Maharashtra News: महाराष्ट्र सरकार की लाड़ली बहन योजना में अब अपात्र लाभार्थियों की छंटनी का रास्ता साफ हो गया है। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए महिलाओं की आयकर संबंधी जानकारी राज्य सरकार को उपलब्ध कराने की मंजूरी दे दी है। करीब 6 महीने पहले महाराष्ट्र सरकार ने इसकी मांग केंद्र सरकार से की थी। इस फैसले के बाद महिला एवं बाल विकास विभाग अब आयकर रिटर्न (ITR) के डेटा के आधार पर यह पहचान कर सकेगा कि लाभार्थी महिला टैक्सपेयर है या नहीं। यदि कोई महिला टैक्स भरती पाई जाती है, तो उसे योजना का लाभ नहीं मिल सकेगा।
क्या है लाड़ली बहन योजना?
लाड़ली बहन योजना का उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की महिलाओं को आर्थिक सहायता प्रदान करना है। इस योजना के तहत पात्र महिलाओं को प्रतिमाह 1,500 रुपयों तक की सहायता दी जाती है। योजना विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वर्ग की महिलाओं को सशक्त करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी।
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अब क्या होगा?
इस मामले में अब प्रशासन सख्ती से कार्रवाई करेगा, कुछ कदमों की मदद से अपात्रित महिलाओं की पहचान की जाएगी, जैसे
- टैक्स फाइल करने वाली महिलाओं की पहचान की जाएगी।
- पात्रता की दोबारा समीक्षा होगी।
- जल्द ही राज्य सरकार एक परिपत्र जारी कर सकती है।
- योजना से बाहर की गई महिलाओं को सूचना दी जाएगी।
कब हुई लाड़ली बहन योजना की समीक्षा और कितनी हुई कटौती?
मूल समीक्षा कब हुई?
लाड़ली बहन योजना की मूल समीक्षा जनवरी 2025 को हुई थी। इस साल संरचना की समीक्षा शुरू हुई और नीति के तहत ओवरलैपिंग लाभ वाले पात्र महिलाओं की पहचान की गई। महिला एवं बाल विकास मंत्री अदिती तटकरे ने अनुमानित रूप से 20 लाख (2 मिलियन) लाभार्थियों को योजना से बाहर किए जाने की बात कही थी।
अन्य योजनाओं के लाभार्थियों की कटौती
अप्रैल 2025 में लगभग 8 लाख (800,000) महिलाओं की मासिक राशि 1,500 रुपये से घटाकर 500 रुपये कर दी गई, क्योंकि वे “नमो शेतकरी महासम्मान निधि” जैसी अन्य योजनाओं से 1,000 रुपये मासिक लाभ उठा रही थीं।
सरकारी कर्मचारियों की पहचान
मई-जून 2025 में तकरीबन 2 लाख (200,000) आवेदनों की जांच में 2,289 सरकारी कर्मचारियों को योजना से लाभ लेते हुए पाया गया, जिन्हें लाभ से हटा दिया गया। बाद में 2,652 सरकारी कर्मचारी लाभार्थियों की पहचान की गई, जिनसे 3.58 करोड़ रुपये की धनराशि वापस ली जा रही है।
महाराष्ट्र सरकार का यह कदम यह साबित करता है कि योजनाओं का लाभ केवल जरूरतमंदों तक सीमित रखने के लिए तकनीकी संसाधनों का बेहतर उपयोग किया जा रहा है। इससे न केवल वित्तीय भार कम होगा, बल्कि सार्वजनिक धन का दुरुपयोग रोकने में मदद मिलेगी।
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