Artificial Rain Test In Delhi: पिछले कई सालों से दिल्ली गैस का चेंबर बनी है। दिल्ली के प्रदूषण की चर्चा पूरे देश में रहती है। कई रिसर्च में सामने आया कि दिल्ली में रहने से लोगों की कई साल उम्र कम हो रही है। लेकिन अब दिल्ली सरकार ने इससे निपटने की तैयारी पूरी कर ली है। दिल्ली सरकार ने आईआईटी कानपुर के साथ ऑर्टिफिशियल बरसात के लिए अनुबंध किया था। आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों ने रिसर्च पूरी कर ली है। आईएमडी ने दिल्ली के पहले क्लाउड सीडिंग पायलट प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी है। अब उपयुक्त बादलों के आते ही आर्टिफिशियल बरसात का ट्रायल शुरू होगा। दिल्ली के बाहरी और उत्तर-पश्चिमी इलाकों में इसका ट्रायल होगा।
एयरक्राफ्ट से होंगे पांच ट्रायल
दिल्ली में कृत्रिम वर्षा यानी क्लाउड सीडिंग के लिए पांच ट्रायल किए जाएंगे। हर दिन एक-एक ट्रायल होगा। हर ट्रायल में एयरक्राफ्ट से बादलों में विशेष रसायन डाले जाएंगे जो 1 से 1.5 घंटे तक चलेगा। ट्रायल एक सप्ताह में या 1-2 दिन के अंतराल पर हो सकते हैं। सभी ट्रायल बादलों की उपलब्धता पर निर्भर है। एक बार में करीब 100 वर्ग किमी के दायरे में बारिश होगी।
क्या है क्लाउड सीडिंग?
इसे कृत्रिम वर्षा भी कहते हैं। यह मौसम को बदलने की वैज्ञानिक तकनीक है। इसमें बादलों में विशेष रसायनों को छिड़ककर बारिश की मात्रा या प्रकार को बदलने का प्रयास किया जाता है। इस प्रक्रिया में बादलों में सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस या फिर साधारण नमक को बादलों में छोड़ा जाता है, जो उन्हें बरसने के लिए प्रेरित किया जाता है। हवाई अड्डों और अन्य महत्वपूर्ण जगहों पर कोहरा हटाने के लिए इस तकनीक का प्रयोग किया जाता है।
ट्रायल के लिए क्या होगा अनुकूल मौसम?
क्लाउड सीडिंग के लिए पहले हवा की गति और दिशा अनुकूल होनी चाहिए। अनुकूल मौसम के लिए आसमान में करीब 40% बादल मौजूद होने चाहिए, जिसमें थोड़ा पानी होने की भी जरूरत है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो ट्रायल फेल हो सकता है और जरूरत से ज्यादा बारिश भी सकती है।
एक ट्रायल में आएगा इतना खर्चा
जानकारी के अनुसार, क्लाउड सीडिंग के एक ट्रायल पर करीब 1.5 करोड़ रुपये लागत आने का अनुमान है। अगर इस ट्रायल से लोगों को प्रदूषण से राहत मिलती है तो सरकार आगे की योजना बनाएगी।