-बिलखते परिजनों को छोड़ जाते हैं। बनारस में इस स्थान कई परंपराएं जुड़ी हैं। इस परंपरा से जुड़ी एक कहानी भी है।
जानें कैसे शुरू हुई परंपराएं?
राजा मानसिंह के समय जब महाश्मशान पर कोई डांस करने को तैयार नहीं था तो मानसिंह बड़े ही दुखी हुए। यह संदेश धीरे-धीरे पूरे नगर में फैल गया। जब यह संदेश काशी के नगर वधुओं के पास पहुंचा। नगर वधुओं ने डर और संकोच के बाद भी यह संदेश राजा के पास भिजवाया कि अगर उन्हें मौका मिला तो वह अपने आराध्य संगीत के जनक महाश्मसानेश्वर को अपनी भावांजलि प्रस्तुत कर सकती हैं।
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जानें क्यों नाचती हैं नगरवधुएं?
नगरवधुओं का संदेश पाकर राजा बेहद प्रसन्न हुए। उन्होंने नगर वधुओं को बुलाया। उसके बाद से ही यह परंपरा अभी तक चल रही है। वहीं दूसरी ओर नगर वधुओं के मन में यह विचार आया कि अगर वह इस परंपरा को निरंतर बढ़ाती रही तो उन्हें नारकीय जीवन से मुक्ति मिल सकती है। इसके बाद से ये परंपरा लगातार चली आ रही है। आज भी नगरवधुएं कहीं भी रहे लेकिन चैत्र नवरात्रि के सप्तमी को काशी के मणिकर्णिका घाट पर स्वयं आ जाती है।
महाश्मशान में मौजूद रहीं नगरवधुएं
बनारस में शुक्रवार को पूरी रात जागरण चला। जलती चिताओं के पास मंदिर में परंपरागत स्थान से इसकी शुरुआत हुई। आयोजन के दौरान बड़ी संख्या में नगरवधुएं महाश्मशान में मौजूद रही। नगरवधुएं स्वयं को भगवान भोलेनाथ के आगे प्रस्तुति देकर स्वयं को भाग्यवान मान रहीं थीं। वहीं नगरवधुओं ने बताया कि हमारा यह जन्म तो मुक्ति के साथ खत्म हो रहा है। अगला जन्म हमें किसी ऐसे रूप में मिले जहां हम भी एक सौभाग्यशाली जीवन जी सकें।
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