मलेरकोटला: पंजाब के मलेरकोटला से एक बुरी खबर आई है। यहां के मालेरकोटला के नवाब शेर मुहम्मद खान के वंश का आखिरी वारिस शुक्रवार को दुनिया को अलविदा कह गया। यह कोई और नहीं, बल्कि उनकी आठवीं पीढ़ी में इकलौती बेगम मुनव्वर उल निसा थी। नवाब शेर मुहम्मद खान वह शख्सियत थी, जिन्होंने खालसा पंथ के संस्थापक श्री गुरु गोविंद सिंह के छोटे साहिबजादों की शहादत (दीवार में चिनवाए जाने) का विरोध किया था। 102 साल की निसा के साथ अब नवाब शेर मुहम्मद खान के खानदान का अंत हो गया। बाकी रहा तो सिर्फ यादें, जिन्हें कभी मिटाया नहीं जा सकता।
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अनूठा इतिहास है पंजाब के 23वें जिले मलेरकोटला की रियासत का, नवाब शेर मुहम्मद खान ने किया था श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के दोनों छोटे साहिबजादों की शहादत का विरोध
बता दें कि अभी कुछ महीने पहले ही पंजाब के 23वें जिले के रूप में अस्तित्व में आए मलेरकोटला अपना एक अनूठा इतिहास है। बात उस वक्त की है, जब श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के दोनों छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह (जो उस समय 7 साल और 9 साल की उम्र के थे) को जिंदा ही दीवार में चिनवा दिया गया था। उस वक्त मलेरकोटला के नवाब शेर मुहम्मद खान इकलौते ऐसे शख्स थे, जिन्होंने मुगल शासन के इस अमानवीय फैसले का प्रतिकार किया था। इसी की वजह से सदियों से उन्हें एक सम्मानित स्थान प्राप्त है। वक्त बीतता गया। मुगलों के बाद देश अंग्रेजों का गुलाम रहा और फिर आजाद भी हो गया। इस समयांतर में मलेरकोटला ने बहुत से उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन बड़ी बात है कि आज तक यहां कभी कोई छोटा-बड़ा हिंदू-मुस्लिम दंगा नहीं हुआ है।
पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर की मां की सहेली थीं शेर मुहम्मद की आखिरी वारिस निसा
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अब शेर मुहम्मद खान के खानदान के इकलौते वारिस के रूप में बेगम मुनव्वर उल निसा थीं, जो उनकी आठवीं पीढ़ी से ताल्लुक रखतीं थी। एक किस्सा और यह भी प्रचलित है कि बेगम मुनव्वर उल निशा प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की मां महिंदर कौर की सहेली थीं। कैप्टन अमरिन्दर सिंह के मुख्यमंत्री काल में बेगम मुनव्वर उल निशा ने अपना महल पंजाब सरकार को सौंप दिया था। उनकी आखिरी इच्छा थी कि उनका महल उनके इस दुनिया से चले जाने के बाद भी ऐसा ही चमकता रहे। इसी साल अप्रैल में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने श्री फतेहगढ़ साहिब में एक विशेष कार्यक्रम आयोजित करके बेगम मुनव्वर उल निसा को सम्मानित किया था।
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कई दिन से हजरत हलीमा अस्पताल में थीं जेर-ए-इलाज
1982 में इस रियासत के आखिरी नवाब इख्तियार अली खान का इंतकाल हो चुका है, वहीं शुक्रवार को 102 साल की उम्र में उनकी बेगम मुनव्वर उल निशा भी इस जहां से रुखसत हो गईं। बताया जा रहा है कि बेगम मुनव्वर उल निशा कई दिनों से बीमार थीं और मलेरकोटला के हजरत हलीमा अस्पताल में जेर-ए-इलाज थीं। शुक्रवार को वहीं पर उन्होंने आखिरी सांस ली। उनकी आगे कोई औलाद नहीं थी।
विधानसभा अध्यक्ष समेत कईने जताया दुख
उधर, आज उनके निधन की इस घटना के बाद पंजाब विधानसभा अध्यक्ष कुलतार सिंह संधवां ने गहरा दुख व्यक्त किया है, वहीं पंजाबभर से विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधि उनके आखिरी दीदार को मलेरकोटला पहुंचे। बाद में बेगम को सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया। स्पीकर संधवां ने कहा है कि बेगम निशा हमारे लिए हमेशा सम्मान के पात्र रहेंगी। परमात्मा के आगे अरदास है कि वह दिवंगत आत्मा को अपने चरणों में शाश्वत निवास प्रदान करें।