Haryana Assembly Elections: हरियाणा में विधानसभा चुनाव का ऐलान हो चुका है। प्रदेश में 5 अक्टूबर को वोटिंग है। वहीं, 8 अक्टूबर को नतीजों का ऐलान किया जाएगा। जींद को हरियाणा की राजनीतिक राजधानी कहा जाता है। जींद की धरती से कई बार हरियाणा की सियासत में बदलाव आ चुका है। प्रदेश में जितनी भी राजनीतिक पार्टियां रही हैं, सबका जींद से गहरा नाता रहा है। जींद विधानसभा की बात करें तो पिछले 47 साल में यहां 3 ही परिवारों का दबदबा रहा है। सिर्फ 1 बार किसी चौथे परिवार को यहां से प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है। 2024 के चुनाव में देखने वाली बात होगी कि यहां की राजनीति 3 परिवारों से बाहर निकल पाएगी या नहीं।
हर बड़ी पार्टी ने लिया जींद का सहारा
हरियाणा की राजनीति में बदलाव के लिए जींद की भूमिका अहम रही है। सत्ता में आने के लिए हर बड़े नेता ने जींद का सहारा लिया है। बांगर बेल्ट के नाम से मशहूर जींद में जिन परिवारों का दबदबा रहा, उनमें सबसे पहले नाम आता है पूर्व वित्त मंत्री मांगेराम गुप्ता का। 1977 में प्रदेश में जनता पार्टी की आंधी थी। लेकिन इसके बाद भी वे यहां से निर्दलीय जीते थे। 1980 में जब भजनलाल ने देवीलाल की सरकार गिरा दी, तब वे उनकी सरकार में मंत्री बने। 1982 में दोबारा चुनाव हुआ, तब कांग्रेस प्रत्याशी मांगेराम गुप्ता लोकदल के बृजमोहन सिंगला से सिर्फ 145 वोटों से हारे थे। यह अब तक का सबसे कड़ा मुकाबला माना जाता है। बाद में बृजमोहन कांग्रेस में शामिल हो गए थे। जिनको भजनलाल ने मंत्री बनाया था।
1991 में दूसरी बार जीते मांगेराम गुप्ता
1991 में मांगेराम गुप्ता फिर जींद से विधायक बने। तब भजनलाल ने उनको वित्त मंत्री बनाया। इसके बाद 1996 के चुनाव में फिर बृजमोहन सिंगला हविपा की टिकट पर जीते। कांग्रेस प्रत्याशी गुप्ता 18 हजार वोटों से हारे। बृजमोहन बंसीलाल और चौटाला दोनों सरकारों में लगातार मंत्री रहे। फरवरी 2000 में जींद से कांग्रेस की टिकट पर फिर मांगेराम गुप्ता विधायक बने। इसके बाद 2005 में भी जीते। हुड्डा सरकार में 2007 में गुप्ता को शिक्षा मंत्री बनाया गया। जींद की राजनीति का पूरा दौर मांगेराम गुप्ता और बृजमोहन सिंगला के इर्द-गिर्द सिमटा रहा। यानी जींद की राजनीति इन दो परिवारों से बाहर नहीं निकल पाई।
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1987 में ही जींद की राजनीति ने अलग करवट ली थी। तब देवीलाल की आंधी हरियाणा में चल रही थी। देवीलाल ने पिछड़ा वर्ग के प्रो. परमानंद को टिकट दिया था। जिन्होंने मांगेराम गुप्ता को 8 हजार वोटों से शिकस्त दी थी। तब देवीलाल ने उनको शिक्षा मंत्री बनाया था।
2009 में हुई तीसरे परिवार की एंट्री
2009 में तीसरे परिवार की एंट्री हुई। पंजाबी समुदाय के डॉ. हरिचंद मिड्ढा पर 2009 में ओमप्रकाश चौटाला ने दांव लगाया था। जिन्होंने दिग्गज मांगेराम गुप्ता को हरा दिया था। उसके बाद से अब तक मिड्ढा परिवार ही यहां से जीत रहा है। 2014 में हरिचंद मिड्ढा दूसरी बार इनेलो के विधायक बने। 2018 में उनका निधन हो गया। जिसके बाद जनवरी 2019 में उपचुनाव हुआ था।
इस बार उनके बेटे डॉ. कृष्ण मिड्ढा ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीते। इसके बाद 2019 में दूसरी बार भी विधायक बने। कांग्रेस ने उनके खिलाफ पूर्व मंत्री बृजमोहन सिंगला के बेटे अंशुल सिंगला को उतारा था। जिनकी जमानत जब्त हो गई थी। अब 8 अक्टूबर को कौन जीतेगा? यह देखने वाली बात होगी। कांग्रेस से अंशुल सिंगला और मांगेराम गुप्ता के बेटे महावीर गुप्ता टिकट के दावेदार हैं।
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