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दिल्ली

कितना कठिन है दिल्ली-NCR के कुत्तों को शेल्टर होम में रखना? मेनका गांधी ने बताया ‘असंभव’, राहुल ने किया बचाव

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर से सभी आवारा कुत्तों को हटाकर शेल्टर होम में रखने का आदेश दिया है। कोर्ट ने दो महीने में कुत्तों को पकड़ने और आठ महीने में व्यवस्था पूरी करने का समय दिया है। मेनका गांधी और राहुल गांधी समेत कई लोगों ने इसे अव्यावहारिक और अमानवीय बताया है।

Author Written By: News24 हिंदी Author Edited By : Avinash Tiwari Updated: Aug 13, 2025 07:09
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प्रतीकात्मक फोटो (सोशल मीडिया)

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर के कुत्तों को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने आदेश दिया है कि शहर के सभी आवारा कुत्तों को दो महीने के भीतर पकड़ लिया जाए और उन्हें शेल्टर होम में रखा जाए। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने आठ हफ्ते का वक्त दिया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद कुछ लोग विरोध में उतर गए हैं और प्रदर्शन कर रहे हैं, वहीं कई नेता भी इस आदेश को लागू करने में आने वाली चुनौतियों पर खुलकर अपनी राय रख रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि दिल्ली-एनसीआर में लाखों कुत्तों को शेल्टर होम में कैसे रखा जाएगा?

विशेषज्ञों की मानें तो दिल्ली में दिए गए समय सीमा में इस आदेश को लागू करना ‘असंभव’ है। उनका कहना है कि एमसीडी के पशु जन्म नियंत्रण (ABC) और टीकाकरण कार्यक्रम की विफलता के कारण ही स्थिति और बदतर हुई है। एमसीडी, एनजीओ के साथ मिलकर 20 पशु जन्म नियंत्रण (ABC) केंद्र चलाती है। ये कोई शेल्टर होम नहीं, बल्कि नसबंदी के बाद कुत्तों को 10 दिनों तक रखने के लिए अस्थायी जगह है। 10 दिन बाद कुत्तों को छोड़ दिया जाता है।

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दिल्ली में कुत्तों की संख्या कितनी?

अगर इन जगहों पर भी कुत्तों को रखा जाए तो महज 3 से 4 हजार कुत्तों को ही रखा जा सकता है, जबकि दिल्ली में कुत्तों की संख्या दस लाख के करीब है। 2009 में कुत्तों की जनगणना आखिरी बार हुई थी। तब से अब तक कुत्तों की गिनती नहीं हुई है, लेकिन अधिकारियों का अनुमान है कि संख्या दस लाख के करीब है। बिना किसी सटीक आंकड़े के कैसे उनके रहने, खाने-पीने और देखभाल की व्यवस्था की जा सकेगी?

अगर एक कुत्ते पर प्रतिदिन महज 40 रुपये खर्च किए जाएं तो दस लाख कुत्तों को खिलाने में लगभग 3 करोड़ रुपये या सालाना 1,000 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च आएगा। इसमें कुत्तों के रहने, इलाज, परिवहन और देखभाल करने वालों की लागत शामिल नहीं है। ऐसे में जब एमसीडी समय पर एनजीओ को पैसे नहीं दे पा रही है, तो वह कैसे इन कुत्तों के लिए महज आठ हफ्तों में शेल्टर की व्यवस्था कर पाएगी? यह बड़ा सवाल है।

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मेनका गांधी ने क्या कहा?

पूर्व सांसद और पशुओं के लिए आवाज़ उठाने वालीं मेनका गांधी ने फंड के बिना सुप्रीम कोर्ट की समय-सीमा में इसे कर पाना ‘असंभव’ बताया है। मेनका गांधी ने कहा कि दिल्ली में एक भी सरकारी शेल्टर नहीं है। आप कितने शेल्टर में 3 लाख कुत्ते रखेंगे? आपके पास तो एक भी नहीं है। इन शेल्टर को बनाने में कम से कम 15 हज़ार करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। आपको ऐसी जगहों पर 3,000 शेल्टर बनाने होंगे जहां कोई नहीं रहता। आप इतनी सारी जगहें कैसे खोजेंगे? यह दो महीने में नहीं हो सकता। आपको 1.5 लाख लोगों को सिर्फ सफाई कर्मचारी के तौर पर नौकरी पर रखना होगा, जिस पर भी करोड़ों खर्च होंगे।

उन्होंने कहा कि सबसे पहले जब वे कुत्तों को लेने जाएंगे तो हर गली में लड़ाई होगी, क्योंकि कुत्तों को खिलाने वाले लोग उन्हें नहीं जाने देंगे। क्या हम ऐसी अस्थिरता की स्थिति चाहते हैं? जब यहां के कुत्ते ले जाए जाएंगे, तो आस-पास के राज्यों के कुत्ते दिल्ली आएंगे क्योंकि उनके लिए यहां अधिक खाना होगा। फिर एक हफ्ते के अंदर ही दिल्ली में 3 लाख कुत्ते और होंगे और उनकी नसबंदी नहीं होगी। फिर क्या आप फिर से नसबंदी शुरू करेंगे?

राहुल गांधी ने भी किया बचाव

वहीं राहुल गांधी ने कुत्तों को बेजुबान बताते हुए सोशल मीडिया पर लिखा कि दिल्ली-एनसीआर से सभी आवारा कुत्तों को हटाने का सुप्रीम कोर्ट का निर्देश दशकों से चली आ रही मानवीय और विज्ञान-समर्थित नीति से एक कदम पीछे है। ये बेज़ुबान आत्माएं कोई “समस्या” नहीं हैं जिन्हें मिटाया जा सके। आश्रय, नसबंदी, टीकाकरण और सामुदायिक देखभाल सड़कों को बिना किसी क्रूरता के सुरक्षित रख सकते हैं।

PETA ने क्या कहा?

PETA इंडिया की तरफ से सोशल मीडिया पर लिखा गया कि वे ‘stray’ नहीं, बल्कि सामुदायिक कुत्ते हैं। जहां बहुत से लोग हाल ही में दिल्ली आकर बसे हैं, वहीं ये सामुदायिक कुत्ते पीढ़ियों से इसी क्षेत्र में रह रहे हैं। वे भी दिल्लीवासी हैं, हमारी ही तरह सिर्फ ज़िंदा रहने की कोशिश कर रहे हैं और वे इस समुदाय का हिस्सा हैं। खुशहाल समुदाय का समाधान ‘नसबंदी’ है, ‘विस्थापन’ नहीं।

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पेटा इंडिया के एडवोकेसी एसोसिएट, शौर्य अग्रवाल का कहना है कि यह विशेष आदेश अव्यवहारिक, अतार्किक और पशु जन्म नियंत्रण नियमों के अनुसार अवैध भी है। दिल्ली सरकार के पास इन नसबंदी कार्यक्रमों को लागू करने और ABC नियमों को लागू करने के लिए 24 साल थे। फिलहाल दिल्ली में 10 लाख कुत्ते हैं। उन्हें आश्रय गृहों में रखना अव्यवहारिक है। यह बहुत मुश्किल है। इससे अराजकता और समस्याएं पैदा होंगी। हम अपने सभी कानूनी रास्ते तलाश रहे हैं।

First published on: Aug 12, 2025 02:21 PM

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