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शनि की उल्टी चाल हो जाएगी बेअसर, इस शनिधाम में मिलता है हर शनिदोष से छुटकारा!

Vakri Shani Puja: उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के कुशफरा के जंगल में एक ऐसा शनिधाम है, जहां पूजा करने से वक्री शनि के नकारात्मक असर, साढ़ेसाती और ढैय्या के प्रभाव से तत्काल मुक्ति मिल जाती है। आइए जानते हैं, इस शनिधाम की माहात्म्य और विशेषताएं।

Edited By : Shyam Nandan | Updated: Jul 10, 2024 10:57
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Vakri Shani Puja: उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में एक शनिधाम है, जिसके बारे में मान्यता है कि यहां भक्त आते ही भगवान शनिदेव की कृपा के पात्र बन जाते हैं। मान्यता है कि जिनकी कुंडली में शनि दोष है या साढ़ेसाती और ढैय्या से ग्रसित हैं, वह इस शनिधाम में शनिदेव के दर्शन मात्र से दूर हो जाता है। साथ ही, जिनपर वक्री शनि का नकारात्मक असर अधिक होता है, उन्हें यहां आकर पूजा करने से तत्काल लाभ होता है।

बाल्कुनी नदी के किनारे स्थित है शनिधाम

भगवान शनि का यह प्राचीन पौराणिक मंदिर सदियों से लोगों की श्रद्धा और आस्था का केंद्र है, जो बाल्कुनी नदी के किनारे स्थित है। यह शनिधाम प्रतापगढ़ जिले के विश्वनाथगंज बाजार से लगभग 2 किलो मीटर दूर कुशफरा के जंगल में स्थित है। कहते हैं, यह ऐसा स्थान है जो चमत्कारों से भरा हुआ है और यह स्थान लोगों को सहसा ही अपनी ओर खींच लेता है। मान्यता है कि इस क्षेत्र में दाखिल होने के साथ ही व्यक्ति शनि-कृपा का पात्र बन जाता है।

एक श्रीयंत्र की तरह है यह शनिधाम

अवध क्षेत्र के एक मात्र पौराणिक शनि धाम होने के कारण इस शनिधाम में प्रतापगढ़ के साथ-साथ कई जिलों के भक्त आते हैं। इस शनिधाम के पुजारी महंथ परमा महाराज के अनुसार, यहां पूजा करने से शनिदेव शीघ्र प्रसन्न होते हैं और जीवन बाधा रहित बीतता है। अमावस्या पर उनका दर्शन बहुत लाभकारी है। यहां प्रत्येक शनिवार भगवान को 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है।

उन्होंने बताया कि या शनि धाम एक श्रीयंत्र की तरह है। इसके दक्षिण की तरफ प्रयागभूमि है, उत्तर की तरफ अयोध्याधाम है, पूरब में काशी नगरी और पश्चिम में कड़े मानिकपुर तीर्थ गंगा स्वर्गलोक हैं, जहां कड़े मां शीतला सिद्धपीठ मंदिर है। इससे इस शनिधाम की संरचना एक विशाल श्रीयंत्र की तरह बन गई। इससे इस स्थान का महत्व और बढ़ जाता है।

अखंड राम नाम जप भी है यहां की पहचान

मान्यता है कि यहां स्थापित शनि भगवान की प्रतिमा स्वयंभू है, जो कुशफरा के जंगल में एक टीले पर मिली थी। मंदिर के पुजारी परमा महाराज के अनुसार बकुलाही नदी के तीरे ऊंचे टीले पर विराजे शनिदेव के दरबार के दर्शन के लिए प्रत्येक शनिवार को मंदिर प्रांगन में मेला का आयोजन होता है। यहां की पहचान अखंड राम नाम जप से भी है। इसके उपलक्ष्य में हर बरस यहां वार्षिकोत्सव को अन्नपूर्णा के भंडारे के रूप में मनाया जाता है। सामान्य रूप से मंदिर 6 बजे खुल जाती है और दिन में 3.30 बजे बंद कर दी जाती है। शाम में केवल 5 बजे फिर यह मंदिर थोड़ी देर के लिए संध्या आरती के लिए खुलता है।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें।

First published on: Jul 10, 2024 10:57 AM

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