Anti Naxal Operation: छत्तीसगढ़ में कभी आठ लाख रुपये की ईनामी नक्सली रही सुंदरी उर्फ ललिता अब नक्सलवाद से निपटने में सरकार और सुरक्षाबलों की मदद कर रहीं हैं। छत्तीसगढ़ सरकार की पुनर्वास-सह-समर्पण नीति का सबसे अधिक प्रभाव उग्रवाद प्रभावित बस्तर क्षेत्र में दिख रहा है। यहां नक्सल कैडर हिंसा का रास्ता छोड़कर लगातार समाज की मुख्यधारा में शामिल हो रहे हैं।
प्रतिबंधित गैरकानूनी संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की खोखली विचारधारा और संगठन के साथ भेदभाव को समझते हुए सुंदरी उर्फ ललिता ने नक्सल आंदोलन छोड़ दिया है। वे अब वह डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (DRG) में कांस्टेबल के पद पर कार्यरत हैं। बता दें कि सुंदरी उर्फ ललिता 10 साल से प्रतिबंधित संगठन से जुड़ी हुई थी। ललिता पर सरकार ने आठ लाख रुपये का इनाम रखा था।
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नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभा रही सुंदरी
वर्तमान में सुंदरी नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं और जनता की सुरक्षा के लिए नक्सल विरोधी अभियानों में अपनी सक्रिय भागीदारी दर्ज करा रही हैं। सुंदरी की सावधानीपूर्वक योजना और रणनीति के कारण, सुरक्षा बल मुठभेड़ के दौरान नक्सलियों को गिरफ्तार करने और उनका सफाया करने में सफल रहे।
अपने पति के साथ पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने वाली सुंदरी ने खुलासा किया कि कई युवा आत्मसमर्पण करना चाहते थे, लेकिन उनकी पुलिस तक पहुंच नहीं थी। महिला नक्सली को जबरन गैरकानूनी संगठन में शामिल किया गया था जब वह 15 साल की थी और शुरू में वह संगठन की सांस्कृतिक शाखा का हिस्सा थी। अलग-अलग पदों पर काम करने के बाद अंतत: सुंदरी को ‘ए’ कंपनी में प्रमोट किया गया।
सुंदरी बोली- नक्सली नेता संगठन में करते हैं युवाओं का शोषण
सुंदरी ने बस्तर क्षेत्र में घात लगाकर हमला करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जिसमें कई सुरक्षाकर्मी मारे गए थे। उसने यह भी खुलासा किया कि आंध्र प्रदेश के नक्सली नेता संगठन में युवाओं का शोषण करते हैं। आत्मसमर्पण करने और समाज की मुख्य धारा में शामिल होने के लिए सुंदरी घंटों पैदल चली और घने जंगल, पहाड़ियों, नदी और नाले को पार कर जिला मुख्यालय पहुंची।
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बस्तर क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सात जिलों में हर साल औसतन लगभग 400 कैडरों ने सुरक्षा बलों के सामने आत्मसमर्पण किया। बस्तर क्षेत्र में नक्सलियों के आत्मसमर्पण का एक मुख्य कारण आंतरिक क्षेत्रों में सुरक्षा बलों के शिविर लगाना और ग्रामीणों के बीच जागरूकता फैलाना भी है, जहां देश में सबसे ज्यादा घटनाएं हुई हैं।
15 साल की उम्र में संगठन में हुई थी शामिल
न्यूज एजेंसी से बात करते हुए सुंदरी उर्फ ललिता ने खुलासा किया कि वह नारायणपुर जिले में मैड डिवीजन के तहत एक बटालियन में सक्रिय थी और अलग-अलग घटनाओं में शामिल थी, जिसमें बटुम एंबुश (2010 में), उरपाल मेटावाड़ा और कुदुर घाटी शामिल हैं। उग्रवाद प्रभावित जिले के अशांत गांव से आने वाली सुंदरी ने कहा कि मेरा बड़ा भाई सरकार के लिए काम कर रहा था, इसलिए जब मैं 15 साल की थी तब नक्सली मुझे अपने साथ ले गए।
2014 में, मैं और मेरे पति गीदम आए, जहां एक व्यक्ति ने मुझे एक कागज दिया, जिसके बाद हमने छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल के कर्मियों से नक्सल-आंदोलन छोड़ने की इच्छा व्यक्त करते हुए संपर्क किया।
उधर, बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी को सुंदरी ने बताया कि तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र से संबंधित प्रतिबंधित संगठन में वरिष्ठ नेताओं ने जंगल, जमीन और पानी के नाम पर निर्दोष युवाओं को गुमराह करने में कामयाब रहे। उन्होंने बताया कि नक्सल संगठन से जुड़ने के बाद युवाओं को नक्सलवाद के असली चेहरे के बारे में पता चलता है।