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Shardiya Navratri 2024 Day 6: मां दुर्गा के छठे स्वरूप देवी कात्यायनी की पूजा आज; जानें कथा, पूजा विधि, मंत्र, आरती और प्रिय भोग

Shardiya Navratri 2024 Day 6: नवरात्रि की षष्ठी तिथि को मां दुर्गा के छठे स्वरूप देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है। आज मंगलवार 8 अक्टूबर, 2024 को मां कात्यायनी के पूजा का दिन है। आइए जानते हैं, मां दुर्गा का छठा स्वरूप कैसा है, उनका उपासना मंत्र, आरती और प्रिय भोग क्या है?

Edited By : Shyam Nandan | Updated: Oct 8, 2024 07:17
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Shardiya Navratri 2024 Day 6: मातृ पूजा और शक्ति आराधना के महापर्व नवरात्रि के छठे दिन जगतजननी मा दुर्गा के छठे स्वरूप देवी कात्यायनी की उपासना का विधान है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, दुर्गा पूजा की षष्ठी तिथि को मां कात्यायनी की पूजा करने से भक्तों और साधकों को शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है, शारीरिक-मानसिक कष्ट दूर होते हैं, घर-परिवार के रोग-शोक दूर होते हैं और सुख-समृद्धि में सदैव बढ़ोतरी होती है।

आज मंगलवार 8 अक्टूबर, 2024 को नवरात्रि की षष्ठी तिथि है। आज दिन मां दुर्गा के षष्ठम स्वरूप देवी कात्यायनी की पूरे विधि-विधान और धूमधाम से पूजा हो रही है। आइए जानते हैं, मां दुर्गा के यह छठा दिया स्वरूप कैसा है और उनकी उत्पत्ति कैसे हुई? साथ ही जानेंगे कि उनका उपासना मंत्र, आरती, प्रिय रंग और भोग क्या है?

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ऐसा है मां कात्यायनी का दिव्य रूप

सांसारिक स्वरूप में मां कात्यायनी शेर पर सवार रहती हैं। उनकी चार भुजाएं हैं। उनके बाएं हाथ में कमल और तलवार और दाहिने हाथ में स्वस्तिक और आशीर्वाद की मुद्रा में है। सभी अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित देवी मां का आभा मंडल से युक्त स्वरूप मनमोहक है। नवरात्र की षष्ठी तिथि के दिन देवी के इसी स्वरूप की पूजा होती है, क्योंकि इसी तिथि में देवी ने जन्म लिया था और ऋषि-मुनियों और देवताओं ने उनकी पूजा की थी। मान्यता है कि मां कात्यायनी के दिव्य रूप को देख पाना साधारण मनुष्य एक बस की बात नहीं है। इसे पहुंचे हुए साधक ही देख पाते हैं। देवीभागवत पुराण के अनुसार देवी के इस स्वरूप की पूजा गृहस्थों और विवाह के इच्छुक लोगों के लिए बहुत ही फलदायी है।

मां कात्यायनी की कथा

प्राचीन काल में कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में महर्षि कात्यायन पैदा हुए थे। उन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी शक्ति-स्वरूपा मां भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। मां भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली और उन्होंने महर्षि कात्यायन की पुत्री के रूप जन्म लिया और कात्यायनी कहलाईं।

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समय के साथ महिषासुर दानव का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ता ही गया. तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन  तीनों देवों ने अपने-अपने तेज का दिव्या अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया। कहते हैं कि सबसे पहले महर्षि कात्यायन ने इनकी पूजा की थी, इसलिए वे मां कात्यायनी के रूप में पूजी जाती हैं।

मां कात्यायनी ऐसे बनीं महिषासुरमर्दिनी

बता दें कि ऐसी भी कथा मिलती है कि देवी मां महर्षि कात्यायन के यहां पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्ल सप्तमी, अष्टमी और  नवमी तक इन तीन दिनों तक उन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी तिथि को महिषासुर का वध किया था। इसलिए इनका एक नाम महिषासुरमर्दिनी यानी महिषासुर का मर्दन कर अंत करने वाली भी है।

मां कात्यायनी को पसंद है ये रंग

मान्यता है कि मां कात्यायनी लाल रंग बेहद पसंद है।  मंगलवार को लाल रंग के वस्त्र धारणकर उनकी पूजा से विशेष लाभ होता है। वैदिक ज्योतिष में इस रंग को शक्ति का प्रतीक बताया गया है।

ऐसे करें मां कात्यायनी की पूजा

  • मां कात्यायिनी की पूजा में लाल रंग का खास महत्व है। नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायिनी की पूजा में लाल रंग का प्रयोग करना शुभ होता है।
  • मां कात्यायिनी की पूजा के दौरान सबसे पहले कलश देवता अर्थात् भगवान गणेश का विधिवत पूजन करें। साथ ही भगवान गणेश को फूल, अक्षत, रोली, चंदन अर्पित कर उन्हें दूध, दही, शर्करा, घृत व मधु से स्नान कराएं।
  • फिर कलश देवता का पूजन करने के बाद नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता, ग्राम देवता की पूजा भी करें। इन सबकी पूजा करने के बाद ही मां कात्यायनी का पूजन शुरू करें।
  • इसके लिए सबसे पहले अपने हाथ में एक फूल लेकर मां कात्यायनी का ध्यान करें।
  • इसके बाद मां कात्यायनी का पंचोपचार पूजन कर, उन्हें लाल फूल, अक्षत, कुमकुम और सिंदूर अर्पित करें।
  • इसके बाद मां कात्यायिनी को शहद, मिष्टान्न, नैवेद्य, फल, हलवा आदि व्यंजनों का भोग लगाएं।
  • पूजन के अंत में मां के समक्ष घी या कपूर जलाकर आरती करें।
  • अंत में मां के मंत्रों का उच्चारण कर जाप करें।

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मां कात्यायनी उपासना मंत्र

1. चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।

2. या देवी सर्वभू‍तेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

3. मां कात्यायनी का वंदना मंत्र: ॐ देवी कात्यायन्यै नमः

मां कात्यायनी आरती

जय जय अम्बे, जय कात्यायनी। जय जगमाता, जग की महारानी।।

बैजनाथ स्थान तुम्हारा। वहां वरदाती नाम पुकारा।।

कई नाम हैं, कई धाम हैं। यह स्थान भी तो सुखधाम है।।

हर मंदिर में जोत तुम्हारी। कहीं योगेश्वरी महिमा न्यारी।।

हर जगह उत्सव होते रहते। हर मंदिर में भक्त हैं कहते।।

कात्यायनी रक्षक काया की। ग्रंथि काटे मोह माया की।।

झूठे मोह से छुड़ाने वाली। अपना नाम जपाने वाली।।

बृहस्पतिवार को पूजा करियो। ध्यान कात्यायनी का धरियो।।

हर संकट को दूर करेगी। भंडारे भरपूर करेगी।।

जो भी मां को भक्त पुकारे। कात्यायनी सब कष्ट निवारे।।

मां कात्यायनी का प्रिय भोग

मां कात्यायनी को मधु यानी शहद बेहद पसंद है। इसलिए उन्हें शहद अर्पित करें। धार्मिक ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि कात्यायनी माता को शहद-युक्त पान के बीड़े चढ़ाने से वे शीघ्र प्रसन्न होती हैं। साथ ही आप शहद में बना हुआ हलवा भी चढ़ा सकते हैं। कहते हैं, इसे प्रसाद स्वरूप अर्पित करने से देवी मां भक्त-साधक को मनचाहा वरदान देती हैं।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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Written By

Shyam Nandan

First published on: Oct 08, 2024 06:15 AM

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