Former Justice B. Lokur Questions on Manish Sisodia Bail: दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को बेल न मिलने पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश मदन बी. जस्टिस लोकुर ने कई सवाल खड़े किए हैं। जस्टिस लोकुर ने कहा कि ऐसा लगता है कि अदालतें जमानत देने या इनकार करने के मूल सिद्धांतों को भूल गई हैं। इसके साथ ही उन्होंने अधूरी चार्जशीट दाखिल करने और सिर्फ आरोपियों को जेल में रखने के लिए दस्तावेज मुहैया नहीं कराने जैसी जांच एजेंसियों की मंशा पर गौर करने की न्यायपालिका की अनिच्छा को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बताया है।
अधूरा आरोप पत्र किया जाता है तैयार
जस्टिस लोकुर ने कहा कि आजकल, यदि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है, तो आप आश्वस्त हो सकते हैं कि वह कम से कम कुछ महीनों के लिए जेल में होगा। उन्होंने आगे कहा कि पुलिस पहले व्यक्ति को गिरफ्तार करती है, फिर गंभीरता से जांच शुरू करती है, इसके बाद एक अधूरा आरोप पत्र दायर किया जाता है, उसके बाद एक पूरक आरोप पत्र दायर किया जाता है और दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए जाते हैं। इसमें सबसे दुर्भाग्यपूर्ण और परेशान करने वाली बात यह है कि कुछ अदालतें इस पर ध्यान देने को तैयार नहीं हैं।
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▪️Generally speaking, the courts seem to have forgotten the basic principles of grant or refusal of bail
---विज्ञापन---▪️Suspicions arise when the investigation is dropped if the suspect changes loyalties.
✍️ Former Supreme Court Judge Madan Lokur
— AAP (@AamAadmiParty) November 7, 2023
उन्होंने कहा कि कुछ राजनेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले नए नहीं हैं। कुछ राजनेताओं के खिलाफ अन्य आपराधिक मामले भी हैं। सभी मामलों में राजनीतिक प्रतिशोध का आरोप लगाना मुश्किल है लेकिन, कुछ मामलों में कुछ सच्चाई हो सकती है और इस सब में परेशान करने वाला पहलू यह है कि जांच शुरू होने और संदिग्ध के वफादारी बदलने के बाद, जांच छोड़ दी जाती है। इससे यह एक राजनीतिक प्रतिशोध के गंभीर संदेह को जन्म देता है।
किताबें पूरी कहानी नहीं बतातीं
आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया को जमानत देने से इनकार करने के बारे में एक सवाल के जवाब में न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा कि आम तौर पर ऐसा लगता है कि अदालतें जमानत देने या इनकार करने के मूल सिद्धांतों को भूल गई हैं। लोकुर से जब पूछा गया कि केंद्र और राज्य सरकार द्वारा जांच एजेंसियों के कथित दुरुपयोग के मुद्दे पर न्यायपालिका को कैसे रुख अपनाना चाहिए तो, इस पर उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को जीवन की वास्तविकताओं के प्रति जागने की जरूरत है क्योंकि, कानून की किताबें पूरी कहानी नहीं बतातीं। उन्होंने आगे कहा कि शीर्ष अदालत ने जमानत के मामलों में विवेकाधीन शक्ति के इस्तेमाल के लिए कई फैसलों में बुनियादी सिद्धांतों को अपनाया है।
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बुनियादी सिद्धांतों को लागू नहीं किया जाता
इस दौरान न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा कि समस्या यह है कि कुछ अदालतें इन बुनियादी सिद्धांतों को लागू नहीं करती हैं, जबकि उन्हें यह सब पता होता है। हालांकि, प्रश्न उठता है कि आखिर ऐसा क्यों किया जा रहा है? बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने कथित दिल्ली आबकारी नीति घोटाले से संबंधित भ्रष्टाचार और धन शोधन के मामलों में पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को 30 अक्टूबर को जमानत देने से इनकार कर दिया गया। इस मामले में सीबीआई ने उन्हें 26 फरवरी को गिरफ्तार किया था।
हाल के वर्षों में राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ सरकारी एजेंसियों द्वारा दर्ज कराए गए भ्रष्टाचार के मामलों की बढ़ती संख्या के बारे में कुछ भी नहीं बोलते हुए न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा कि हालांकि, इस तरह की चीजें नई नहीं हैं, लेकिन समस्या संदिग्धों के खिलाफ जांच की दिशा है, यदि वे राजनीतिक वफादारी बदलते हैं।