Sawan 2024: शिव पुराण और स्कंद पुराण में महादेव शिव के अनेक अवतारों का वर्णन मिलता है। कहीं उनके 24 तो कहीं 19 अवतारों का जिक्र हुआ है। साथ ही भगवान शंकर के अनेक अंशावतार भी हुए हैं। संहार के देवता महादेव के कुछ अवतार तंत्रमार्गी हैं, तो कुछ दक्षिणमार्गी हैं। भगवान शिव को प्रिय सावन का पवित्र महीना शुरू होने वाला है। इस मौके पर आइए जानते हैं, उनके पहले अवतार की कथा, जिसे भगवान शिव का एक रुद्रावतार और गण भी माना गया है।
दक्ष के यज्ञ में सती का दाह
भगवान शिव के ससुर और देवी सती के पिता राजा दक्ष ने एक बार विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें सभी ऋषि-मुनियों, देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया। लेकिन दामाद भगवान शंकर और अपनी बेटी सती को इस यज्ञ में नहीं बुलाया। भगवान शिव की इच्छा के विरुद्ध अपने पिता का यज्ञ समझ कर सती बिना बुलाए ही वहां पहुंच गयी। जहां राजा दक्ष ने न सिर्फ सती से शिवजी के बारे में अपमानजनक शब्द कहे बल्कि उसका भी बहुत अपमान किया। देवी सती ने अपने पति शिव का और अपना अपमान सहन न कर सकीं और रोती हुई वह यज्ञ की जलती हुई अग्नि में कूदकर आत्महत्या कर ली। यह देखकर वहां हाहाकार मच गया।
जब भगवान शिव को मिला समाचार
जब सती दाह का समाचार भगवान शंकर मिला तो वे इतने क्रोधित हुए के दसों दिशाएं कांप उठी। उन्होंने दक्ष, उसकी सेना और यज्ञ में उनके उपस्थित सलाहकारों को सजा देने के लिए, अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे पर्वत की चोटी पर फेंक दिया। इससे उनके पहले उग्र अवतार आठ भुजाओं वाले भगवान वीरभद्र की उत्पत्ति हुई, जिसका रूप अत्यंत विकराल था।
उत्पन्न होते ही वीरभद्र शिव की आज्ञा से तेजी से यज्ञ स्थल पहुंचे। वीरभद्र ने दक्ष की सेना पर आक्रमण कर दिया। इसके अलावा जो भी उसके मार्ग में आया उसने उसका सर्वनाश कर दिया। भगवान विष्णु ने भी युद्ध किया लेकिन वीरभद्र की शक्ति देख अन्तर्धान हो गए। वीरभद्र ने वहां की भूमि को रक्त से लाल कर दिया।
वीरभद्र के अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया। फिर शिवातार वीरभद्र ने दक्ष को पकड़कर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। भारी विध्वंस मचाकर भगवान वीरभद्र ने दक्ष का कटा सिर काटकर शिव के सामने रख दिया। ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र सहित देवताओं के प्राण संकट में थे, वे सभी त्राहिमाम कर रहे थे। इस घटना का वर्णन स्कंद पुराण, शिव और देवी पुराण में विस्तार से मिलता है।
दक्ष को दिया जीवनदान
बाद में ब्रह्माजी और विष्णुजी, सभी देवता और ऋषि-मुनि कैलाश पर्वत पर गए। इन सभी ने महादेव से विनयकर अपने क्रोध को शांत करने को कहा और राजा दक्ष को जीवन देकर यज्ञ को संपन्न करने का निवेदन किया। बहुत प्रार्थना करने के बाद भगवान शिव ने उनकी बात मान ली। उन्होंने राजा दक्ष के सिर पर बकरे का सिर लगाकर उन्हें जीवनदान दे दिया और फिर बाद यज्ञ पूरा किया गया।
वीरभद्र अवतार का संदेश
शिवजी से उत्पन्न होने के कारण वीरभद्र को शिव का अंश माना गया है। शिव ने वीरभद्र को अपने गणों में शामिल कर लिया। शिवजी के गणों में भैरव और नंदी को प्रमुख माना जाता है। भगवान शिव के वीरभद्र अवतार का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। यह अवतार हमें संदेश देता है कि शक्ति का प्रयोग वहीं करें, जहां उसका सदुपयोग हो। भगवान वीरभद्र का विवाह देवी भद्रकाली (अच्छी काली) के साथ हुआ, जिनकी पूजा मुख्यतः दक्षिण भारत में होती है।
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