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‘मौत’ के 15 साल बाद की क्रिकेट के मैदान पर वापसी, क्रिकेटर की अनोखी दास्तां, भारत आकर खेला मैच

Harry Lee Cricketer: क्रिकेटर हैरी ली की कहानी बेहद दिलचस्प है। उन्होंने आधिकारिक रूप से मरा हुआ घोषित कर दिया गया था। यहां तक कि उनकी याद में स्मारक भी बनवा दिया गया, लेकिन 15 साल बाद उन्होंने आश्चर्यजनक रूप से क्रिकेट के मैदान पर वापसी की।

Edited By : Pushpendra Sharma | Updated: Sep 9, 2024 21:27
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Harry Lee Cricketer
Harry Lee

Harry Lee Cricketer: दुनियाभर में ऐसे कई क्रिकेटर हुए हैं, जिन्होंने कभी बीमारी से तो कभी चोट से जूझने के बाद क्रिकेट के मैदान पर लंबे समय बाद वापसी की। कैंसर से जंग जीतने के बाद युवराज सिंह की वापसी हो या फिर अनिल कुंबले का टूटे जबड़े से बॉलिंग करना या टाइगर पटौदी का सड़क दुर्घटना में आंख में गंभीर चोट लगने के बाद मैदान पर अपनी चमक बिखेरना। ये ऐसे किस्से हैं, जिनसे युवा खिलाड़ियों को चुनौतियों से आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है, लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि कोई खिलाड़ी अपनी ‘मौत’ के 15 साल बाद खेलने उतरे। चौंक गए ना? ऐसा वाकई हो चुका है। इस ‘मौत’ के पीछे का किस्सा काफी दिलचस्प है। आइए आज आपको ऐसे ही एक क्रिकेटर के बारे में बताते हैं…

सेना में इस तरह शामिल हुए हैरी ली

आज हम बात कर रहे हैं क्रिकेटर हैरी ली की। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ग्रेट ब्रिटेन पर जर्मन एयरशिप की ओर से हमला किया जा रहा था। इस बमबारी में हजारों लोग मारे जा रहे थे। जिसमें कई क्रिकेटर भी शामिल थे। हालांकि ली को उस वक्त इस युद्ध से कोई मतलब नहीं था। वह तो क्रिकेट खेलने में व्यस्त थे। उन्होंने मिडलसेक्स के लिए खेलते हुए अपना पहला शतक युद्ध शुरू होने से कुछ समय बाद जमाया था। हैरी ने अगस्त 1914 में नॉटिंघमशायर के खिलाफ लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड में 139 रन बनाए। लेकिन, अगस्त 1914 में युद्ध तेज होने के बाद ब्रिटेन ने युवाओं को स्वेच्छा से सेना में शामिल होने के लिए कहा। ब्रिटेन सरकार की ओर से युवाओं में जोश भरने के लिए एक पोस्टर जारी किया गया। जिसमें लिखा गया था- घर पर बम से मारे जाने की तुलना में गोलियों का सामना करना कहीं बेहतर है।

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सितंबर 1914 में हुए सेना में शामिल

खास बात यह है कि युद्ध शुरू होने के 8 सप्ताह के ही अंदर 7.5 लाख लोग ब्रिटिश सेना में शामिल हो गए। क्रिकेटर ली शुरू में सेना में नहीं जाना चाहते थे, लेकिन बाद में उन्होंने सितंबर 1914 में सेना में शामिल होने का फैसला किया। उन्हें लंदन रेजिमेंट में 13वीं बटालियन में भर्ती किया गया। सेना में भर्ती के बाद ली को एक हफ्ते बाद फ्रांस जाना पड़ा। जहां उन्होंने न्यूवे-चैपल की लड़ाई में हिस्सा लिया। दरअसल, जर्मन सेना फ्रांसिसी विलेज न्यूवे-चैपल पर कब्जा करना चाहती थी। हालांकि ब्रिटिश सेना की कोशिश के बावजूद वह विफल रही और इसमें कम से कम 11 हजार लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। लंदन रेजिमेंट में 13वीं बटालियन में शामिल 550 में से 499 लोगों की जान चली गई।

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शव नहीं मिला तो फैल गई मौत की खबर

युद्ध में शामिल लोगों में ली का शव नहीं मिला, तो उनकी मौत की खबर फैल गई। यहां तक कि उनका स्मारक बना दिया गया, लेकिन वे आश्चर्यजनक रूप से जीवित थे। ली ने अपनी आत्मकथा में लिखा कि उनकी बाईं जांघ में गोली लगी, लेकिन वे इस हमले में बच गए। बाद में उन्हें रेड क्रॉस भेज दिया गया। फिर वे ठीक होकर घर लौट गए। हैरी को दिसंबर 1915 में सेना से रिटायर कर दिया गया। उन्हें ब्रिटिश युद्ध पदक, 1914-15 स्टार, सिल्वर वॉर बैज और विजय पदक से सम्मानित किया गया। खास बात यह है कि जब वह हॉस्पिटल से घर गए तो डॉक्टरों ने बताया कि वह अपनी चोट के कारण न तो सेना में शामिल हो सकेंगे और न ही क्रिकेट खेल सकेंगे।

मिडलसेक्स ने की मदद

हालांकि आर्मी अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद मिडलसेक्स ने उनके इलाज की जिम्मेदारी ली। उन्हें एक एक्सपर्ट डॉक्टर दिया गया। इसके बाद उन्होंने चोट से उबरते हुए क्रिकेट खेलना शुरू किया। रॉयल आर्मी सर्विस कॉर्प्स के लिए ली ने 1916 की शुरुआत में एक मुकाबला खेला। उन्होंने लांसिंग कॉलेज के खिलाफ सेंचुरी ठोकी। इस साल गर्मियों के अंत में हैरी ली को मिडलसेक्स के साथ खेलने वाले फ्रैंक टैरेंट की पत्नी ने कोलकाता जाने का सुझाव दिया। टैरेंट को भारतीय क्रिकेट की नींव रखने में मदद करने वाला माना जाता है। टैरेंट के नाम भारत में प्रथम श्रेणी मैच में एक पारी में सभी 10 विकेट चटकाने वाले पहले खिलाड़ी बनने का रिकॉर्ड भी दर्ज है।

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भारत में खेला क्रिकेट

भारत पहुंचने के बाद ली ने कूच बिहार के महाराजा के लिए फुटबॉल और क्रिकेट कोच के रूप में काम किया। ली ने मार्च 1918 में भारत में फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेला। लॉर्ड विलिंगडन इलेवन के खिलाफ महाराजा कूच बिहार इलेवन के लिए खेलते हुए ली ने दो पारियों में 11 रन देकर 5 विकेट और 41 रन देकर 3 विकेट झटके।

15 साल बाद मिली टेस्ट कैप

वह लगातार मैच खेलकर अपनी प्रतिभा साबित करते रहे। 1931 में जब वे 40 साल की उम्र में करियर के अंतिम पड़ाव पर थे, तो इंग्लैंड की टीम पर्सी चैपमैन की कप्तानी में दक्षिण अफ्रीका का दौरा कर रही थी। इस दौरे पर इंग्लैंड को एक के बाद एक झटके लगे। कई खिलाड़ी चोट के कारण बाहर हो गए। ऐसे में लीग को रिप्लेसमेंट के तौर पर बुलाया गया। सीरीज में 0-1 से पीछे रहने वाली इंग्लैंड के लिए हैरी ली को आखिरकार 13 फरवरी, 1931 को जोहान्सबर्ग में चौथे टेस्ट में कैप मिली। जो उन्हें उनकी ‘मौत’ के 15 साल बाद मिली। ली ने ओपनिंग करते हुए मैच की दोनों पारियों में 18 और 1 रन बनाए। ये मुकाबला जो ड्रॉ पर खत्म हुआ।

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HISTORY

Written By

Pushpendra Sharma

First published on: Sep 09, 2024 09:22 PM

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