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उत्तर प्रदेश / उत्तराखंड

अखलाक मर्डर केस में UP सरकार को झटका, नहीं चल पाई 8 साल पुरानी वो ‘चाल’, जिसका खुद ही किया था विरोध

साल 2015 में यूपी के दादरी के पास बिसाहड़ा गांव गोमांस के शक में अखलाक की हत्या कर दी गई थी.

Author Edited By : Arif Khan
Updated: Dec 23, 2025 15:46

अखलाक मर्डर केस में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को झटका लगा है. कोर्ट ने यूपी सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया गया, जिसमें आरोपियों के खिलाफ केस वापस लेने की मांग की गई थी. सूरजपुर कोर्ट ने यूपी सरकार की याचिका को आधारहीन बताते हुए खारिज कर दिया. बता दें, यूपी सरकार ने इस याचिका में उन्हीं तर्कों को आधार बनाया था, जिनका वह आठ साल पहले खुद विरोध कर चुकी हैं. यह तब हुआ था जब मामले के आरोपियों ने इन तर्कों के आधार पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में जमानत मांगी थी.

बता दें, 28 सितंबर 2015 की रात करीब 10 बजे यूपी के दादरी के पास बिसाहड़ा गांव में मोहम्मद अखलाक की हत्या कर दी गई थी. अखलाक के परिवार पर गाय का बछड़ा चोरी करने और उसे मारकर खाने का आरोप लगाया गया था. इसके बाद गांव के कई युवकों की भीड़ ने उनके घर पर हमला कर दिया था. भीड़ ने उनके घर पहुंचकर अखलाक को बाहर घसीटा और उसे पीट-पीटकर मार डाला.

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किस आधार पर केस वापसी की डाली अर्जी

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, केस वापस लेने की अर्जी में यूपी सरकार ने मुख्य रूप से वही तर्क दिए जो दो आरोपियों ने आठ साल पहले अपनी जमानत अर्जी के दौरान दिए थे. कोर्ट रिकॉर्ड्स के मुताबिक, उस समय सरकार ने इन्हीं तर्कों का विरोध करते हुए जमानत दिए जाने का ‘कड़ा’ विरोध किया था. अप्रैल 2017 में आरोपी पुनीत और अरुण ने जमानत की अर्जी डालते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में तर्क दिया था कि अभियोजन पक्ष के मुख्य गवाहों के बयानों में विसंगतियां और विरोधाभास थे, जिसके आधार पर पूरा मामला बनाया गया था.

क्या थे वो तर्क

2017 में उस वक्त उनके वकील ने अखलाक की पत्नी इकरामन के बयानों का जिक्र करते हुए कहा था कि उन्होंने जो बयान दर्ज करवाया था, उसमें हमलावर के रूप में पुनीत और अरुण का नाम नहीं लिया था. अखलाक की पत्नी का बयान 29 सितंबर 2015 और 13 अक्टूबर 2015 को दर्ज किए गए थे. इसके अलावा अखलाक की बेटी शाइस्ता के बयान का भी जिक्र किया गया. उसके लिए कहा गया कि उसने भी 13 अक्तूबर 2015 को अपने पहले बयान में पुनीत या अरुण के नाम का खुलासा नहीं किया था. उसने बाद में सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपने बयान में उनके नाम का खुलासा किया.

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इसके बाद कोर्ट ने 6 अप्रैल 2017 को दिए गए दो आदेशों में टिप्पणी की थी कि ‘केस की मेरिट पर टिप्पणी किए बिना, यह जमानत का मामला लगता है.’

अब कोर्ट में क्या कहा गया?

फिर यूपी सरकार ने 15 अक्टूबर 2025 को, आरोपियों के खिलाफ आरोप वापस लेने की मांग की. अर्जी में मामले को समाप्त करने के लिए जो आधार दिए हैं, वे लगभग वही हैं जो आरोपियों ने 2017 में इस्तेमाल किए थे. ये तर्क हैं कि मुख्य गवाहों के बयानों में विसंगतियां और विरोधाभास हैं, जिन पर पुलिस ने अपना मामला बनाया था.

गवाहों के बयानों में कथित विसंगतियों को आधार बनाते हुए याचिका में कहा गया, ‘चश्मदीद गवाहों असकरी, इकरामन, शाइस्ता और दानिश के बयानों में आरोपियों की संख्या अलग-अलग हैं. इसके अलावा, गवाह और आरोपी दोनों एक ही गांव, बिसाहड़ा के निवासी हैं. एक ही गांव के निवासी होने के बावजूद, शिकायतकर्ता और अन्य गवाहों ने अपने बयानों में आरोपियों की संख्या अलग-अलग बताई.’

रिकॉर्ड्स के मुताबिक, पुनीत और अरुण को जमानत मिलने के बाद, अन्य सभी आरोपियों ने भी समानता के आधार पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और उन्हें जमानत मिल गई थी. बाहर आने वालों में शिवम, गौरव, संदीप, भीम, सौरभ, हरिओम, विशाल, श्रीओम, विवेक और रूपेंद्र शामिल थे. पुनीत और अरुण के मामले की तरह, राज्य सरकार ने इन आरोपियों की जमानत याचिकाओं का भी विरोध किया था.

First published on: Dec 23, 2025 02:36 PM

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