महाराष्ट्र की राजनीति इन दिनों काफी दिलचस्प मोड़ पर है। एक तरफ NCP के दो गुटों शरद पवार और अजीत पवार के फिर से एक होने की बातें हो रही हैं, तो दूसरी तरफ तिरंगे के नाम पर सियासी रेस भी शुरू हो गई है। चाचा-भतीजे की मुलाकात की चर्चाओं के बीच कांग्रेस, शिवसेना और बीजेपी भी एक-दूसरे से आगे निकलने की कोशिश में जुटे हैं। तिरंगा यात्राएं, नेताओं की मुलाकातें और बयानबाजी से माहौल पूरी तरह गरमा गया है। अब सबकी नजरें इस बात पर टिकी हैं कि इस सियासी शतरंज में अगला चाल कौन चलता है।
NCP के दोनों गुटों की नजदीकी से बढ़ी सियासी गर्मी
इन दिनों महाराष्ट्र की राजनीति में फिर से हलचल मची हुई है। NCP (नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी) दो हिस्सों में बंटी हुई है एक तरफ शरद पवार हैं और दूसरी तरफ अजीत पवार। अब खबरें आ रही हैं कि ये दोनों गुट फिर से एक हो सकते हैं। पिछले हफ्ते शरद पवार ने ऐसा बयान दिया जिससे राजनीति का माहौल गर्म हो गया। उन्होंने कहा कि अगर दोनों गुट फिर से मिलते हैं, तो इसमें कोई हैरानी की बात नहीं होगी, क्योंकि दोनों की सोच एक जैसी है। शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले और भतीजे अजीत पवार को एक साथ बैठकर बात करने को कहा है। शरद पवार के इस बयान के बाद NCP के बहुत से कार्यकर्ता उत्साहित हो गए हैं। लेकिन महाविकास अघाड़ी (MVA) के बाकी दल कांग्रेस और उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना थोड़े परेशान हो गए हैं। उन्हें लग रहा है कि अगर NCP के दोनों गुट मिलते हैं, तो राजनीति में नए समीकरण बन सकते हैं।
शिवसेना (UBT) के नेता शरद पवार से मिलने पहुंचे
शरद पवार के बयान के बाद कांग्रेस और शिवसेना (UBT) के नेता जल्दी ही एक्टिव हो गए। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने मुंबई में शरद पवार से जाकर मुलाकात की। वहीं शिवसेना (UBT) के नेता सचिन अहिर भी शरद पवार से मिलने पहुंचे। हालांकि ये मुलाकात शरद पवार के घर के बाहर उनकी कार में ही हुई, क्योंकि उस वक्त शरद पवार कहीं बाहर जा रहे थे। इन मुलाकातों से साफ पता चलता है कि महाविकास अघाड़ी (MVA) के साथी दल कांग्रेस और शिवसेना अब किसी भी कीमत पर शरद पवार को अपने साथ बनाए रखना चाहते हैं। उन्हें डर है कि अगर शरद पवार का गुट अलग हो गया या अजीत पवार से मिल गया, तो विपक्ष की एकता टूट जाएगी। इससे आने वाले चुनावों में उन्हें नुकसान हो सकता है।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद बढ़ा राष्ट्रभक्ति का सियासी असर
इस राजनीतिक हलचल के बीच महाराष्ट्र में एक और चीज देखने को मिल रही है, देशभक्ति दिखाने की राजनीति। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद शिवसेना और बीजेपी ने तिरंगा यात्रा निकालकर लोगों से जुड़ने की कोशिश की। ठाणे में शिवसेना ने तिरंगा यात्रा निकाली, जिसमें उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे सबसे आगे थे। दूसरी तरफ मुंबई के गिरगांव चौपाटी से लेकर अगस्त क्रांति मैदान तक बीजेपी ने भी एक यात्रा निकाली। यह यात्रा शहीद तुकाराम ओंबले को समर्पित थी। इसमें खुद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस शामिल हुए। इन यात्राओं के जरिए दोनों पार्टियां लोगों के दिलों में देशभक्ति का जोश जगाकर चुनावों में फायदा लेना चाहती हैं।
कांग्रेस की एंट्री से तिरंगा यात्राओं की होड़ तेज
अब कांग्रेस पार्टी भी देशभक्ति की राह पर चलने के लिए तैयार हो गई है। कांग्रेस ने ऐलान किया है कि 21 मई को, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पुण्यतिथि पर, पूरे महाराष्ट्र में तिरंगा यात्रा निकाली जाएगी। कांग्रेस का कहना है कि यह यात्रा उन जवानों को श्रद्धांजलि देने के लिए होगी जो ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में शहीद हुए थे। साथ ही इस यात्रा का मकसद लोगों को तिरंगे के सम्मान के लिए एकजुट करना भी है। इस यात्रा के जरिए कांग्रेस देशभक्ति का संदेश देना चाहती है। साथ ही पार्टी अपने पार्षद बनने के इच्छुक नेताओं को भी जनता के सामने लाना चाहती है। अब देखने वाली बात यह होगी कि इस तिरंगा यात्रा की दौड़ में कौन सी पार्टी लोगों के दिल में जगह बना पाती है और कौन सिर्फ राजनीति में उलझ कर रह जाती है।