Chhattisgarh Assembly Election: छत्तीसगढ़ में बीजेपी इस बार 2013 का प्रदर्शन 2023 में दोहराने की तैयारियों में जुटी है, ताकि फिर से सत्ता में वापसी की जा सके। लेकिन भाजपा के लिए फिलहाल राह आसान नहीं है। क्योंकि आरक्षित सीटों पर बीजेपी की स्थिति 2013 के चुनाव के बाद से बेहद कमजोर होती चली गई है। लिहाजा भाजपा ने इस बार आरक्षित सीटों पर सबसे ज्यादा जोर देना शुरू किया है। ताकि 13 वाला जादू 23 में चल पाए।
आरक्षित सीटों पर तैयारियों में जुटी बीजेपी
छत्तीसगढ़ में बीजेपी आरक्षित सीटों पर तैयारियों में जुटी है। सबसे ज्यादा मंथन एससी सीटों पर चल रहा है। बीते दिनों राजधानी रायपुर में भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बैठक की थी। जिसमें आने वाले चुनाव में इन सीटों पर बूथ मैनेजमेंट को मजबूत करने के निर्देश दिए गए हैं।
2003 से 2013 के बीच बीजेपी को मिली बढ़त
दअरसल, पंरपरागत रूप से इस वर्ग को कांग्रेस और बसपा का वोट बैंक माना जाता है। लेकिन इस वर्ग में 2003 से 2013 के बीच हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा यहां अपनी मजबूत पैठ बना चुकी थी। 2013 के चुनाव में तो 10 में से 9 सीटें जीतकर भाजपा ने कांग्रेस और बसपा का मानों इस वर्ग से सफाया कर दिया था। लेकिन 2018 के आते-आते तस्वीर पूरी तरह से बदल गई। क्योंकि बीजेपी ने इस वर्ग के बीच अपना जनाधार खो दिया और मौजूदा स्थिति बीजेपी के अनुकूल नहीं है।
13 प्रतिशत वोट बैंक
इन परिस्थितियों के बीच बीजेपी 13 प्रतिशत वोट बैंक वाले एससी वर्ग को साधने में जोर-शोर से जुट गई है। छत्तीसगढ़ में भाजपा एससी मोर्चा का राष्ट्रीय बैठक होना भी इसका एक बड़ा उदाहरण है। इससे पहले कभी ऐसी बैठक भाजपा की छत्तीसगढ़ में नहीं हुई थी। लेकिन बीजेपी अब इस 13 प्रतिशत वोटबैंक के जरिए अपनी खोई हुई ताकत वापस पाने में जुटी है।
एक नजर छत्तीसगढ़ के सियासी समीकरण पर
छत्तीसगढ़ में एससी वर्ग के लिए 10 सीटें आरक्षित हैं। इन आरक्षितों सीटों पर 2003 से लेकर 2018 के चुनाव परिणामों की बात करे तो बीजेपी के लिए सबसे खराब स्थिति 2018 के विधानसभा चुनाव में रही है। जहां पार्टी को महज 2 सीटें मिली थी। ऐसे मे अब पार्टी इसी पर फोकस में जुटी है।
- 2003 के चुनाव में एससी वर्ग के 10 सीटों में बीजेपी को 4, कांग्रेस को 4 और 2 सीटों पर बसपा को जीत मिली थी।
- 2008 में हुए चुनाव में 10 सीटों में बीजेपी को 5, कांग्रेस को 4 और बसपा को 1 सीट पर जीत मिली थी।
- 2013 में हुए चुनाव में बीजेपी को 10 में से 9 सीटों पर जीत मिली थी। वहीं कांग्रेस सिर्फ 1 सीट जीत पाई थी, जबकि इस वर्ग में सबसे मजबूत बीएसपी अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी।
- 2018 में हुए चुनाव में कांग्रेस को सर्वाधिक 10 में से 7 सीटों पर जीत मिली थी। वहीं बीजेपी को महज 2 सीटों पर, जबकि बसपा को 1 सीट पर जीत मिली थी।
चुनाव में आरक्षण का असर
छत्तीसगढ़ में अभी 58 प्रतिशत आरक्षण लागू है। एसटी के लिए 32 प्रतिशत, ओबीसी के लिए 14 जबकि एससी वर्ग के लिए 12 प्रतिशत आरक्षण शामिल है। दरअसल 2012 में तत्कालीन रमन सरकार ने छत्तीसगढ़ में आरक्षण को लेकर अधिसूचना जारी की थी। 2012 में नई अधिसूचना के बाद एसटी के लिए 32, एससी के लिए 12 और वहीं ओबीसी के लिए 14 प्रतिशत आरक्षण लागू हुआ था। यानि संविधान द्वारा निर्धारित 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण छत्तीसगढ़ में हुआ था।
2012 से पहले छत्तीसगढ़ में 50 प्रतिशत तक की आरक्षण की व्यवस्था थी। इसमें एसटी को 32, एससी को 16 और ओबीसी को 14 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिल रहा था। एससी वर्ग के आरक्षण में कटौती के बावजूद इसका का कोई नुकसान 2013 के चुनाव में बीजेपी को नहीं हुआ था। बल्कि फायदा ही हुआ था, भाजपा आरक्षण में कटौती के बाद 10 में से 9 सीट जीतने में सफल रही थी।
भूपेश सरकार में आरक्षण की व्यवस्था
वहीं वर्तमान में भूपेश सरकार में 76 प्रतिशत आरक्षण में एसटी के लिए 32, ओबीसी के लिए 27, एससी के लिए 13 और ईडब्ल्यूएस के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है। लेकिन आरक्षण विधेयक राजभवन में लंबित है। इस तरह से देखा जाए तो एससी वर्ग के आरक्षण में 1 प्रतिशत की वृद्धि संभावित है। हालांकि एससी वर्ग की ओर से 2012 से पूर्व जो 16 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलता उसे देने की मांग उठाता रहा है।
ऐसे में कहा जा सकता है कि मौजूदा स्थिति आरक्षित सीटों पर बीजेपी की स्थिति अच्छी नहीं है, यही वजह है कि भाजपा एससी सीटों पर 2013 के परिणाम को दोहराना चाहती है और इसके लिए पूरा जोर लगा रही है। दूसरी ओर कांग्रेस को 2018 के चुनाव में जैसी सफलता मिली थी, वह उसी प्रदर्शन को फिर से दौहराना चाहती है। बहरहाल भाजपा और कांग्रेस के दावों के बीच हकीकत क्या इसका फैसला तो 2023 का चुनाव परिमाण बताएगा। लेकिन ये सच है कि इस बार एससी सीटों पर भाजपा की तैयारी कांग्रेस से ज्यादा नजर आ रही है।
रायपुर से वैभव शिव पाण्डेय की रिपोर्ट।
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