Maharashtra Politics: महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार सियासी उथल पुथल की आहट सुनाई दे रही है। महाराष्ट्र सरकार में मंत्री छगन भुजबल ने आज एनसीपी के शरद पवार से मुलाकात की। छगन भुजबल की अजित पवार के साथ खटपट किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में अब उनका अचानक जाकर शरद पवार से मिलना कई सवाल खड़े कर रहा है। ऐसे में आइये जानते हैं इस सियासी मुलाकात के सियासी मायने।
संयुक्त एनसीपी में बिखराव के बाद से ही कभी शरद पवार के सबसे खास रहे छगन भुजबल अब अजित पवार के साथ है फिलहाल राज्य सरकार में मंत्री है। लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद से ही वे अजित पवार से नाराज बताए जा रहे हैं। वजह है राज्यसभा सीट जिस पर वे दावा कर रहे थे लेकिन पार्टी ने उनकी जगह अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार को राज्यसभा भेजने का फैसला किया। सुनेत्रा के राज्यसभा भेजे जाने के फैसले के बाद भुजबल ने कहा था कि उनकी इच्छा थी कि वे राज्यसभा जाए लेकिन पार्टी ने सर्वसम्मति से सुनेत्रा जी को राज्यसभा भेजन का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि इस फैसले में वे भी शामिल थे। वे पार्टी के इस फैसले से नाराज नहीं है।
मराठाओं को ओबीसी कोटे में से आरक्षण के खिलाफ हैं भुजबल
उनकी नाराजगी की एक और वजह मराठा आरक्षण है। मराठा आरक्षण को लेकर मनोज जरांगे की ओर से सरकार को दी गई डेडलाइन अब खत्म हो चुकी है। 20 जुलाई से मनोज जरांगे एक बार फिर अनशन पर बैठ सकते हैं। लोकसभा चुनाव में मराठों की नाराजगी बीजेपी पर भारी पड़ी और पार्टी मराठावाड़ा की सभी सीटें हार गई थी। ऐसे में मनोज जरांगे अलग से आरक्षण मांगने की जगह पर अब ओबीसी में से आरक्षण की मांग कर रहे हैं। जिसे लेकर भुजबल नाराज बताए जा रहे हैं। ओबीसी में आरक्षण का हिस्सा मांगने पर ओबीसी नेता लक्ष्मण हाके ने भी पिछले दिनों विरोध प्रदर्शन किया था। जिसे छगन भुजबल ने भी समर्थन किया था।
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छगन भुजबल ओबीसी आरक्षण के खिलाफ है उन्होंने सरकार को धमकी दी थी कि अगर ओबीसी आरक्षण से छेड़छाड़ हुई तो वे मंत्री पद से इस्तीफा देकर आंदोलन में शामिल हो जाएंगे। ऐसे में अजित पवार की एनसीपी में शामिल छगन भुजबल किसी भी समय पाला बदल सकते हैं।
कुछ ऐसा रहा भुजबल का राजनीतिक करियर
छगन भुजबल ने 1960 के दशक में बाला साहेब ठाकरे से प्रभावित होकर राजनीति में कदम रखा था। उन्होंने तब शिवसेना जाॅइन की थी। इसके बाद 1991 में वे कांग्रेस में शामिल हो गए। इसके बाद शरद पवार ने 1998 में एनसीपी बनाई तो वे एनसीपी में शामिल हो गए। वे 1985 में पहली बार मंझगांव से विधायक चुने गए थे। 1990 में भी वे शिवसेना के टिकट पर ही यहां से विधायक चुने गए थे। वे फिलहाल येओला सीट से 2004 से विधायक हैं। 2022 में वे एनसीपी अजित पवार गुट के साथ शरद पवार से अलग हो गए और अभी महायुति सरकार में मंत्री हैं।
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