बस्तर: छत्तीसगढ़ में बस्तर दशहरे की प्रसिध्द रस्म रथ परिक्रमा का समापन बाहर रैनि रस्म के साथ हो गया है। रथ परिक्रमा की आखिरी रस्म बाहर रैनी के तहत माडिया जाति के ग्रामीणों द्वारा परम्परानुसार 8 पहिये वाले रथ को चुराकर कुम्हडाकोट ले जाया जाता है।
इसके पश्चात राज परिवार द्वारा कुम्ह्डाकोट पंहुच ग्रामीणों को मनाकर और उनके साथ नवाखानी खीर खाकर रथ वापस राजमहल लाया जाता है। वहीं इस रस्म में शामिल होने प्रदेश के उद्योग मंत्री कवासी लखमा और बस्तर सांसद दीपक बैज भी कुम्हड़ाकोट पहुंचे।
बस्तर में बड़ा दशहरा विजयादशमी के एक दिन बाद बनाया जाता है। वहीं भारत के अन्य स्थानों में मनाये जाने वाले रावण दहन के विपरीत बस्तर में दशहरे का हर्षोल्लास रथोत्सव के रूप में नजर आता है। बस्तर राजपरिवार सदस्य कमलचंद भंजदेव के अनुसार प्राचीन काल में बस्तर को दंडकारण्य के नाम से जाना जाता था, जो कि रावण की बहन सुर्पनखा की नगरी थी।
रावण दहन नहीं बल्कि निकाला जाता है बड़ा रथ
इसके अलावा मां दुर्गा ने बस्तर में ही भस्मासुर का वध किया था जो कि काली माता का एक रूप है। इसलिए यहां रावण का दहन नहीं किया जाता बल्कि बड़ा रथ चलाया जाता है।
बस्तर के राजा पुर्शोत्तामदेव द्वारा जगन्नाथपुरी से रथपति की उपाधि ग्रहण करने के पश्चात बस्तर में दशहरे के अवसर पर रथ परिक्रमा की प्रथा आरम्भ की गई जो कि आज तक अनवरत चली आ रही है। 10 दिनों तक चलने वाले रथ परिक्रमा के विजयदशमी दिन भीतर रैनी की रस्म पूरी की गई, जिसमें परम्परानुसार माडिया जाती के ग्रामीण शहर के मध्य स्थिति सिरासार से रथ को चुराकर कुम्हडाकोट ले जाते हैं।
आज निभाई गई ‘बाहर रैनी रस्म’
आज गुरुवार को बाहर रैनी की रस्म अदा की गई जिसमें बस्तर राजपरिवार सदस्य कमल चंद भंजदेव शाही अंदाज में घोड़े में सवार होकर कुम्हड़ाकोट पहुंचते हैं और ग्रामीणों के साथ नवाखानी खीर खाते है। इसके बाद राज परिवार द्वारा ग्रामीणों को समझा-बुझाकर रथ को वापस शहर लाया जाता है। रथ को इस तरह वापस लाना बाहर रैनी कहलाता है और इस रस्म के पश्चात इस विश्व प्रसिद्द रथ परिक्रमा की रस्म का समापन होता है।
विश्व प्रसिध्द बस्तर दशहरा के इस आखिरी रस्म को देखने लोगो का जनसैलाब उमड पडता है. दूर दराज से पंहुचे आंगादेव और देवी देवताओं के डोली भी इस रस्म अदायगी में कुम्हडाकोट पंहुचती है और जंहा से सभी नवाखानी खाकर रथ को वापस दंतेश्वरी मंदिर पंरिसर मे पंहुचाते है। बकायदा माता के छत्र को रथारूढ़ करने से पहले बंदूक से फायर कर 3 बार सलामी भी दी जाती है। इधर इस अनुठी रस्म को देखने बडी संख्या मे विदेशी सैलानी भी बस्तर पंहुचे हैं।
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