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World Wildlife Day: बेतला नेशनल पार्क में रेलवे लाइन बनी बाघों के लिए कब्रगाह!

रांची से विवेक चंद्र की रिपोर्टः भारत के पहले टाइगर रिजर्व में से एक बेतला नेशनल पार्क की हालत अच्छी नहीं है। 1026 वर्ग किलोमीटर में फैले बेतला नेशनल पार्क में वन्यजीवों की तादाद काफी तेजी से घट रही है। इसमें बाघ भी शामिल है। कभी यहां 50 के आसपास बाघ हुआ करते थे। देश में सबसे […]

Edited By : Rakesh Choudhary | Updated: Mar 3, 2023 14:41
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World Wildlife Day Special
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रांची से विवेक चंद्र की रिपोर्टः भारत के पहले टाइगर रिजर्व में से एक बेतला नेशनल पार्क की हालत अच्छी नहीं है। 1026 वर्ग किलोमीटर में फैले बेतला नेशनल पार्क में वन्यजीवों की तादाद काफी तेजी से घट रही है। इसमें बाघ भी शामिल है। कभी यहां 50 के आसपास बाघ हुआ करते थे। देश में सबसे पहले बाघों की गणना यहीं हुई।

जानवरों की मौत के लिए जिम्मेदार है रेल लाइन

बेतला नेशनल पार्क में वन्यजीवों की संख्या सिमटने के पीछे एक बड़ी वजह है इस घने जंगल से होकर गुजरती रेलवे लाइन। यह रेल लाइन न सिर्फ जंगल को दो हिस्सों में बांटती है बल्कि कई जानवरों की मौत और दुर्घटना के लिए भी जिम्मेदार है। वैसे तो इस रेल ट्रैक को 1924 में सोननगर से पतरातू तक कोयले की ढुलाई के लिए बनाया गया था।

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धीरे-धीरे इस रेल लाइन पर रेल और मालगाड़ी की आवाजाही बढ़ती गई, और कम होती गई जंगल में बाघों की तादाद। वर्तमान में इस ट्रैक से 15 जोड़ी यात्री ट्रेने और 23 जोड़ी मालगाड़ी गुजरती है। पहले इस ट्रैक दोहरीकरण हुआ और अब यहां तीसरे ट्रैक को विकसित किया जा रहा है।

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शुरू हुई रेल ट्रैक हटवाने की मुहिम

जंगल से रेल ट्रेक को हटाने की मुहिम को लेकर पर्यावरण और वन्यजीव संरक्षण में दिलचस्पी रखने वाले लोगों ने सेव बेतला से सेव पलामू नाम से मुहिम शुरू की है। वे अब न सिर्फ बेतला जंगल को लेकर मुखर हुए हैं बल्कि कोर्ट और रेल मंत्रालय तक में जंगल से रेलवे लाइन हटाने की दरख्वास्त कर चुके हैं।

सेव बेतला सेव पलामू अभियान के संयोजक सूर्या सोनल सिंह कहते हैं कि झारखंड जंगलों का प्रदेश है पर हमारे जंगलों से जानवर तेज़ी से गुम हो रहे हैं। ऐसे में इकोसिस्टम पर खतरा तो है ही हम सबके अस्तित्व पर भी खतरा है। बेतला जंगल में अब बाघ नहीं दिखते। बस कभी कभार बाघ के चिन्ह दिख जाते हैं। यह निराशा जनक स्थिति है।

विरोध के लिए बनाई जा रही डाक्यूमेंट्री

जंगल से रेल लाइन हटाने की मांग और लोगों को सेव बेतला अभियान से जोड़ने के लिए नामक डाक्यूमेंट्री फिल्म का निर्माण भी किया गया है। 15 मिनट की यह फिल्म बेतला जंगल के अतीत और वर्तमान को दिखाते हुए जंगल बचाने का संदेश देती है। इस फिल्म को स्थानीय मुंडारी और हो भाषा में डब करने की योजना है ताकि इसे जंगल में बसे आदिवासी भी देख और समझ पाएं।

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बेतला हमारी धरोहर

बेतला नेशनल पार्क के सहायक निदेशक कुमार आशीष न्यूज़ 24 से कहते हैं कि यह काफी सुंदर अभ्यारण्य हुआ करता था। यहां खुली आंखों से बाघों को आसानी से आप घुमते देख सकते थे। अब यह एक सपने जैसा है। यह जंगल हमारी धरोहर है। हम इसे ऐसे खत्म नहीं कर सकते। रेलवे लाइन जंगल के लिए एक खतरा जैसा बन चुकी है।

बढ़ा वन्यजीव मानव संघर्ष

पीटीआर में वन्य जीव और मानव संघर्ष भी काफी बढ़ गया है। पिछले दिनों पीटीआर में तेंदुए का आतंक रहा। इस तेंदुए ने आस-पास के गांव के लोगों की जान ले ली थी। पर्यावरणविद् सुमंत घोष कहते हैं आज हम पैसों के लालच में प्रकृति का खुब दोहन कर रहे हैं। तेजी से जीव-जंतु गायब होते जा रहे हैं ।

पंछियों की कई प्रजातियां विलुप्त हो गई। नदियां सूख रही है। जंगल कम होते जा रहे हैं। ऐसी हालत बनी रही तो एक ऐसा दिन भी आएगा जब हमारे पास एक भी पेड़ नहीं बचेंगे और तब हम इन पैसों का क्या करेंगे।

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Edited By

Rakesh Choudhary

First published on: Mar 03, 2023 02:07 PM

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