---विज्ञापन---

Diamond Rain: जहां होती है ‘हीरों की बारिश’, एक पल भी खड़े नहीं रह पाएंगे आप

Diamond Rain: हमारा सौरमंडल (Solar System) अपने आप में प्रकृति की एक अनूठी और अद्भुत संरचना है। वर्तमान में केवल पृथ्वी एकमात्र ऐसा ज्ञात ग्रह है जहां जीवन है परन्तु अन्य सभी ग्रह भी किसी न किसी कारण से बहुत खास है। उदाहरण के लिए बृहस्पति, मंगल और शनि सौरमंडल में ग्रहों का संतुलन बनाने […]

Edited By : Sunil Sharma | Updated: May 10, 2023 15:28
Share :
Diamond Rain, science news, space news, space news hindi,

Diamond Rain: हमारा सौरमंडल (Solar System) अपने आप में प्रकृति की एक अनूठी और अद्भुत संरचना है। वर्तमान में केवल पृथ्वी एकमात्र ऐसा ज्ञात ग्रह है जहां जीवन है परन्तु अन्य सभी ग्रह भी किसी न किसी कारण से बहुत खास है। उदाहरण के लिए बृहस्पति, मंगल और शनि सौरमंडल में ग्रहों का संतुलन बनाने का कार्य करते हैं। चंद्रमा रात्रि में पृथ्वी पर प्रकाश करता है। इसी प्रकार सौरमंडल में सबसे बाहर की ओर स्थित ग्रह यूरेनस और नेपच्यून (Uranus and Neptune) (जहां सूर्य की रोशनी और ऊर्जा भी नहीं पहुंच पाती है) भी अपने आप में विशेष हैं।

अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के अनुसार इन ग्रहों पर हीरों की वर्षा होती है। उनके अनुसार इन दोनों ही ग्रहों का वातावरण सौरमंडल के बाकी ग्रहों से बहुत अलग है। इन ग्रहों का अधिकांश भाग जल, अमोनिया और मीथेन से बना हुआ है। इन तीनों के मिश्रण को वैज्ञानिक Ices कहते हैं। जब इन ग्रहों का निर्माण हुआ था, तब ये तीनों तत्व ठोस अवस्था में थे। इन ग्रहों की इनर कोर (अंदरुनी भाग) पूरी तरह से चट्टानों से बनी है। एक तरह से इस ग्रह में तत्व क्वांटम अवस्था में है जो जबरदस्त दबाव और ताप पैदा करते हैं।

यह भी पढ़ें: करोड़ों-अरबों सूर्यों के बराबर होता है एक ब्लैकहोल, उनके सामने हमारी पृथ्वी तो सूई की नोक बराबर भी नहीं

वॉयेजर के डेटा से हुआ खुलासा

वॉयेजर 2 (Voyager 2) द्वारा भेजे गए डेटा से पता चला कि इन ग्रहों की इनर कोर का तापमान लगभग 7000 केल्विन (12140 डिग्री फॉरेनहाईट या 6727 डिग्री सेल्सियस) है। इतने तापमान पर लोहा भी पिघल जाता है। इसी प्रकार यहां पर दाब भी पृथ्वी के वातावरण दाब की तुलना में 6 मिलियन (60 लाख) गुणा अधिक है। जबकि इन ग्रहों के धरातल का तापमान करीब 2000 केल्विन (3,140 फॉरेनहाईट या 1,727 डिग्री सेल्सियस) है। जबकि धरातल का वातावरणीय दाब भी पृथ्वी की तुलना में करीब 2 लाख गुणा अधिक है। इस तरह की परिस्थितियों में यदि कोई व्यक्ति चला जाए तो उसका शरीर भी पिघल कर अणु और परमाणुओं में बदल जाएगा।

यूरेनस और नेपच्यून की ये एक्सट्रीम कंडीशंस वहां मौजूद तत्वों को अणुओं और परमाणुओं में तोड़ देती हैं। इस तरह कार्बन के अणु मुक्त हो जाते हैं और कार्बन के दूसरे अणुओं के साथ मिलकर एक चेन बना लेते हैं। यही चेन बाद में हीरे जैसी क्रिस्टल संरचना में बदल जाती हैं और आसमान से हीरों की बारिश के रूप में धरातल पर गिरने लगती है। इस तरह वहां हीरों की बारिश होती है। लेकिन ये हीरे ज्यादा देर अस्तित्व में नहीं रह पाते हैं। सतह पर पहुंच कर हीरे फिर एक बार इतने अधिक तापमान में कार्बन के अणुओं में टूट कर वाष्पीकृत होने लगते हैं।

यह पूरा प्रोसेस ठीक उसी तरह है जैसे धरती पर पानी वाष्प बनकर हवा में बादल बनाता है और फिर सही परिस्थितियों में बारिश की बूंदों के रूप में बरसने लगता है। यूरेनस और नेचच्यून पर भी मीथेन और अमोनिया में मौजूद कार्बन वाष्प के रूप में वातावरण में ऊपर उठती है और हीरों की बारिश के रूप में नीचे गिरती हैं। इस पूरे प्रोसेस को ‘डायमंड रेन’ कहा जाता है।

यह भी पढ़ें: आर्थराइटिस को ठीक करेगी भारत में बनी नई दवा, रोग के साथ दर्द भी मिटेगा

आंकड़े भी करते हैं पुष्टि (Diamond Rain Mathematical Model)

वैज्ञानिकों ने वॉयेजर और वॉयेजर 2 अंतरिक्ष यानों द्वारा अब तक भेजे गए आंकड़ों को जब गणितीय मॉडल से मिलाया तो उससे भी इस बात की पुष्टि होती है। गणितीय मॉडल के अनुसार यह कार्बन का एक पूरा साइकिल है। लेकिन आपको बता दें कि नेपच्यून और यूरेनस अकेले ऐसे ग्रह नहीं है। शनि के चन्द्रमा टाइटन पर भी मीथेन के महासागर है। परन्तु वहां पर इतना अधिक तापमान और वातावरणीय दाब नहीं है। इसलिए वहां पर हीरों के बजाय मीथेन (पेट्रोलियम पदार्थ) की बारिश होती है।

First published on: May 10, 2023 03:23 PM

Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 on Facebook, Twitter.

संबंधित खबरें