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Makar Sakranti: मकर संक्रांति पर झारखंड में मनता है ‘टुसू पर्व’, जानिए…..

रांची से विवेक चन्द्र की रिपोर्ट: मकर संक्रांति (Makar Sakranti) के मौके पर झारखंड (Jharkhand) में ‘टुसू पर्व’ (Tusu Festival) मनाए जाने की परंपरा है। यह पर्व लोक रंग और लोक संस्कृति का एक बहुआयामी कोलाज बनाता है। वैसे तो झारखंड और यहां के आदिवासियों के हर तीज- त्योहार प्रकृति प्रेम के आसपास ही रचे-बसे होते […]

Edited By : Rakesh Choudhary | Updated: Jan 13, 2023 18:47
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Tusu Devi

रांची से विवेक चन्द्र की रिपोर्ट: मकर संक्रांति (Makar Sakranti) के मौके पर झारखंड (Jharkhand) में ‘टुसू पर्व’ (Tusu Festival) मनाए जाने की परंपरा है। यह पर्व लोक रंग और लोक संस्कृति का एक बहुआयामी कोलाज बनाता है। वैसे तो झारखंड और यहां के आदिवासियों के हर तीज- त्योहार प्रकृति प्रेम के आसपास ही रचे-बसे होते हैं। टुसू पर्व उसमें खास है। इस पर्व की शुरुआत 15 दिसंबर से ही हो जाती है जो करीब एक माह के बाद मकर संक्रांति पर मुख्य पूजा के साथ इसका समापन होता है।

कुंवारी लड़कियां करती हैं मुख्य पूजा

टुसू पर्व में पारंपरिक नृत्य और गीतों का खास महत्व होता है। इस त्योहार में कुंवारी लड़कियों की भूमिका खास होती है। पर्व में टुसू की मिट्टी की मुर्तियां स्थापित की जाती है। कुंवारी कन्याएं टुसू की प्रतिमा की पूजा पारंपरिक गीत गाकर और सामुहिक नृत्य कर करती है। इस मौके पर चौडल भी बनाया जाता है। इसे आप भव्य महल की प्रतिकृति समझ सकते हैं। इसे कागज, बांस और लकड़ियों की मदद से बनाया जाता है। टुसू पूजा के अगले दिन आखाईन जातरा मनाया जाता है। इस दिन से स्थानीय किसान अपना कृषि कार्य प्रारंभ कर देते हैं। साथ ही हर शुभ कार्य की शुरुआत भी हो जाती है। पूजन के बाद टुसू की प्रतिमा नदी में विसर्जित की जाती है। इस मौके पर गांवों में मेले का आयोजन भी होता है और घरों में इस दौरान परंपरागत पकवान गुड़ का पीठा बनाया जाता है।

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कौन है देवी टुसू

टुसू कौन है इसे लेकर कई दंत कथाएं हैं। एक कथा के अनुसार टुसू एक गरीब किसान की रूपवती बेटी थी। राजा उसके रूप पर मोहित हो गया था। वह उसे अपना बनाना चाहता था। इसके लिए क्रूर राजा ने किसानों पर ज़ुल्म करते हुए उनका कृषि कर काफी बढ़ा दिया। टुसू ने इसका विरोध किया और स्थानीय किसानों को संगठित किया। राजा के सैनिक और किसानों के बीच जंग चली। कई किसान मारे गए और कई बंदी बना लिए गए। टुसू राजा के सैनिकों के द्वारा बंदी बनाई जाती इससे पहले ही उसने नदी में कूद जल समाधि ले ली। इसी की याद में यह पर्व मनाया जाता है। टुसू कुंवारी कन्या थी इसलिए इस पर्व में कुमारी कन्याओं का विशेष महत्व है।

कृषकों का महाउत्सव है टुसू

टुसू झारखंड के किसानों का महाउत्सव भी है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में मानव शास्त्र के सहायक अध्यापक डॉ.अभय सागर मिंज के बताते हैं कि टुसू पर्व किसानों का एक बड़ा उत्सव है। यह ऐसे समय में मनता है जब एक फसल तैयार हो कर खलिहान से घर आ चुकी होती है और फिर से कृषि कार्य की तैयारी की शुरुआत होनी होती है। वे आगे कहते हैं कि टुसू त्योहार के पकवान भी नये धान के चावल और गुड़ से तैयार किए जाते हैं। इस की सबसे खास बात यह है कि यह बाजार पर आधारित न होकर खेतों के उत्पाद पर आधारित है। इसके गीत भी स्त्री और किसान दोनों की महत्ता को दर्शाते हुए रचे गए हैं।

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परंपरा स्वरूप को बचाए रखना जरूरी

डॉ.अभय सागर मिंज न्यूज़ 24 से इस पर्व में शहरीकरण के प्रवेश पर चिंता जताते हुए कहते हैं कि बदलते ज़माने के साथ इस त्योहार पर भी शहरी सभ्यता का अतिक्रमण हो रहा है। इसमें दिखावा हावी हो रही है। इससे बचने की जरूरत है। पहले इस त्योहार को एक माह तक अलग-अलग दिन, अलग-अलग गांवों में मनाया जाता था वहीं अब इसे एक खास दिवस तक ही समेट दिया गया है।इसके साथ ही लोगों का एक दूसरे के घर इस त्योहार में शरीक होने का प्रचलन भी घटा है। लोग एकल हो रहे है और जो सामाजिक एकता थी वह घट रही है। हमें ऐसे त्योहारों को बचाने की जरूरत है वरना आदिवासी संस्कृति पर संकट आ खड़ा होगा।

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Edited By

Rakesh Choudhary

First published on: Jan 13, 2023 06:47 PM

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