Sheetala Ashtami 2025: रंगों के त्योहार होली के बाद शीतला अष्टमी का व्रत आता है। कई जगहों पर इस व्रत को बसौड़ा या बसियौरा के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि इस व्रत से रोग दूर होते हैं। इस दिन मां शीतला की पूजा की जाती है और महिलाएं घर में शांति और रोग दोष दूर करने के लिए व्रत भी करती हैं। बसौड़ा के दिन मां शीतला को बासी खाने का भोग लगता है जिसे बाद में प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। ये भी कहा जाता है कि इस दिन के बाद से ही बासी खाना नहीं खाना चाहिए। इसके पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों कारण बताए गए हैं। आइए जान लेते हैं इसके पीछे के दोनों कारण…
मां शीतला को क्यों लगता है बासी खाने का भोग
अक्सर किसी भी पूजा में भगवान को ताजे खाने का भोग लगाया जाता है। लेकिन शीतला अष्टमी वाले दिन बासी खाने का भोग लगाया जाता है। सबसे पहले ये जान लेते हैं कि आखिर माता को बासी खाने का भोग क्यों लगाया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि माता शीतला को बासी खाने का भोग इसलिए लगाया जाता है और पूजा की जाती है ताकि संक्रामक रोगों से बचाव हो सके।
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बासी खाने का भोग लगाने का धार्मिक कारण
बसौड़ा नाम से ही पता लगता है कि इस दिन मां शीतला को बासी खाने का भोग लगाया जाता है। इसके पीछे की धार्मिक मान्यता सादगी का महत्व बताती है। बसौड़ा के पीछे का उद्देश्य बताया जाता कि आडंबरों को छोड़ आस्था पर ध्यान देना चाहिए। अक्सर लोग धर्म के नाम पर तरह-तरह के आडंबर करते हैं, यही वजह है कि लोगों को उन सब को छोड़ धर्म की ओर ध्यान देना चाहिए। तभी तो झंझटों को छोड़ बासी खाने का मां शीतला को भोग लगाया जाता है।
वैज्ञानिक महत्व
अब इसके पीछे का वैज्ञानिक महत्व भी जान लेते हैं। दरअसल शीतला अष्टमी के दिन से ही ऋतु परिवर्तन होने लगता है। सर्दी के बाद गर्मी का आगमन हो जाता है। गर्मी के मौसम में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है क्योंकि किटाणु जल्दी ही पनप जाते हैं। मौसम परिवर्तन होने से पहले शीतला अष्टमी वाले दिन बासी खाना खाया जाता है और उसके बाद एक दिन पहले बने खाने को न खाने की सहाल दी जाती है। ये भी कहा जाता है कि गर्मी में ठंडा खाना खाना चाहिए क्योंकि इससे पेट को शीतलता मिलती है।
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