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बिहार के मोकामा और पूर्णिया में बाहुबलियों की वापसी, दोनों सीटों पर हुआ दिलचस्प मुकाबला

Bihar Elections: बिहार की मोकामा विधानसभा सीट और पूर्णिया विधान सभा सीट पर बाहुबली और जातीय समीकरण मिलकर सत्ता का संतुलन तय करते आए हैं.

Author Written By: News24 हिंदी Updated: Nov 14, 2025 16:58
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Bihar Elections: बिहार की मोकामा विधानसभा सीट और पूर्णिया विधान सभा सीट पर बाहुबली और जातीय समीकरण मिलकर सत्ता का संतुलन तय करते आए हैं. इस सीट पर एक बार फिर बाहुबली नेता जेडीयू उम्मीदवार अनंत सिंह ने अपनी जीत दर्ज कर ली है. इसके अलावा बिहार की पूर्णिया विधान सभा का चुनाव मैदान में मुकाबला भाजपा के विजय कुमार खेमका और महागठबंधन के उम्मीदवार जितेन्द्र के बीच कड़ा माना जा रहा था. इस सीट पर विजय कुमार ने शुरू से ही बढ़त बनाए रखी और भाजपा अपनी सात बार की जीत की विरासत को बचाने में कामयाब होती नजर आ रही है. इसके अलावा कांग्रेस, पप्पू यादव के प्रभाव को भुनाकर इस गढ़ में सेंध लगाने का प्रयास किया मगर सफलता नहीं मिल सकी.

मोकामा विधान सभा सीट

अनंत सिंह ने इस बार जीत हासिंल करके 5 बार के विधायक हो गए हैं. इससे पहले अनंत सिंह 2020 में अनंत सिंह राजद ही जीते थे. इसके अलावा वह 2015 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विजयी रहे थे. इससे पहले वह 2010 में यह सीट जदयू (JDU) के पास थी. इस सीट पर यदि जातीय समीकरण की बात की जाए तो इस बार फिर मुकाबला भूमिहार बनाम भूमिहार था. जदयू से अनंत सिंह और आरजेडी से वीणा देवी चुनाव लड़ी. चुनाव भले वीणा देवी लड़ रही हों, लेकिन राजनीतिक रूप से यह टक्कर अनंत सिंह बनाम सूरजभान सिंह मानी जा रही थी. साल 2000 में मोकामा का चुनाव बिहार में अनंत सिंह के भाई दिलीप सिंह मंत्री थे और RJD से चुनाव लड़ रहे थे. तब सूरजभान सिंह ने निर्दलीय उतरकर उन्हें हराकर सबको चौंका दिया. उस समय सूरजभान सिंह पर 50 से अधिक मामले दर्ज थे. यही से मोकामा की राजनीति में बाहुबली बनाम बाहुबली की परंपरा शुरू हुई.

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‘छोटे सरकार’ के नाम से विख्यात अनंत सिंह

क्ष्रेत्र में ‘छोटे सरकार’ के नाम से विख्यात अनंत सिंह की 2005 में राजनीति की शुरूआत जदयू से की थी. उन्होंने इस सीट पर जदयू के टिकट पर 2005 और 2010 में जीत दर्ज की. फिर 2015 में निर्दलीय और 2020 में राजद के टिकट पर फिर से जीत दर्ज की. इसके बाद साल 2022 में हथियार बरामदगी मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद उनकी विधायकी चली गई. इसके बाद 2024 में पटना हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था. वे दोबारा जनवरी 2025 में 6 महीने के लिए जेल गए थे. इस साल की अगस्त में उन्हें फिर रिहा किया गया. अब वे JDU के टिकट से दोबारा चुनाव मैदान में उतरे हैं. अनंत सिंह के खिलाफ 38 आपराधिक मामले दर्ज रहे हैं, जिनमें हत्या, अपहरण और हत्या के प्रयास के आरोप शामिल हैं. इसके बावजूद मोकामा की जनता उन्हें ‘छोटे सरकार’ के रूप में आज भी पहचानती है. इन चुनावों में भी एक बार फिर बाहुबली अनंत सिंह की धमाकेदार वापसी हो रही है.

पूर्णिया विधान सभा सीट का इतिहास बेहद दिलचस्प

पूर्णिया विधान सभा चुनाव में मुकाबला भाजपा के विजय कुमार खेमका और महागठबंधन उम्मीदवार जितेन्द्र के बीच कड़ा रहने की उम्मीद जताई जा रही थी. शहरी अर्थव्यवस्था, विकास और रोजगार के मुद्दे यहां के चुनावी नतीजों पर अहम असर डाले. उत्तर बिहार के मिथिला क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माने जाने वाला पूर्णिया शहर न केवल बिहार का चौथा सबसे बड़ा शहर और एक उभरता हुआ आर्थिक केंद्र है, बल्कि राजनीतिक रूप से भी इसका इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है. 1951 में स्थापित पूर्णिया विधानसभा सीट, एक शहरी-बहुल क्षेत्र है, जहां लगभग 63.38 प्रतिशत मतदाता शहरी और 36.63 प्रतिशत मतदाता ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं. अब तक यहां 19 विधानसभा चुनाव (दो उपचुनाव सहित) हो चुके हैं. यह सीट आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए अपनी प्रतिष्ठा बचाने और महागठबंधन के लिए वापसी का प्रयास करने का केंद्र बन गई है.

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पूर्णिया सीट पर भाजपा का रहा वर्चस्व

पूर्णिया विधानसभा सीट पर 1952 से 1972 तक कांग्रेस के कमलदेव नारायण सिन्हा ने लगातार छह बार जीत दर्ज की. इसके बाद साल 1980 से 1998 तक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) के अजीत सरकार ने लगातार चार बार जीत दर्ज की थी. इसके बाद साल 2000 से भाजपा ने इस सीट पर अपना दबदबा कायम किया है और लगातार सात बार जीत दर्ज की है. विजय कुमार खेमका (BJP) 2015 से इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. भाजपा के विजय कुमार खेमका ने कांग्रेस प्रत्याशी को 32,000 से अधिक मतों के अंतर से हराया था. इस बार भी विजय कुमार खेमका फिर से जीत दर्ज करते दिखाई दे रहें हैं.

First published on: Nov 14, 2025 04:57 PM

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