सुप्रीम कोर्ट: छावला गैंगरेप केस में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई है। याचिका में पीड़ित के परिजनों ने तर्क दिया है कि मामले में दो अदालतों ने दोषियों को फांसी की सजा दी। डीएनए जांच में मिले सबूतों से केस साबित हो रहा था। आरोपी राहुल की कार में खून से सना जैक भी मिला था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ जा रहे कई सबूतों की उपेक्षा की है। जांच की कुछ कमियों के आधार पर सबको बरी कर दिया। ऐसे में शीर्ष अदालत के आदेश पर दोबारा विचार करने का आग्रह करते हैं।
छावला गैंगरेप मामले में पीड़ित परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की@PMishra_Journo pic.twitter.com/MtnBOVLJFZ
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बता दें मूल रूप से उत्तराखंड की पीड़िता दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के छावला के कुतुब विहार में रहती थी। 9 फरवरी 2012 की रात नौकरी से लौटते समय उसे कुछ लोगों ने जबरन अपनी लाल इंडिका गाड़ी में बैठा लिया। इसके तीन दिन बाद उसकी लाश बुरी हालत में हरियाणा के रेवाड़ी में मिली थी। उसके साथ दुष्कर्म किया गया था और उसे यातनाएं दी गई थी। पीड़िता को औजारों से पीटा गया, उसके ऊपर मिट्टी के बर्तन फोड़े गए। उसके शरीर को सिगरेट व गर्म लोहे की झड़ से दागा गया।
पुलिस ने मामले में कार की निशानदेही पर राहुल, उसके साथियों रवि और विनोद को पकड़ा था। 2014 में पहले निचली अदालत ने तीनों को फांसी की सज़ा सुनवाई थी। इसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा था। फिर 7 नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस यू यू ललित, दिनेश माहेश्वरी और बेला त्रिवेदी की बेंच ने तीनों आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस की जांच और मुकदमे के दौरान बरती गई लापरवाहियों के आधार पर यह फैसला दिया था।