बिहार चुनाव 2025 अब सिर्फ सभाओं और रोड-शो की लड़ाई तक सीमित नहीं है बल्कि इस बार असली रणभूमि बन गए हैं मोबाइल फोन और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स. फेसबुक, ट्विटर (X), इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर नेताओं की जंग उतनी ही तेज है जितनी मैदान में. सबसे आगे दिख रही है बीजेपी, लेकिन प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी डिजिटल रणभूमि में जोरदार चुनौती दे रही है.
किसने कितना किया खर्च?
पिछले 30 दिनों में बिहार में डिजिटल विज्ञापनों पर करीब 4.81 करोड़ रुपये खर्च हुए, जिसमें सबसे ज्यादा हिस्सेदारी बीजेपी की रही. अकेले गूगल पर 2.98 करोड़ और मेटा प्लेटफॉर्म्स पर 1.6 करोड़ रुपये का खर्च किया गया. दिल्ली, पटना और गुड़गांव से तैयार कंटेंट हजारों वॉलंटियर्स गांव-गांव तक पहुंचा रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 100 मिलियन से ज्यादा ट्विटर/X फॉलोअर्स और फेसबुक-इंस्टाग्राम पर करोड़ों की रीच बीजेपी को डिजिटल जंग में बढ़त दिला रही है. हालांकि ऑनलाइन को लेकर एक्सपर्ट कहते हैं कि कंटेंट को लेकर किसी की कोई जिम्मेदारी नहीं है. बिहार की 12.5 करोड़ आबादी में 7 करोड़ लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं. लिहाजा राजनीतिक दलों को इससे काफी फायदा होता है.
PK, BJP को दे रहे तगड़ी टक्कर
इस डिजिटल जंग में प्रशांत किशोर और उनकी जन सुराज पार्टी भी पीछे नहीं हैं. सूत्रों के मुताबिक PK की डिजिटल टीम करीब 10,000 वालंटियर्स की है, जो 12 देशों में फैली हुई है और इसका हेडक्वार्टर सिंगापुर में है. PK का मॉडल भारी खर्च से अलग है. वह ऑर्गनिक रीच, मीम्स, लोकल वीडियो और इन्फ्लुएंसर नेटवर्क पर भरोसा कर रहे हैं. हाल ही में मनीष कश्यप जैसे बड़े नामों के जुड़ने से PK का डिजिटल इकोसिस्टम और मजबूत हुआ है. प्रशांत किशोर का मॉडल बड़ा खर्च करने की बजाय ऑर्गनिक रीच, लोकलाइज्ड कंटेंट और इन्फ्लुएंसर नेटवर्क पर आधारित है. उनकी 10,000 लोगों की टीम और 12 देशों में फैला नेटवर्क उन्हें गंभीर चुनौतीकर्ता बनाता है. हालांकि BJP के पैमाने से छोटा होने के बावजूद, PK का डिजिटल और ग्राउंड कंबिनेशन चुनावी जंग में असर डाल सकता है.
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कुल मिलाकर बिहार की 243 विधानसभा सीटों में इस बार डिजिटल अभियान सिर्फ सहायक टूल नहीं, बल्कि निर्णायक फैक्टर बन चुका है. बीजेपी-एनडीए भारी खर्च और विशाल फॉलोअर बेस के दम पर आगे है, जबकि प्रशांत किशोर ग्रासरूट टीम और लोकल कंटेंट से चुनौती पेश कर रहे हैं. इस बार की लड़ाई में रैलियों के साथ-साथ पोस्ट, रील्स और मीम्स भी सियासी नैरेटिव तय करेंगे. इससे साफ है कि बिहार चुनाव 2025 की असली जंग इस बार सड़कों से ज्यादा स्क्रीन पर लड़ी जाएगी. जनता तक किसका मैसेज ज्यादा असरदार पहुंचता है, यही तय करेगा विधानसभा की तस्वीर.










